Posts

Showing posts from November, 2020

"आंवला नवमी" या "आरोग्य नवमी"

Image
आज "आंवला नवमी" या  "आरोग्य नवमी"  है ।  आँवला के वृक्ष की महिमा का प्रतिष्ठापित करने के लिए इसकी पूजा की जाती है और इसीलिए कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को "आंवला नवमी" या  "आरोग्य नवमी" भी कहा जाता है । गाँवों में इस दिन घर के अंदर भोजन नहीं बनता था । आँवला के पेड़ के नीचे सुबह सुबह साफ सफाई होने लगती थी । आँवला नवमी से एक दिन पहले ही उस स्थान की गाय के गोबर से लिपाई पुताई हो जाती थी । आँवला नवमी के दिन खानदान की सभी स्त्रियाँ इकट्ठी होकर मिट्टी के चूल्हे पर एक साथ पूरे खानदान का भोजन बनाती थी । पुरुष ईंधन और बाल्टी बाल्टी से कूएँ से पानी लाकर देते थे और स्त्रियाँ भोजन बनाती थी । कितनी भी एक दूसरे से मनमुटाव हो , गाँव के सभी लोग एक ही पेड़ के नीचे इक्कट्ठे होकर अपना अपना चूल्हा बनाकर भोजन पकाते थे । आपसी मेल जोल , सौहार्द्र , प्रेम इत्यादि की वृद्धि होती थी । सुबह सुबह आँवला के वृक्ष का पूजन होता था । लोग आँवला की लकड़ी का ही दातौन करते थे । आँवला के वृक्ष की छाया के नीचे ही थाली में भोजन किया जाता था । यह मान्यता थी कि थाली में अगर आँवला के प

वैसी दिवाली के तो अब बस किस्से ही सुनाए जाते है!

Image
वैसी दिवाली के तो अब बस किस्से ही सुनाए जाते है  दीपावली का सुंदर स्वरूप जो 30+ के लोगों ने जीया है उसे गुलज़ार साहब ने सुंदर शब्दों में पिरोया है,शुभकामनाओं सहित *अब चूने में नील मिलाकर पुताई का जमाना नहीं रहा। चवन्नी, अठन्नी का जमाना भी नहीं रहा। फिर भी गुलजार साहब की लिखी यह कविता बेमिसाल है* ..... हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस पाते हैं दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं   *चलो इस बार दीपावली घर पे मनाते हैं ....*  दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं  चवन्नी -अठन्नी पटाखों के लिए बचाते हैं सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं  *चलो इस बार दीपावली घर पे मनाते हैं ....*  बिजली की झालर छत से लटकाते हैं कुछ में मास्टर बल्ब भी लगाते हैं टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं दो-चार बिजली के झटके भी खाते हैं  *चलो इस बार दीपावली घर पे मनाते हैं ....*  दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते