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Showing posts from March, 2020

मानवजाति का उपहास करती प्रकृति माँ! / Mankind's mistakes & Nature Enjoys!

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मानवजाति का उपहास करती प्रकृति माँ!  मानव जगत के षडयंत्रो में जीवजगत का आनंद छुपा है  एक बात सुनी थी की यदि पृथ्वी से मधुमक्खी विलुप्त हो जाये तो मानवजाती 50 वर्ष में विलुप्त हो जाएगी  और यदि मनुष्य विलुप्त हो जाये तो पूरी पृथ्वी 50 वर्ष में विषमुक्त हो जाएगी  आज मनुष्यजाति द्वारा किये गए कोरोना के षडयंत्र का आनंद प्रकृति ले रही है  जहाँ मनुष्यो के 3 दिन की अनुपस्थिति में पूरे देश में विभिन्न शहरो की सड़को पर वन्य जीव आनंद से विचरण कर रहे है।  इन निरीह प्राणियों को क्या पता की इन कंक्रीट के जंगल उनके योग्य नहीं है  हे गोमाता की ही स्वरूपा नीलगाय अभी कुछ दिन बाद देखना यह मनुष्य तुमको कानून की और से मिली खुली आज्ञा के बिना किसी दया के गोली मार देगा।   हे पक्षियों! कुछ दिन बाद देखना जब यह सब अपने घर की क़ैद से छूटेंगे तो फिर से मांसाहार करने को इनकी लार टपकेगी  घर का खाना से तंग आये हुए फिर से भूखे सांड की तरह सड़कछाप और बाज़ारू खाने की ओर लपकेगा या ऑनलाइन आर्डर करेगा  फिर से अंतराष्ट्रीय पिज़्ज़ा बर्गर खाकर अपनी ...

कॉल पे चर्चा: बाजार के दही से दही जमाना है बहुत बड़ी भूल / Making Curd from Market Curd is a Mistake!

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एक समझदार नवयुवक से फ़ोन पर बात होते होते यह विषय उठकर आया जो लगा की सबको जानना चाहिए

चॉकलेट में कॉकरोच? : सत्य या असत्य / Cockroaces in Chocolate : Fact or False?

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This video was received from social media so we decided to analysis if its correct or just another video spreading rumours?

शंखनाद और उसकी रिकॉर्डिंग में अंतर् होता है

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शंखनाद और उसकी रिकॉर्डिंग में अंतर् होता है यह कौन महाज्ञानी है जो मुझे शंख की रिकॉडिंग भेज रहे है क्योंकि उन्हे लगता है की कोरोना वायरस को समाप्त करने हेतु आज शाम को शंख की आवाज़ की रिकॉर्डिंग बजाने से शंखनाद से होने वाला लाभ मिलेगा बजाना है तो असली बजाओ अन्यथा घंटी बजाना, एक स्वर में गायत्री मंत्र गाना अच्छे विकल्प है इसी प्रकार स्टील की थाली न बजाएं बजानी हैं तो कांसे की थाली या कांसे की घंटी बजायए इसका वैज्ञानिक महत्व इस प्रकार है की शंख, गायत्री मंत्र या काँसे की थाली बजाने से ही जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह सभी प्रकार के वाइरस बेक्टीरिया को दूर भगाने में सक्षम है । लेकिन अब काँसे के बर्तन तो सब कबाड़ी को बेच दिए घर में स्टील और melamine की प्लेट बजी है अब उस से शोर निकलेगा जो सरदर्द करेगा। अब मूर्खो को कुछ तो बजाना है तो बजाओ, थाली की आवाज़ की रिकॉर्डिंग भी भेज दो एक दूसरे को ! नाद और ध्वनि में अंतर् होता है शंख बजता है तो नाद उत्पन्न होता है परन्तु रिकॉर्डिंग से केवल ध्वनि नाद का विज्ञान जानना है तो रविंद्र शर्मा जी को सुने आपक...

भारतीय अब भी सुरक्षित है, असली डर तो Indians को है!

