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Showing posts from May, 2022

आपके नाम के आगे "श्री" दूसरे लगाएं तो ही उचित!

क्या किसी के चरणों में केवल इसीलिए गिर जाऊं क्योंकि वो साधू या संत या ज्ञानी केवल वेशभूषा से दिखता है? दुर्भाग्य है कि आज ज्ञानी व्यक्ति के ज्ञान से लोगो में उसकी वेशभूषा का अधिक महत्व है।   कभी कभी विचार आता है की राजीव भाई चाहते तो अपने ज्ञान के बल पर दाढ़ी बड़ा कर साधू का वेश धारण कर भगवा पहन कर करोड़ो लोगो को अपना अनुयायी बनाकर अपने पीछे चला सकते थे परन्तु उन्होंने यह नहीं किया जबकि उनमे एक संत कहलाने के सभी गुण उपस्थित थे लेकिन आज कुछ लोग जिनको मैं स्वयं भी बहुत अच्छे से जानता हूँ  जो अपने नाम के आगे आचार्य या आर्य, स्वामी, सरस्वती, महाराज आदि लगा कर अपने थोड़े बहुत अर्जित ज्ञान और साधू के वेश धारण कर  लोगो को धोखा दे रहे है। जिनको मैने खुद अनाचरण करते देखा है।  ऐसे ही सरकार ने भी नकली शंकराचार्य बनाकर वास्तविक शंकराचार्यों की छवि मलिन करने की व्यवस्था बनाई हुई है। क्योंकि असली शंकराचार्य जी के समक्ष अपने कुकर्मों को स्वीकार करने का साहस नहीं है।  अगर मुझसे कोई मेरा नाम पूछे तो मैं कहूँगा की "मेरा नाम वीरेंद्र सिंह है" लेकिन अगर मैं कहूँ की "मेरा नाम श्री वीरेंद्र सिंह

जिसे हम मॉडर्न कहते है वो वास्तव में केवल पश्चिमी नकल है!

  जिसे हम मॉडर्न कहते है वो वास्तव में केवल पश्चिमी नकल है जब मैं किसी मुस्लिम परिवार के पांच साल के बच्चे को भी बाक़ायदा नमाज़ पढ़ते देखता हूँ और उनकी बच्चियां भी सिर को ढंक कर रखती है तो लगता है मुस्लिम परिवारों की ये अच्छी चीज़ है कि वो अपना मजहब और अपने संस्कार अपनी अगली पीढ़ी में ज़रूर देते हैं।   कुछ पुचकार कर तो कुछ डराकर, लेकिन उनकी नींव में अपने मूल संस्कार गहरे घुसे होते हैं। यही ख़ूबसूरती सिखों में भी है। सरदार की पगड़ी या उसके केश आदि पर उंगली उठाते ही उसी वक़्त तेज़ आवाज़ आप को रोक देगी।   लगभग हर धर्म में नियमों के पालन पर विशेष जोर दिया जाता है।  हम सनातनी अपने धर्म को चाहें कितना ही पुराने होने का दावा कर लें पर इसका प्रभाव अब सिर्फ सरनेम तक सीमित होता जा रहा है और धीरे धीरे surname भी लगाने में भी शर्म आने लगी है। गोत्र तो शायद ही किसी को पता हो। मैं अक्सर देखता हूँ कि  एक माँ आरती कर रही होती है, उसका बेटा जल्दी में प्रसाद छोड़ जाता है, लड़का कूल-डूड है, उसे इतना ज्ञान है कि प्रसाद आवश्यक नही है। बेटी इसलिए प्रसाद नहीं खाती कि उसमें कैलोरीज़ ज़्यादा हैं, उसे अपनी फिगर की चिंता है।

जो कुत्ता मारे सो कुत्ता, जो कुत्ता पाले सो कुत्ता!

