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Showing posts from August, 2020

मोदीजी की थोपी गई सकारात्मक छवि ही देश का काल न बन जाएं!

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मोदीजी की थोपी गई सकारात्मक छवि ही देश का न बन जाएं! ......बहुत खतरनाक महामारी है, मोदी बचा रहा है अन्यथा यहाँ भी सड़कों पर लाशों के ढेर लगे होते, कोई उठाने वाला नहीं होता,  पूरी दुनिया में देखा नहीं क्या? दूसरे देशों में लोग जरूरत न हो तो खिड़की भी नहीं खोलते  और यहाँ कितने ‘अनएजुकेटेड’ और जाहिल लोग है, किसी भी बिना ‘स्टैण्डर्ड’ की दूकान से सामान खरीद लेंगे, गाँव के लोग तो बिलकुल उजड्ड हैं, इनके क्या है फालतू बार बार बाहर निकलेंगे (बेचारा जिस आदमी का काम ही बार बार बाहर जाने का है, वह भी इनके लिए फालतू है), हम तो निकलते ही नहीं हैं किसी के घर भी नहीं जाते, उसके यहाँ पानी भी नहीं पीते, कुछ हो गया तो? भारत  के लोग बहुत लापरवाह हैं, सब्जियां लाते ही साबुन से धोकर दो दिन रख दो फिर काम में लो.....बाहर तो निकलो ही मत आदि आदि और न जाने क्या क्या? पिछले पांच महीने से हमारे पडोसी भाईसाहब और उनके जैसे बहुत लोग यही सब ज्ञान बाँट रहे हैं, मैंने पाया कि इनमें ज्यादातर लोग वे हैं जिनके घर में अच्छा वेतन या पेंशन आती है या अन्य बहुत अच्छे आय के स्त्रोत है और ऐसे लोगों को अपना भविष्य...

ठन्डे चूल्हो पर सिकती राजनीति की बासी रोटियाँ!

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धर्म के मूल में अर्थ (धन) है जिसके बिना सब अनर्थ (निर्धन) है धर्म और राष्ट्र की रक्षा बिना अर्थ के न हुई है न होगी अब लोगों का डर कम हो रहा है। अधिकांश लोगों को समझ आ गया है। सब यही कहते हैं 'कुछ तो गड़बड़ है।' दुकानें खुल गयी हैं। हालांकि फिर भी लोगों को अपने आँख कान को खुला रखना होगा। थाली और ताली पीटकर अब अपना सिर पीटना पड़ रहा है दिए जलाकर अपना कारोबार में ही आग लगवा ली आप लोगों ने दुकानदारी बंद कर अपना रोजगार, व्यापार खुद चौपट किया है। इसके दोषी आप सब खुद हैं। क्योंकि आपलोगों की चुप्पी ने सरकारों का हौसला बढ़ा दिया था। यह गलती फिर से मत कीजिएगा। बीमारी तो बाद में भूख और अवसाद पहले आपको चपेट में ले लेगा। इसलिए आगे से दुकान - रोजगार को बंद न करें। अब सबको एक बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए। किसी भी कीमत पर काम - धाम पर लगाम नहीं लगाने देंगे। अगर ऐसा होता है तो इसके खिलाफ बोलिए। आपके बच्चे को खाना आपका काम और रोजगार ही खिलाएगा। साप्ताहिक बंदी के दिन भी अपने रोजगार को चालू रखें ताकि आपके नुकसान को कवर किया जा सके। सर्दियों में फिर से एक बार हवा उड़ाई जाएगी। उस वक्त फिर हाय तौबा मच...

वामपंथी और क्रन्तिकारी होने में अंतर है!

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वामपंथी और क्रन्तिकारी होने में अंतर है! ********************************** वामपंथियों को अपनी विचारधारा की चिंता है देश से कोई लेना देना नहीं परन्तु हमें केवल अपने देश की और आने वाली पीढ़ी से लेना देना है कहाँ गए बड़े बड़े youtube चैनेलो के कर्ताधर्ता बड़े देशभक्त बने फिरते है, जान देना तो छोड़ो youtube चैनल डिलीट न हो जाये इस डर से इस वायरस के षड्यंत्र पर चुप्पी साध ली Thanks Bharat वाला भी भारत को थैंक्स कहकर इंडिया में चला गया क्या? यही हाल और बहुत से तथाकथित सोशलमीडिया क्रांतिकारियों का है पुष्पेंद्र जी को तो हिन्दू मुस्लिम से फुर्सत नहीं! उनका दोष नहीं है! इस विषय पर 100 एपिसोड बनाने का दावा सुदर्शन चैनल वाले की भी २ एपिसोड दिखा कर हवा निकल गई संघ ने तो जैसे अपने मुँह पर हाथ रखकर ऊपर से मास्क कसकर बाँध लिए है बड़े बड़े तथाकथित संत तो खुद वायरस से डर के बैठे है और नहीं भी डर रहे तो कौन सरकार से उलझे? हमारा मास्क जलाने की बात सुनकर तो कई लोगो को दस्त लग गए मास्क जलाना तो दूर प्रोफाइल पर मास्क विरोधी फोटो का बैनर लगाने की हिम्मत नहीं कर पाए कई तो! सरकार की गलत नीति का ही विरोध हम करते है ल...

