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Showing posts from December, 2022

नई सामाजिक बीमारी, रिसोर्ट मे शादियां !

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 नई सामाजिक बीमारी   रिसोर्ट मे शादियां !  विवाह सफल हो न हो परंतु उसका समारोह सफल होना आवश्यक है हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की! सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है! अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट या Destination weddings के रूप में शादीया होने लगी है क्यों होने लगी है?  क्योंकि फिल्मों में ऐसी शादियां होती है। तो फिल्मी शादीयों की चमक दमक की नकल तो करनी पड़ेगी।  विवाह सफल हो न हो परंतु नकल सफल होनी आवश्यक है शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं! और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार व...

नहीं चाहिए ऐसा समाज जहाँ फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे!

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       फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे यह दावा कोई खोखला नही है ऐसा दावा करने वाली दुनिया में बहुत सारी कंपनियां होंगी जो नकली बच्चे पैदा करेंगे और उससे धन कमाएंगी क्योंकि ऐसा काम सेवा के लिए तो नहीं होने वाला। परंतु बड़ी बात यह है कि भारत में गर्भ संस्कार की परंपरा उसका क्या होगा क्योंकि गोद भराई गर्भ संस्कार आदि जो परंपराएं हैं उन परंपराओं को यह पूरी तरह खत्म कर देंगे क्योंकि भारत जैसा देश ऐसी तकनीक का बहुत बड़ा बाजार बनेगा। आईवीएफ की तरह लोगों को अपने गोद में केवल जीवित दिखने वाला बच्चा चाहिए जो की फैक्ट्री में पैदा हुआ हो। मोबाइल फोन के मॉडल की तरह उनमें जेनेटिक बदलाव बालो का रंग, आंखो का रंग, कद आदि चुन सकेंगे सुनने में तो यह अद्भुत लग रहा है लेकिन जेनेटिक बदलाव से खेलने की यह हरकत आने वाली वह भयानक सच्चाई है जिसे सरकारी संरक्षण मिलेगा। समाज में ऐसे बच्चो को पहचानने के लिए नियम बनाने पड़ेंगे जिससे फैक्ट्री और प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चो की पहचान हो सके। क्योंकि ऐसे बच्चो का गोत्र आदि तो कुछ निर्धारित होगा नही। जेनेटिक बदलाव के कारण और कृत्रिम गर्भ में पलने के...

*कश्यपसंहिता में वर्णित 3 हज़ार वर्ष पुराना आयुर्वेदिक टीकाकरण - स्वर्णप्राशन*

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*कश्यपसंहिता में वर्णित 3 हज़ार वर्ष पुराना  आयुर्वेदिक टीकाकरण - स्वर्णप्राशन* भारत की इस धरा ने - हमारी साँस्कृतिक परंपरा ने कई महापुरुषो, संतो, शूरवीरो, बौद्धिको, महान तत्ववेत्ताओ को जन्म दिया है। पर इस परंपरा को खडी करने और इतने सारे महान चरित्रो का संगोपन कैसे किया होगा यह हमने कभी सोचा है क्या? हमारे प्राचिन ऋषिओं ने इसके लिये अथाह परिश्रम उठाया है। समाज स्वस्थ - निरोगी बने इसके लिये आज कई सामाजिक, धार्मिक संस्थान और खुद सरकार भी चिंतित और कार्यरत है। अरबो का बजट हमारे आरोग्य की रक्षा के लिये सरकार और अंतराष्ट्रीय संस्थाएँ खर्च करती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के केम्प, सहायता, जागृकता बढें इसके लिये विज्ञापन, फरजियात टीकाकरण द्वारा बहुत ही जोरो से प्रयत्न होता रहता है। कभी कभी इसके परिणमो की ओर दृष्टि करें तो प्रयत्न के समक्ष परिणाम बहुत ही अल्प मात्रा में दिखता है । समाज में शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढी है, पर मानसिक स्वास्थ्य का क्या? उसके लिये कभी किसी ने विचार किया है क्या?...... मानसिक रोग, निर्माल्य एवं असंस्कारी समाज अगर दीर्घायुष्य पाता है त...