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जो कुत्ता पाले सो कुत्ता जो कुत्ता मारे सो कुत्ता घर में (प्रेशर) कुकर और कुकुर (कुत्ता)  दोनों ही हानिकारक है।    इस पोस्ट का अर्थ यह कदापि नहीं है कि कुत्तो पर अत्याचार हो या उन्हें सडको से हटा दिया जाए।  अपितु जो लोग सडको पर कुत्तो को रोटी आदि प्रतिदिन देते है उनको मेरा प्रणाम है।  सड़क पर घुमते कुत्ते बहुत ज़रूरी है परन्तु घर में साथ रखने के लिए नहीं।   जिनको ऊपर लिखी बात से ठेस पहुंची है उनको और भी ठेस पहुंचगी यह जानकर कि घर में कुत्ता पालने वालो या कुत्ते को स्पर्श करने वालो के द्वारा कोई भी पुण्य कर्म का लाभ कुकुर पालक को नहीं मिलता।   चाहे वह हवन, यज्ञ, दान या किसी भी अन्य प्रकार का सुकर्म हो। यहाँ तक कि कुत्ते को स्पर्श करने के बाद 21 दिन तक यज्ञादि करने की अनुमति भी नहीं है।  जिस देश में अतिथि को देवता स्वरुप माना गया और चौखट पर "स्वागतम"  लिखवाया जाता था उस देश में द्वार पर  "कुत्ते से सावधान" का बोर्ड अब स्वागत करता है।   मुझे तो अभी तक समझ नहीं आया कि घर के किस कुत्ते से सावधान रहने की चेतावनी है?    कितनी वैज्ञानिकता थी हमारे पूर्वजो में जो हमारे यहाँ

लेख: भ्रष्टाचार की महामारी: झूठ बड़ा है तो सच होने का आभास दे रहा है लेकिन है झूठ ही!

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झूठ बड़ा है तो सच होने का आभास दे रहा है   परन्तु सत्य है नहीं  कोरोना के विषय पर सशक्त वीडियो (देखने के लिए क्लिक करें) इस वीडियो को इंटरनेट के हर मंच से हटा दिया गया है क्योंकि उनके अनुसार यह उस श्रेणी में आता है जिसमे बेशर्मी से सच को Conspiracy Theory कहकर दबा दिया जाता है या सच कहने वाले को झूठा साबित कर दिया जाता है।  इंटरनेट पर सब तरह की बकवास और गन्दगी के लिए स्थान है परन्तु इस जैसे वीडियो के लिए नहीं।   इस वीडियो और इन जैसे हज़ारो वीडियो को इंटरनेट से हटा दिया गया है।   वैसे तो यह पूरा वीडियो सच है परन्तु एक बार को मान भी लिया जाए की इस  वीडियो में 100% झूठ है यह भी बहुत बड़ा झूठ होगा।  यदि इस वीडियो में यदि  10% भी सच्चाई है तो यह भी कोई कम खतरनाक नहीं है।  हर सच को झूठ साबित करने वाली हज़ारो वेबसाइट बनाकर किसी विषय को गूगल सर्च करने पर केवल इन षडयंत्रकारियो के द्वारा निर्धारित और नियंत्रित जानकारी हम तक पहुंचे इसकी पूरी रणनीति बनाकर इन्होने हम पर हमला किया है।   जो कमियां पिछली बार के तथाकथित महामारी फ़ैलाने के षड्यंत्र में रह गई थी वो सब इस बार पूरी करके आये है जिसमे इस से प्र

मैकाले ने भारत को जो नुकसान पहुंचाया!

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एक देश को आगे बढ़ने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत होती है जिन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता पर गर्व हो। कट्टरवाद के विपरीत यही सच्चा राष्ट्रवाद है सब कुछ है। इसके लिए एक ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग की भी आवश्यकता है जो अपने समाचार पत्रों, पुस्तकों, चित्रों, मूर्तियों और खेलों में इस गौरव को प्रदर्शित करे। लेकिन इस तरह की समग्र उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, एक देश को अपने समाज के जुड़े बुद्धिजीवियों की आवश्यकता होती है, जो अपनी जड़ों को जानते हैं, जो अपनी संस्कृति की पेचीदगियों, सूक्ष्मताओं और प्रतिभा को समझते हुए बड़े हुए है , परन्तु इसके दोषों के प्रति अंधे नहीं हैं। बुद्धिजीवियों वे हैं जो किसी राष्ट्र के मानस को आकार देते हैं। भारत में, हम आम तौर पर पाते हैं कि यहाँ वहां बुद्धिजीवी मौजूद है, जो कि पश्चिमी बुद्धिजीवियों के बराबर या  श्रेष्ठ है। भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजी में धाराप्रवाह हैं, इसे अंग्रेज़ो से भी बेहतर लिखते हैं, वे पश्चिमी साहित्य के जानकार हैं; वास्तव में, वे अक्सर कैमस, सार्त्र, फ्रायड और जंग को उद्धृत करते हैं; वे पश्चिम में नवीनतम रुझानों को जानते हैं, नवीनतम पुस्तकें पढ़ी हैं, औ

400 वर्ष बर्फ में दबा रहा केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली है !

