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हिमालय की कामधेनु बद्री गाय का सर्वश्रेष्ठ हस्त निर्मित घी

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  हिमालय की कामधेनु बद्री गाय का सर्वश्रेष्ठ हस्त निर्मित घी   हिमालय की कामधेनु बद्री गाय का सर्वश्रेष्ठ हस्त निर्मित घी /  प्रति माह सीमित मात्रा में उपलब्ध है  आर्डर करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें  गोधूली परिवार द्वारा कुछ गोभक्तो को तैयार कर इस घी के निर्माण हेतु नियुक्त किया गया है जिसका उद्देश्य है की उन्हें घी का अच्छा मूल्य देकर सभी को प्रेरणा देकर उनके घर में विलुप्त होने वाली बद्री गाय फिर से बंधवाना। यह घी वैदिक विधि से बिलौना पद्धति से बनवाया जा रहा है हिमालय की कामधेनु ,पहाड़ की बद्री गाय। जिस गाय को कम फायदे की बता कर लोगो ने अपने घरों से निकाल दिया आज उसी गाय की उपयोगिता आज सरकार के साथ साथ देश विदेश के लोग भी मान रहे हैं। पहाड़ की बद्री गाय | पहाड़ी गाय पहाड़ की बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है।इसे “पहाड़ी गाय”के नाम से भी जाना जाता है।ये छोटे कद की गाय होती है।छोटे कद की होने के कारण ये पहाड़ो में आसानी से विचरण कर सकती है। इनका रंग भूरा,लाल,सफेद,कला होता है। इस गाय के कान छोटे से माध्यम आकर के होते हैं।इनकी गर्दन छोटी और पतली होती है। बद्री गायों का औसत द

विवाह अब संस्कार नही केवल एक इवेंट है!

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  अनर्गल पैसों का बोझ बढ़ते बढ़ते “वैदिक वैवाहिक संस्कारों ” को समाप्त कर देगा एक सर्वे के मुताबिक भारत में सालभर में शादियों पर जितना खर्च हो रहा है,  उतनी कई देशों की GDP भी नहीं है सनातन में शादी एक संस्कार होती थी जो अब केवल एक इवेंट बन कर रह गई हैं।  ```पहले शादी समारोह का मतलब दो परिवारों को जुड़ने का एहसास कराते पवित्र विधि विधान, परस्पर दोनों पक्षों की पहचान कराते रीति- रिवाज, नेग भी मान सम्मान होते थे। पहले हल्दी और मेंहदी यह सब घर अंदर हो जाता था किसी को पता भी नहीं होता था।  पहले जो शादियां मंडप में बिना तामझाम के होती थी, वह भी शादियां ही होती थी और तब दाम्पत्य जीवन इससे कहीं ज्यादा सुखी थे परंतु समाज व सोशल मीडिया पर दिखावे का ऐसा भूत चढ़ा है कि किसी को यह भान ही नहीं है कि क्या करना है क्या नहीं ? और यही तो है “वैदिक वैवाहिक संस्कारों ” का अंत ```यह एक दूसरे से ज्यादा आधुनिक और अमीर दिखाने के चक्कर में लोग हद से ज्यादा दिखावा करने लगे हैं``` अड़तालिस किलो की बिटिया को पचास किलो का लहंगा भारी न लगता, माता पिता की अच्छी सीख की तुलना में कई किलो मेकअप हल्का लगता है।  हर इवें

आर्गेनिक बच्चे

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  आर्गेनिक बच्चे यह शीर्षक पढ़कर चेहरे पर हल्की मुस्कान अवश्य आ गई होगी अतः इस मुस्कान को सदैव बनाये रखने के लिए कुछ विचार सांझा कर रहा हूँ। जहां ट्रेन में अन्य बच्चो को हाथ मे कोल्ड ड्रिंक, चिप्स, कुरकुरे, मोबाइल रूपी हानिकारक पदार्थ देख दुख होता है वही अपने बच्चों को कुछ अच्छा खाता देख राजीव भाई के निमित्त इस विचारधारा में आने का गर्व। मुझे याद है कि विवाह के पश्चात मेरी पत्नी ने मेरी कुसंगति में ही मोमोज़, पिज़्ज़ा आदि खाना आरम्भ किया था। यदि राजीव भाई नही मिलते तो बच्चो को भी यही खिलाता। स्वयं रोगी होता बच्चे औऱ पत्नी भी रोगी होते। स्वयं की बीमारियों पर ध्यान दूं या परिवार की। बस इसी में जीवन बीत जाता। मैं मानता भी हूँ और जानता भी हूँ कि बच्चे अपने प्रारब्ध के अनुसार गर्भ ढूंढते है और माता पिता का जीवन स्वर्ग या नर्क बना देते है। अब पीछे कुकर्मो को तो हम बदल नही सकते, परंतु आने वाले जन्मो का तो आज से ही सुधारने का प्रयास भोजन पानी और कर्मो को सुधार कर तो कर ही सकता हूँ। अपने पूर्वजों के दिए इस शरीर का नाश केवल जीभ के स्वाद हेतु कर देना अत्यंत निंदनीय पापकर्म है। परंतु उस शरीर को आने वा

किसका है महत्व, स्वाद या स्वास्थ्य का?

