महिलाओ की बराबरी पुरुषो से क्यों नहीं है आवश्यक?

महिलाओ की बराबरी पुरुषो से क्यों नहीं है आवश्यक? चौंकिए मत! मैंने यह प्रश्न बहुत सोच समझ कर और महिलाओ के हित में पुछा है Feminist अर्थात नारीवादी जो बात बात पर उछल पड़ते है उनको भी थोडा दिमाग लगाना होगा पिछले 50 वर्षो से इस विचार की भूमिका तैयार की गयी और पिछले 25 वर्षो से मूरत रूप दिया गया भजन, भोजन धन और नारी पर्दे में ही अधिक शोभा पाते है अब इसका अर्थ यह मत समझ लेना की उन्हें घूंघट में ही रहना चाहिए इसका वास्तविक अर्थ है कि इन तीनो का आदर-सम्मान और मर्यादा घर में रहने से ही बढती है। ठीक वैसे ही जैसे हीरा तिजोरी में संभाल कर रखा जाता है जिस से उसका मूल्य कम न हो। लेकिन लोहे को बाहर हो पड़े रहने दिया जाता है क्योंकि उसके मूल्य में कोई अंतर नही पड़ता। बाकी आप स्वयं समझदार हो। भगवान द्वारा जब इस संसार में स्त्री पुरूष को भेजा जाता है तब उसके जीवन में चार महत्वपूर्ण कार्य होते है जिन्हे की परदे के अंदर अर्थात् पूर्ण सम्मान व आदर पूर्वक किया जाए तभी उसके सार्थक परिणाम प्राप्त होते है। इन चार कार्यो में प्रथम कार्य भजन जिसे की गौमुख माला के अंदर किया जाए, द्वितीय भोजन जिसे की रसोईघर