समझें क्या है होली का वैज्ञानिक महत्व?
समझें क्या है होली का वैज्ञानिक महत्व?
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यह जानकारी उनके लिए जिनको लगता है की होली जलाने से प्रदुषण होता है
आग लगने का खतरा होता है
ऐसे लोगो के सीमित और उधार के ज्ञान को थोडा विस्तार देने के लिए बता दूं की प्रदुषण गलत वस्तुओ के जलने से होता है अब हमें होली बनानी नहीं आती तो त्यौहार को दोष क्यों दें
अब नीचे दी गयी जानकारी को भी पढ़ लें तो अच्छा होगा!
होली के त्योहार से शिशिर ऋतु की समाप्ति होती है तथा वसंत ऋतु का आगमन होता है।
प्राकृतिक दृष्टि से शिशिर ऋतु के मौसम की ठंडक का अंत होता है
और बसंत ऋतु की सुहानी धूप पूरे जगत को सुकून पहुंचाती है।
हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके।
आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में शीत के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और बसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं।
इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई देता है।
इसके अलावा बसंत के मौसम का मध्यम तापमान तन के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।
इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से होलिकोत्सव के विधानों में आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए।
हर चोराहे पर जलती होली की अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है।
होलिका एक प्रकार से एक हवन है जो हर गली चौराहे पर किया जाता है और इसमें शुद्ध हवन सामग्री, गाय के गोबर से बने उपले, शुद्ध भीमसेनी कपूर आदि की आहुति देनी चाहिए। जिस से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है
शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए बसंत ऋतु को मोहक, मादक और काम प्रधान ऋतु माना जाता है।
इसके अतिरिक्त होली में जौं भूनने की परंपरा है क्योंकि होली में लगने वाले नव भारतीय संवत् में नवा अन्न खाने की परंपरा बिना जौ के पूरी नहीं की जा सकती। इसी के चलते लोग होलिका की आग से निकलने वाली हल्की लपटों में जौ की हरी कच्ची बाली को आंच दिखाकर रंग खेलने के बाद भोजन करने से पहले दही के साथ जौ को खाकर नवा (नए) अन्न की शुरुआत होने की परंपरा का निर्वहन करते हैं।
होली के दिन पानी बचाने की मुहीम चलाने वाले मूर्खो से निवेदन है की वो मांसाहार, चमड़े की वस्तु, जीन्स पहनना छोड़ देंक्यों? उसके लिए यह चित्र देखें
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वीरेंद्र की लेखनी से
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होली जलाने से तापमान में कमि आयेगा
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