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  किसका है महत्व, स्वाद या स्वास्थ्य का? वैसे इस प्रश्न का उत्तर है कि महत्व तो दोनो का है। जो भोजन केवल स्वाद दे और स्वास्थ्य न दे वह तो हानि करेगा है परंतु जो भोजन केवल स्वास्थ्य दे और स्वाद न दे वह भी कम हानिकारक नही। पहले बाहर जाकर हम घर जैसा खाना ढूंढते थे परंतु अब घर में बाहर जैसा खाना बनाकर खाने लगे है। इन दिनों युवाओं में स्वाद प्रधानता वाला जंक फूड या फास्ट फूड की मांग बढ़ गई है। वे पिज्जा, 'वर्गर, मोमोस और हनी चिली पोटेटो जैसे खाद्य पदार्थ खूब पसंद कर रहे हैं। इनको खाने के बाद पेट खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादा समय तक फास्ट फूड का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। इस कारण धन हानि तो होती ही है, साथ में जन हानि भी सामने आती है।  अक्सर देखने में आता है कि किसी बच्चे या बड़े का जन्म दिवस या कोई खुशी का मौका हो तो बच्चे रेस्त्रां की तरफ भागते हैं। अधिकतर युवाओं ने पेटीज, चिट्ठी चाउमीन और वर्गर जैसे आहार के साथ फेसबुक, व्हॉट्सएप पर स्टेटस लगा रखा है। हमें समझना होगा कि बड़े-बड़े रोगों का जनक फास्ट फूड ही है। चूंकि इस तरह के खाने को एक ही तेल में बार-

मकान नहीं घर बनाओ

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  " मकान " बीते हफ़्ते दो मित्रों ने अपना नया मकान देखने के लिए बुलाया। एक को 11 साल लगे.. मकान बनवाने में दूसरे को 9 साल। इस एक दशक के समय में उन मित्रों ने बस एक ही काम किया ..वह यह कि "मकान बनवाया" ...औऱ उससे पहले 20 साल तक जो काम किया वो यह कि "मकान बनवाने" लायक पैसा जुटाया... यानि जीवन के बेशक़ीमती 30 साल सिर्फ़ "अपना मकान बनवा लूं'' इस फितूर में निकाल दिए मेरी मकान, इंटीरियर, एलिवेशन, लक धक साजसज्जा जैसी चीज़ों में बिल्कुल भी रूचि नही है ..बल्कि साफ़ कहूं ..तॊ अरुचि ही है वे मित्र उच्चता के घमंड से विकृत हुए एक एक कमरे, गैलरी, गार्डन, आर्किटेक्ट की बारीकियां, उनके निर्माण में लगी सामग्री, ख़र्च हुआ पैसा ..आदि का विवरण दे रहे थे..... इधर मैं भी सौजन्यतावश "हूं , हां " अच्छा ", वाह , ग़ज़ब " जैसी प्रतिक्रियाएं देकर उनके अभिमान को पुष्ट किए दे रहा था ! जबकि हक़ीक़त यह थी कि मैंने शायद ही किसी चीज़ को गौर से देखा हो !! बचपन से ही मुझे मकान,गाड़ी,कपड़े जैसी बातों में न्यूनतम रूचि रही है । उनकी रनिंग कॉमेंट्री रुकने का नाम नहीं

नई सामाजिक बीमारी, रिसोर्ट मे शादियां !

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 नई सामाजिक बीमारी   रिसोर्ट मे शादियां !  विवाह सफल हो न हो परंतु उसका समारोह सफल होना आवश्यक है हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की! सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है! अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट या Destination weddings के रूप में शादीया होने लगी है क्यों होने लगी है?  क्योंकि फिल्मों में ऐसी शादियां होती है। तो फिल्मी शादीयों की चमक दमक की नकल तो करनी पड़ेगी।  विवाह सफल हो न हो परंतु नकल सफल होनी आवश्यक है शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं! और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही रिसेप्शन हॉल म

नहीं चाहिए ऐसा समाज जहाँ फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे!

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       फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे यह दावा कोई खोखला नही है ऐसा दावा करने वाली दुनिया में बहुत सारी कंपनियां होंगी जो नकली बच्चे पैदा करेंगे और उससे धन कमाएंगी क्योंकि ऐसा काम सेवा के लिए तो नहीं होने वाला। परंतु बड़ी बात यह है कि भारत में गर्भ संस्कार की परंपरा उसका क्या होगा क्योंकि गोद भराई गर्भ संस्कार आदि जो परंपराएं हैं उन परंपराओं को यह पूरी तरह खत्म कर देंगे क्योंकि भारत जैसा देश ऐसी तकनीक का बहुत बड़ा बाजार बनेगा। आईवीएफ की तरह लोगों को अपने गोद में केवल जीवित दिखने वाला बच्चा चाहिए जो की फैक्ट्री में पैदा हुआ हो। मोबाइल फोन के मॉडल की तरह उनमें जेनेटिक बदलाव बालो का रंग, आंखो का रंग, कद आदि चुन सकेंगे सुनने में तो यह अद्भुत लग रहा है लेकिन जेनेटिक बदलाव से खेलने की यह हरकत आने वाली वह भयानक सच्चाई है जिसे सरकारी संरक्षण मिलेगा। समाज में ऐसे बच्चो को पहचानने के लिए नियम बनाने पड़ेंगे जिससे फैक्ट्री और प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चो की पहचान हो सके। क्योंकि ऐसे बच्चो का गोत्र आदि तो कुछ निर्धारित होगा नही। जेनेटिक बदलाव के कारण और कृत्रिम गर्भ में पलने के कारण उसमे संस्कार