श्रीराम मंदिर पर अपनी चुप्पी तोड़ता हूँ!
श्रीराम मंदिर पर अपनी चुप्पी तोड़ता हूँ
इस कंगाली भरी नकली दीपावली का ठीकरा प्रधानसेवक के सिर फोड़ता हूँ
राम मंदिर की आधारशिला का उत्सव मनाऊँगा जी भर कर, सोचा था
आतिशबाजी, दीपक, मिठाई से उत्सव मनाऊंगा जी भर कर, सोचा था
क्या देख कर हर्ष मनाऊ?
मुँह पर गुलामी का कपड़ा या
सड़को पर कोरोना का नकली झगड़ा या
अकारण मरते लोग
सोचा था कि 1992 में शुरू हुई लड़ाई आज गंतव्य तक पहुंची है
उठी थी जो गोधरा में कारसेवको की चीत्कार आज गंतव्य तक पहुंची है
ईंटो पत्थर और भावना से राम लला का मंदिर तो बन जायेगा
मन मंदिर में राम के आदर्शो का पालन शायद ही कोई कर पाएगा
राजनीति की रोटी सेक रहे है गरीबो के ठंडे चूल्हो पर
आनंद लूट रहे है नेता खाली पड़े सावन के झूलो पर
न तो सन्यासी हो न ही गृहस्थ आश्रमी तुम बन पाए
स्वयं को इतिहास में अमर करने की भूख लेकर आएं
प्रधानसेवक बन देश को बेचने के सौदे तुम कर आएं
भूल जाऊंगा तुम्हारे सब पाप
मान जाऊंगा की सर्वश्रेष्ठ हो आप
बस एक काम ढंग का कर दो
पूरी कर दो एक ब्राह्मण की यह मांग
दक्षिणा में गोरक्षा दे दो और चलाते रहो अपना यह सेवक होने का स्वांग
जिनको मेरे शब्दों से पहुची हो ठेस
तो समझ लेना कि वही था उद्देश्य
देख पाओ अपनी किये हर काम का परिणाम
प्रार्थना है ईश्वर से कि आपकी उम्र इतनी लम्बी हो
की आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद करने वाले सारे कामो
का अंजाम अपनी आँखों से देखो
- मन और जीवन में श्रीराम के आदर्शो को धारण करने मे प्रयासरत
वीरेंद्र की कीबोर्ड रूप कलम से
बहुत हिम्मत का काम किया है आपने इतनी बेबाकी से इतना खरा सच बोलकर. आप सही मायनों में दीक्षित जी के अनुगामी हैं. साधुवाद.
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