कुछ पुरानी भावुक यादें....!

कुछ पुरानी भावुक यादें.... हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था। हमने यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं। जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं। यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा है। उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि आज कई हज़ार रुपये किलो तक बिक सकता है। उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था। टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है। हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था। उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी। सब आस्तिक थे। दोपहर को किसान, जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा ड...