भारतीय अब भी सुरक्षित है, असली डर तो Indians को है! आस्था पर व्यवस्था भारी ******** मन की बात कहूँ तो अब कोई फर्क नही पड़ता कि कोरोना वायरस सच है  या  षड्यंत्र। कल आनंद के साथ परिवार सहित हरिद्वार स्थित मनसा देवी और चंडी देवी के लगभग खाली पड़े मंदिरो में दर्शन कर इंडियंस को भारतीयता की समझ देकर विवेकपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति देने की प्रार्थना की। इस महामारी को इतना बड़ा स्तर देकर हम पर ज़बरदस्ती थोपा गया है परन्तु यदि भारत इंडिया न बन गया होता तो शायद देश में इस प्रकार की स्थिति न होती और हम अपनी देशी पद्धति से किसी भी स्तिथि से निपट लेते। परन्तु दुःख है की न तो अब कुछ लोगो को छोड़ दें तो अब न तो यह भारत रहा न ही इसके निवासी भारतीय क्योंकि सब इंडियन बन गए है। जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह किया जा रहा है वह तो पूरे होकर रहेंगे। अब प्रश्न यह है कि यदि घर मे रहकर ही इससे निपटना है तो हम वह करेंगे जो हर स्थिति में सही है, वह नही जो WHO के अनुसार सही है। राजेन्द्र दास जी महाराज के अनुसार हमने गोबर औऱ गोमूत्र के रस का अर्क निकाल कर उपलब्ध करवाने का निर्णय लिया है।...

क्या "संभ्रांत वायरस" है कोरोना ?

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    "संभ्रांत" वायरस! हर घटना के सकारत्मक पहलु होते है और कोरोना के भी है इस कारण से की इसके डर से कम से कम लोग कई गलत आदतों को सुधार बेहतर जीवनशैली अपना रहे है जैसे मॉल, रेस्टोरेंट, स्कूल आदि जैसे तामसिक प्रवृत्ति के स्थानों पर कम जा रहे है घर का बना भोजन कर रहे है। यह तो हुआ व्यंग्य अब गंभीर बात लक्षणों से लगता है "कोरोना" बेहद "संभ्रांत" वायरस है। बस-ट्रेन का सफर इसे पसंद नहीं, सिर्फ फ्लाइट से घूमता है। सुप्रीम कोर्ट-हाइकोर्ट से नीचे की अदालतों में नहीं जाता। कक्षाओं में जाता है पर परीक्षाओं से दूर रहता है। लग्जरी होटल-रेस्टोरेंट में जाता है, लोकल ढाबों पर नहीं। कॉन्फ्रेंस-विधानसभा वगैरह में जाता है, मेलों-सम्मेलनों और सरकारी कार्यालयों में नहीं। मिट्टी में खेलकर बिना हाथ धोने वाले पर ये ध्यान नहीं देता लेकिन दिन में 48 बार हाथ धोने वाले इससे ग्रसित हो जाते है! स्वभाव से तो ही विदेशी टाइप लगता है ये वायरस! यदि यह इतना गंभीर है तो दिल्ली की भीड़ भरी मेट्रो और मुंबई की लोकल ट्रैन में तो इसका सबसे ज़्यादा खतरा होना चाहिए लेकिन वो तो च...

वीडियो : "वो" मज़हब के पक्के है तो संगठित है और हम कच्चे तो बिखरे!

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क्यों वो एक है  ? हम अनेक है पर एक नहीं  आस्थावान को कोई बहका नहीं सकता  आस्था-विहीन को कोई बचा नहीं सकता  अतः आस्था रखें अपनी संस्कृति के प्रति  भारतीयता के प्रति, अपनी जड़ो के प्रति 

भारत में अंग्रेजी राज का बही-खाता / The Balance Sheet of British Rule in India

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हाल ही में मैं पहली बार अमृतसर की यात्रा पर गया एवं कई नई जानकारियां वहां के विभाजन संग्रहालय (Partition Museum) से मिली।  जिसमे से कुछ मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।   पाठको की सुविधा के लिए हमने इसका हिंदी में अनुवाद भी कर दिया है    कुछ शब्द:  अपने जीवन में बहुत से लोगो से मिला जो अंग्रेजी राज को भारत के लिए वरदान मानते है, इसमें उनकी गलती भी नहीं मानता हूँ क्योंकि इसमें दोष उनका नहीं है अपितु उस षंडयंत्र का है जिसकी योजना अंग्रेजी शासन के समय ही बन गयी थी जिसका परिणाम यही होने वाला था की भारत की आने वाली पीढ़ियां अंग्रेज़ो से तो तथाकथित रूप से स्वतंत्र हो जाये परन्तु मानसिक रूप से अंग्रेज़ियत के गुलाम बने रहे।  मेरा यह मत है की वह अपनी इस योजना में सफल भी हो गए है।  अंग्रेज़ो ने जो भारत के साथ किया वैसा वह हर उस देश के साथ करते थे जिसको वो गुलाम बनाते थे।  अपनी धूर्तता को मित्रता का मुखौटा पहना कर उन्होंने भारत के लोगो की अपने अतिथि देवो भवः की भावना को सर्वोपरि मान उनको आदर दिया परन्तु जब तक भारत के लोग उनके धोखे को...