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केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकूल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र जलसंग्रहण क्षेत्र है। यह मंदिर एक कलाकृति है I कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना जहां ठंड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नही जा सकते I फिर इस मन्दिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया? ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 साल से भी पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है ? 1200

प्यास लगी थी गजब की…मगर पानी मे जहर था…

 प्यास लगी थी गजब की…मगर पानी मे जहर था… पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते. बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!! ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!! वक़्त ने कहा…..काश थोड़ा और सब्र होता!!! सब्र ने कहा….काश थोड़ा और वक़्त होता!!! सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब…।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।। “हुनर” सड़कों पर तमाशा करता है और “किस्मत” महलों में राज करती है!! दौलत की भूख ऐसी लगी कि कमाने निकल गए दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए बच्चो में रहने की फुरसत न मिली कभी फुरसत मिली तो बच्चे खुद कमाने निकल गए “शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी, पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने, वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता”.. अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!! जवानी का लालच दे के बचपन ले गया…. अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. …… लौट आता हूँ वापस घर की तरफ… हर रोज़ थका-हारा, आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ। “थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…!!” भरी जेब ने ‘ दुनिया ‘ की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ‘ अपनो ‘ की.

प्रजा की सहनशक्ति शासक की सबसे बड़ी शक्ति होती है: सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा

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 *प्रकाश पोहरे*, संपादक, दैनिक *`देशोन्नती’*  ईनका साप्ताहिक स्तंभ : दि. 1-05-2022  *हिंदी `प्रहार’ // प्रकाश पोहरे*  *सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा*   *दुनिया भर में अवैज्ञानिक मास्क की सख्ती को अब समाप्त कर दिया गया है, लेकिन भारत में फिर नए सिरे से इसे शुरू किया गया है.*   *अमेरिकी सीनेट में संपूर्ण देश में सार्वजनिक परिवहन के लिए मास्क के आदेश को निरस्त करने के लिए मतदान किया गया.* सीनेट ने मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित किया. इसके जरिये हवाई यात्रा और सार्वजनिक परिवहन के लिए रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) मास्क लगाने आदेश को खत्म किया गया है.   रिपब्लिकन केंटकी सेन रैंड पॉल के नेतृत्व में उक्त प्रस्ताव को 57 के मुकाबले सिर्फ 40 वोट मिले. परिवहन सुरक्षा प्रशासन (टीएसए) ने घोषणा की थी कि सार्वजनिक परिवहन के लिए मौजूदा मास्क (मुखौटा) आदेश को 18 अप्रैल तक बढ़ाया जाएगा. आठ डेमोक्रेट ने पॉल के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और केवल एक रिपब्लिकन ने इसके खिलाफ मतदान किया.   सीनेटर पॉल ने इस दौरान कहा कि वोट काफी है. अनिर्वाचित सरकारी नौकरशाहों ने विज्ञान विरोधी, अनिवार्य यात्रा मास्क जा

Synthetic Preservative - धीमे ज़हर (लाइसेंस देकर जहर बेचने का व्यापार)

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  Synthetic Preservative - धीमे ज़हर-  ********************************** हमारे पूर्वज वैज्ञानिकता के साथ अपना जीवन जीते थे लेकिन ऐसा कभी नही कहा कि हम वैज्ञानिकता से जीते है परंतु आज हम कहने तो विज्ञान के युग मे जी रहे है लेकिन हमारा जीवन जीने का ढंग पूरी तरह अवैज्ञानिक है  ********************************** कभी आपने सोचा कि क्या आप किसी फल का रस घर मे निकालकर और अपने बच्चो को 3 महीने बाद उसे पीने के देती है क्या? आप कहेगी की नही दूंगी क्योंकि वो तो खराब होकर ज़हर बन गया लेकिन जब वही रस डब्बे में पैक करके कई महीनों की expiry date लिखकर कोई कंपनी आपको अच्छी से पैकिंग में बेचती है तो आप क्यो पिलाते हो तो आपका उत्तर होगा कि उसमें तो Preservative होते है।  आज जानिए की सच क्या है?  कुछ दिन पहले दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे आहार मेले में गया। वहां पैक किये हुए केमिकल युक्त भोजन की भरमार थी। शाम को भूख लगी तो आहार मेले में खाने लायक आहार नही मिला। क्योंकि नीचे गूगल ड्राइव के लिंक की इस pdf में वहाँ लगी कुछ कंपनियों के स्टॉल द्वारा बेचे जा रहे synthetic preservative अर्थात जल्दी ख़राब होने वाल