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त्रिफला कल्प: जानिए 12 वर्ष तक लगातार असली त्रिफला खाने के लाभ!

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  त्रिफला कल्प  जानिए 12 वर्ष तक लगातार असली त्रिफला खाने के लाभ! गोधूली परिवार द्वारा प्रमाणित सर्वश्रेष्ठ त्रिफला गुरुकुल प्रभात आश्रम का *त्रिफला सुधा* त्रिफला के विषय मे यह कहावत प्रसिद्द है कि हरड़ बहेड़ा आंवला घी शक्कर संग खाए हाथी दाबे कांख में और चार कोस ले जाए  (1 कोस = 3-4 km) अर्थात त्रिफला का यदि सही प्रकार से सेवन किया जाएँ तो शरीर का कायाकल्प हो सकता है  वाग्भट्ट ऋषि के अनुसार इस धरती का सर्वोत्तम फल है जो आपके वात, पित, कफ को संतुलित कर आपको निरोगी बनाने की क्षमता रखता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार वात, पित, कफ के असुंतलन से शरीर में रोग आते है  आज हम सरल भाषा जानने का प्रयास करेंगे कि 12 वर्ष तक त्रिफला लेने के क्या है लाभ! त्रिफला कैसे बनाएं? आयुर्वेद के अनुसार तीन फलों (हरड़, बहेड़ा, आँवला) के मिश्रण का नाम “त्रिफला” है  अष्टांगहृदयम के अनुसार तीनो फलों का अनुपात इस श्लोक में वर्णित है  अभयैका प्रदातव्या द्वावेव तु बीभीतकौ।   धात्रीफलानि चत्वारि प्रकीर्तिता । ।  अर्थात एक हरीतकी, दो बहेड़ा और तीन आँवला - इनको ए...

"आंवला नवमी" या "आरोग्य नवमी" का महत्व!

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क्या महत्व है "आंवला नवमी" या  "आरोग्य नवमी" का ? आँवला के वृक्ष की महिमा का प्रतिष्ठापित करने के लिए इसकी पूजा की जाती है और इसीलिए कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को "आंवला नवमी" या  "आरोग्य नवमी" भी कहा जाता है । गाँवों में इस दिन घर के अंदर भोजन नहीं बनता था । आँवला के पेड़ के नीचे सुबह सुबह साफ सफाई होने लगती थी । आँवला नवमी से एक दिन पहले ही उस स्थान की गाय के गोबर से लिपाई पुताई हो जाती थी । आँवला नवमी के दिन परिवार की सभी स्त्रियाँ इकट्ठी होकर मिट्टी के चूल्हे पर एक साथ पूरे खानदान का भोजन बनाती थी । पुरुष ईंधन और बाल्टी बाल्टी से कूएँ से पानी लाकर देते थे और स्त्रियाँ भोजन बनाती थी । कितनी भी एक दूसरे से मनमुटाव हो , गाँव के सभी लोग एक ही पेड़ के नीचे इक्कट्ठे होकर अपना अपना चूल्हा बनाकर भोजन पकाते थे । आपसी मेल जोल , सौहार्द्र , प्रेम इत्यादि की वृद्धि होती थी । सुबह सुबह आँवला के वृक्ष का पूजन होता था । लोग आँवला की लकड़ी का ही दातौन करते थे । आँवला के वृक्ष की छाया के नीचे ही थाली में भोजन किया जाता था । यह मान्यता थी कि थाली में अगर आ...