किवाड़
*"किवाड़" ! *हमारी प्राचीन संस्कृति व संस्कार की पहचान* *क्या आपको पता है ?* *कि "किवाड़" की जो जोड़ी होती है !* *उसका एक पल्ला "पुरुष" और,* *दूसरा पल्ला "स्त्री" होती है।* *ये घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं।* *हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।* *खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।* *भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।* *एक रात उनके बीच था संवाद।* *चोरों को लाख-लाख धन्यवाद।।* *वर्ना घर के लोग हमारी ,* *एक भी चलने नहीं देते।* *हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं,* *हमें ये मिलने भी नहीं देते।।* *घर की चौखट के साथ हम जुड़े हैं,* *अगर जुड़े-जड़े नहीं होते।* *तो किसी दिन तेज आंधी-तूफान आता,* *तो तुम कहीं पड़ी होतीं,* *हम कहीं और पड़े होते।।* *चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है।* *वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है।।* *इस घर में यह जो झरोखे,* *और खिड़कियाँ हैं।* *यह सब हमारे लड़के,* *और लड़कियाँ हैं।।* *तब ही तो,* *इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं।* *पूरे घर में जीवन रचा-बसा रहे,* *इसलिये ये आती-जाती हवा को,* *खेल ही खेल में ,* *घर की तरफ मोड़ देते हैं।।* *हम घर की सच्चाई छिपात...