Corona को रोना बंद: चिट्ठी को तार समझना, ज़्यादा लिखे को सार समझना

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Corona को रोना बंद: भारत में अन्नक्षेत्र अभी भी चल रहे है, गुरुद्वारों में लंगर चल रहे है, नदियों में सामूहिक रूप से डुबकी लगायी जा रही है, मंदिरो में, गुरुद्वारों में भीड़ उतनी ही है वहां क्यों नहीं फैलता? अगले वर्ष हरिद्वार महाकुम्भ है वहां करोडो लोग आएंगे लेकिन कोई बीमारी नै फैलती!  भयग्रस्त, Sanitizer प्रयोगकर्ता, मास्कधारी कोरोना विरोधी महान रोगप्रतिरोधक क्षमता विहीन भारत की अंधानुकर्ता अधिकतर जनता के लिए जानकारी वायरस कोई मक्खी मच्छर नहीं है जो मास्क लगाने से रुक जायेगा, यह अति सूक्ष्म जीवाणु है जो शरीर के 9 द्वारा में से कही से भी घुस सकता है अतः केवल एक द्वार पर मास्क लगाने से कोई फायदा नहीं, सभी द्वार पर मास्क लगाएं और पक्की सुरक्षा करें जैसे आपको सांप ने काँटा और वह विषैला न भी हो तो व्यक्ति डर के कारण मर जाता है! ठीक वैसे ही कोरोना का रोना मचा है कोरोना को टेस्ट करने की एक किट शायद 2000 में मिल रही है PCR नाम का टेस्ट वायरस को जांचने के लिए किया जाता है जो की बहुत विश्वसनीय नहीं है जिसमे वायरस जैसी आकृति दिखने की पुष्टि होती है परन्तु ...

कोरोना से डरो ना!

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हाथ मिलाकर वायरस को भारत करेगा "नमस्ते" कोरोना से डरो ना! जो डर गया वो मर गया कोरोना को हाथ मिलाकर (हैंडशेक) दुनिया ने फैलाया इसके विपरीत भारत भी वायरस को हाथ मिलाकर अर्थात "नमस्ते" कह करेगा विदा WHO के अनुसार कोरोना वायरस का पहला केस 31 दिसंबर 2019 , वुहान, चीन में आया परन्तु Dettol कम्पनी ने 27 अक्टूबर 2019 को बने उत्पाद पर कोरोना वायरस छाप कर बेचना शुरू कर दिया था क्या डेटोल वालो को पहले से ही जानकारी थी की इस वायरस का हमला होने वाला है? क्या यह कोरोना अन्य वायरस की तरह ही सामान्य वायरस है जिसका अनावश्यक प्रचार कर भय का माहौल फैलाकर बाजार को बढ़ावा दिया जा रहा है? होने दो कोई भी वायरस या हो कोरोना प्रतिदिन यह ऊपरी किया करो ना तो सुनिश्चित करेगा आपका निरोगी होना वैसे तो हर चौराहे पर होने वाले होली-दहन की गर्मी के कारण कोई जीवाणु बचेगा नहीं। हमारे त्योहारों की वैज्ञानिकता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है ठन्डे प्रदेशो को ही किसी भी प्रकार का वायरस अधिक भय होता है जैसे चीन में ठण्ड अधिक पड़ती है और उनके खाने पीने की आदतों का तो विवर...

समझें क्या है होली का वैज्ञानिक महत्व?

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समझें क्या है होली का वैज्ञानिक महत्व? **************************** यह जानकारी उनके लिए जिनको लगता है की होली जलाने से प्रदुषण होता है आग लगने का खतरा होता है ऐसे लोगो के सीमित और उधार के ज्ञान को थोडा विस्तार देने के लिए बता दूं की प्रदुषण गलत वस्तुओ के जलने से होता है अब हमें होली बनानी नहीं आती तो त्यौहार को दोष क्यों दें अब नीचे दी गयी जानकारी को भी पढ़ लें तो अच्छा होगा! होली के त्योहार से शिशिर ऋतु की समाप्ति होती है तथा वसंत ऋतु का आगमन होता है। प्राकृतिक दृष्टि से शिशिर ऋतु के मौसम की ठंडक का अंत होता है और बसंत ऋतु की सुहानी धूप पूरे जगत को सुकून पहुंचाती है। हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके। आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में शीत के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और बसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ द...