कुछ पुरानी भावुक यादें....!

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  कुछ पुरानी भावुक यादें.... हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था। हमने यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं। जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं। यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा है। उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि आज कई हज़ार रुपये किलो तक बिक सकता है। उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था। टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है। हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था। उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी। सब आस्तिक थे। दोपहर को किसान, जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा ड...

टीके से मृत्यु का 2 सप्ताह में तीसरा मामला ! टीकाकरण के बाद कानपुर में दो बच्चों की मौत से मचा हड़कंप, सीएमओ ने स्टाॅक सील कर दिए जांच के आदेश

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टीके से मृत्यु का 2 सप्ताह में तीसरा मामला  ****************************************** दुनिया में एक माता की गोद में अपने हँसते खेलते बच्चे के शव से बड़ा दुःख शायद ही कोई और हो  जिस बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य की कामना से सरकार द्वारा चलाये जा रहे तथाकथित स्वास्थ्य अभियान पर विश्वास कर अपने बच्चो को इन सरकारी चमचो के हाथो में सौंप कर क्या पता था कि बच्चा न तो स्वस्थ मिला न बीमार मिला वह मृत्यु को ही मिला  जब यह सरकारी गुलाम टीके न लगवाने पर माता-पिता से लिखित में मांगते है की यदि टीके न लगाने के कारन बच्चे को कुछ बीमारी हुई तो ज़िम्मेदार माता-पिता होंगे।  अब इस सरकारी तंत्र से पूछो की अपने बच्चे की भलाई माता पिता बेहतर सोचे सकते है या ये सरकारी नौकर जिन्हे ऊपर से आदेश पर बिना बुद्धि के टारगेट पूरा करने की  जल्दी होती है लेकिन अब जब टीके लगने के बाद बच्चे की मृत्यु हो गई अब किसकी ज़िम्मेदारी है? लेकिन नहीं नियम कानून तो सब इनकी संपत्ति है जैसे भी हो तोड़ मरोड़ कर हमें चुप करवा देंगे  अभी के लिए तो हर एक ऐसे समाचार को अधिक से अधिक आग की तरह फैलाएंगे लेकिन हम चुप नहीं...

श्रीराम मंदिर पर अपनी चुप्पी तोड़ता हूँ!

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  श्रीराम मंदिर पर अपनी चुप्पी तोड़ता हूँ  इस कंगाली भरी नकली दीपावली का ठीकरा प्रधानसेवक के सिर फोड़ता हूँ  राम मंदिर की आधारशिला का उत्सव मनाऊँगा जी भर कर, सोचा था  आतिशबाजी, दीपक, मिठाई से उत्सव मनाऊंगा जी भर कर, सोचा था  क्या देख कर हर्ष मनाऊ? मुँह पर गुलामी का कपड़ा या  सड़को पर कोरोना का नकली झगड़ा या  अकारण मरते लोग सोचा था कि 1992 में शुरू हुई लड़ाई आज गंतव्य तक पहुंची है  उठी थी जो गोधरा में कारसेवको की चीत्कार आज गंतव्य तक पहुंची है  ईंटो पत्थर और भावना से राम लला का मंदिर तो बन जायेगा  मन मंदिर में राम के आदर्शो का पालन शायद ही कोई कर पाएगा राजनीति की रोटी सेक रहे है गरीबो के ठंडे चूल्हो पर  आनंद लूट रहे है नेता खाली पड़े सावन के झूलो पर  न तो सन्यासी हो न ही गृहस्थ आश्रमी तुम बन पाए  स्वयं को इतिहास में अमर  करने की भूख लेकर आएं  प्रधानसेवक बन देश को बेचने के सौदे तुम कर आएं  भूल जाऊंगा तुम्हारे सब पाप मान जाऊंगा की सर्वश्रेष्ठ हो आप  बस एक काम ढंग का कर दो  पूरी कर दो एक ब्राह्मण की यह मांग...