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Showing posts from February, 2020

घर मे बदलाव कठिन है तो देश मे सरल कैसे हो?

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जिस दिन राजीव भाई की चिता जली उसके अगले दिन हो रहा था केजरिवाल जैसे सांप का फन उठाने की तैयारी। *************** अपने घर मे भोजन पानी के नियमो बदलाव कर अपने स्वयं के परिवार को समझाने की जो हिम्मत नही दिखा पाते, वो एक देश मे बदलाव करने को आसान समझते है क्या? अपने बच्चों के भले के लिए हम कई अपनी समझ से या अपनो की राय लेकर निर्णय लेते है परंतु आवश्यक नही की सभी निर्णय सही साबित हो।      भारत विरोधी ताकतों द्वारा एक मोहरे अमूल्य पटनायक को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर 2017 में बनवाया गया, वो आज 29 फरवरी को रिटायर हो रहा है। इस आदमी ने अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ दिल्ली के माहौल को 2017 से आज की स्थिति तक पहुचाने की ज़िम्मेदारी पूरी निभाई। नवंबर 2019 में इसके खुद के डिपार्टमेंट के लोग पुलिस मुख्यालय पर अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए धरना दे रहे थे क्योंकि इसके कार्यकाल में पुलिस के हाथ बांधे हुए थे और पुलिस स्वयं को सुरक्षित अनुभव नही कर रही थी। दंगो के बाद मैंने किसी वीडियो या फ़ोटो में इसे प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते नही देखा परंतु दिल्ली चुनाव के समय बूथ मैनजमेंट करने दौरा करन

अब कुछ ठीक नही है जबसे मैं हिन्दू हो गया हूँ

कुछ ठीक नही है,  जब से मैं हिन्दू हो गया हूँ सब ठीक था जब वो मुस्लिम या ईसाई था और मैं हिन्दू नही था। अब कुछ ठीक नही है जबसे मैं हिन्दू हो गया हूँ। जब से हिन्दू हो गया हूँ, पगला गया हूँ कट्टर हो गया हूँ,  धर्मनिरपेक्ष नही रहा असहिष्णु हो गया हूँ। लेकिन वो तब भी शांतिप्रिय थे और आज भी। वो पैदा होते ही मुस्लिम बन जाते है हमे तो याद दिलाना पड़ता है कोई डॉक्टर इसीलिए नही बनता है कि वह स्वयं बीमार है क्योंकि दूसरे बीमार है। इसीलिए मुझे भारतीय सनातनी बनना पड़ा है क्योंकि बाकी सब इंडियन बन गए है - एक सनातनी हिन्दू वीरेंद्र के विचार कीबॉर्ड रूपी कलम से

हिंदी का पतन: बोली बनती जा रही भाषा!

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हिंदी का पतन: बोली बनती जा रही भाषा! हिंदी को भाषा से बोली बनाने के षड्यंत्र में हम सभी सहभागी !  देहरादून स्टेशन का नाम संस्कृत में लिखने से विवाद क्यों? 8 फरवरी 2020 को 3 महीने के बाद फिर से खुले देहरादून एवं अन्य कुछ स्टेशन का नाम हिंदी अंग्रेज़ी के साथ उर्दू की जगह संस्कृत में भी लिखने का बढ़िया कदम उठाया गया। परंतु दुर्भाग्य इस देश का कि विवाद उठा दिया गया कि संस्कृत में क्यो लिखा? उर्दू में क्यो नही? पारिणाम हुआ कि अब बोर्ड से संस्कृत हटा कर पुनः उर्दू में लिख दिया गया है और उसपर भी विवाद हो गया है। जिसने भी संस्कृत लिखने का साहसिक कार्य किया उसको नमन। परंतु जैसा देश की स्थिति है बोर्ड पर संस्कृत और उर्दू दोनो ही लिख देते तो उचित होता। इस पोस्ट का वास्तविक औचित्य है कि बोर्ड का तो विषय तो कुछ दिन का है परंतु हम दैनिक जीवन में बोलने एवं लिखने में अत्यधिक उर्दू और हिंदी की खिचड़ी बनाकर ही प्रयोग करते है जो एक कड़वी सच्चाई है। अंग्रेज़ी तो कोई प्रयोग करे तो पता चलता है कि अंग्रेज़ी है परंतु जब हिंदी में उर्दू की अशुद्धता प्रवेश कर जाती है वो फिर वह न हिंदी रही न उर्द