प्रजा की सहनशक्ति शासक की सबसे बड़ी शक्ति होती है: सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा
*प्रकाश पोहरे*, संपादक, दैनिक *`देशोन्नती’*
ईनका साप्ताहिक स्तंभ : दि. 1-05-2022
*हिंदी `प्रहार’ // प्रकाश पोहरे*
*सहनशक्ति की अग्निपरीक्षा*
*दुनिया भर में अवैज्ञानिक मास्क की सख्ती को अब समाप्त कर दिया गया है, लेकिन भारत में फिर नए सिरे से इसे शुरू किया गया है.*
*अमेरिकी सीनेट में संपूर्ण देश में सार्वजनिक परिवहन के लिए मास्क के आदेश को निरस्त करने के लिए मतदान किया गया.* सीनेट ने मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित किया. इसके जरिये हवाई यात्रा और सार्वजनिक परिवहन के लिए रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) मास्क लगाने आदेश को खत्म किया गया है.
रिपब्लिकन केंटकी सेन रैंड पॉल के नेतृत्व में उक्त प्रस्ताव को 57 के मुकाबले सिर्फ 40 वोट मिले. परिवहन सुरक्षा प्रशासन (टीएसए) ने घोषणा की थी कि सार्वजनिक परिवहन के लिए मौजूदा मास्क (मुखौटा) आदेश को 18 अप्रैल तक बढ़ाया जाएगा. आठ डेमोक्रेट ने पॉल के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और केवल एक रिपब्लिकन ने इसके खिलाफ मतदान किया.
सीनेटर पॉल ने इस दौरान कहा कि वोट काफी है. अनिर्वाचित सरकारी नौकरशाहों ने विज्ञान विरोधी, अनिवार्य यात्रा मास्क जारी किए हैं. मतदान के बाद एक बयान में उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए अब आवश्यक संदेश भेज दिया गया है.
मार्च 2020 से अनिर्वाचित नौकरशाहों ने लगातार घोषणा की है कि 'हमें विज्ञान का अनुसरण करना चाहिए.' लेकिन वही नौकरशाह सार्वजनिक परिवहन और हवाई यात्रा करने वाले लोगों पर अप्रभावी और प्रतिबंधात्मक मास्क लगाकर विज्ञान की अवहेलना कर रहे हैं. जबकि पूरी दुनिया कोविड (सर्दी, जुकाम, खांसी) से निपटना सीख रही है, जबकि फेडरल सरकार अभी भी इस छोटी-सी बीमारी से खुद को बचाने के बारे में स्पष्ट, तार्किक सलाह देने के बजाय अपने अवैज्ञानिक जनादेश को बनाए रखने के लिए अपनी जिद से भय का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने आगे कहा कि 'इसलिए, मैं यह राय व्यक्त करता हूं, और मैं इस बकवास को खारिज करने के लिए सीनेट की सराहना करता हूं,' पॉल ने यह स्पष्ट किया.
इसी तरह दुनिया के ज्यादातर देशों ने मास्क का ऑर्डर वापस ले लिया है.
एक तरफ जहां पूरी दुनिया में मास्क और टीकाकरण की सख्ती वापस ली जा रही हैं, वहीं भारत के कई राज्यों में मास्क और टीकाकरण की अनिवार्यता को लेकर सख्ती बरतने के आदेश पारित किए जा रहे हैं. मास्क का उपयोग न करने पर दंडात्मक आदेश भी जारी किए गए हैं, जिसका लोगों ने कड़ा विरोध किया है. कई अदालतों ने इस संबंध में वसूल किए गए जुर्माने को वापस करने का आदेश भी दिया है. हालांकि, यह केवल मास्क और वैक्सीन लॉबी के दबाव में या 'अर्थपूर्ण' व्यवहार के कारण ही है कि भारत में कई राज्यों के मुख्यमंत्री अब अवैज्ञानिक आदेश पारित कर रहे हैं, जिसका लोगों द्वारा कड़ा विरोध किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
इस सन्दर्भ में यहां एक रूपक-कथा देने का मोह मुझसे छूट नहीं रहा है.
एक बार एक बादशाह ने अपने वज़ीर से पूछा, 'शासक की सबसे बड़ी शक्ति क्या है?'
वज़ीर ने कहा, 'प्रजा की सहनशक्ति, जिसकी जांच चतुर शासक हमेशा ही समय-समय पर करता रहता है हुजूर!'
बादशाह ने कहा, 'हमेशा की तरह मैं आपके उत्तर से सहमत नहीं हूं.'
वज़ीर ने कहा, 'हुजूर, यह कहना आसान है कि हम जो नहीं समझते हैं, उससे हम सहमत नहीं हैं, और उसी से फूका हुआ पानी भी बचा रहता है.' अब इसे आपको कार्य अनुभव से ही समझना होगा. जैसा मैं कहता हूँ, वैसा ही आदेश निकालिए.'
बादशाह ने बहुत ही संशयपूर्ण मन से आदेश जारी किया. राजधानी के बीच में एक नदी थी. उस पर केवल एक पुल था. यह राज्य का सबसे महत्वपूर्ण पुल था. लगभग सभी लोगों को इसका इस्तेमाल करना ही पड़ता था. नए आदेश के अनुसार अब पुल का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दो अशरफों का कर (टैक्स) देना पड़ेगा. राजा को डर था कि अगर ऐसा आदेश जारी किया गया, तो लोगों में बहुत असंतोष होगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. लोगों ने टैक्स देना शुरू कर दिया.
बादशाह स्तब्ध रह गया. उन्होंने वजीर से कहा, 'आपकी ज्यादातर बात सही है.'
वज़ीर ने कहा, 'हुजूर, अभी खेल शुरू कहां हुआ है? अब यह कर (टैक्स) दस गुना करो. कल से सभी को 20 अशरफी देने को कहो.'
बादशाह ने कहा, 'क्या तुम मेरे सिंहासन को उखाड़ फेंकने के लिए ये करवा रहे हो?'
वज़ीर जोर से मुस्कुराया.
आखिरकार टैक्स (कर) दस गुना कर दिया गया. लोगों ने थोड़ी-बहुत नाराजगी दिखाकर उसे भी भरना शुरू कर दिया. अब बहुत जरूरी होने पर ही लोग उस पुल का इस्तेमाल करने लगे. इससे नदी किनारे के नाविकों को फायदा होने लगा.
कुछ दिनों बाद वह टैक्स (कर) चालीस अशरफियों तक चला गया. इसके बाद भी लोग टैक्स भरने के लिए लाइन में लगे रहे. वज़ीर ने तब बादशाह को एक भयावह आदेश जारी करने के लिए कहा. इसके अनुसार जो पूल का उपयोग करता है, उसे चालीस अशरफी का कर तो देना ही होगा, साथ ही दस बार जूतों की मार खानी होगी!
इस आदेश के एक दिन बाद ही राजमहल के सामने लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. बादशाह चिंतामग्न बैठा था. वज़ीर आया तो बादशाह ने कहा, 'तुमने ये सब क्या करवा दिया? देखो न, राज्य भर की प्रजा बाहर जमा हो गई है. टैक्स भरो और दस जूते भी खाओ! कौनसी प्रजा इसे बर्दाश्त करेगी?
वज़ीर ने कहा, 'हुजूर, वे जो कह रहे हैं, उसे सुने बिना आप मुझसे सवाल क्यों कर रहे हैं? मैंने अभी-अभी उनकी मांग सुनी है और उसे पूरा करने का आश्वासन देकर ही यहां आया हूं.'
बादशाह काँप उठा और बोला, 'क्या माँग थी उनकी?'
वज़ीर मुस्कुराया और बोला, 'हुजूर, उनकी एक ही शिकायत है कि पुल के दोनों ओर एक ही कर्मचारी है. वही कर वसूल करता है और वही जूते भी मारता है. इसमें काफी समय लग जाता है. इससे लंबी कतारें लग जाती है और काफी देर हमें रुकना पड़ता है. यदि जूते के मारने के लिए प्रत्येक छोर पर अलग-अलग स्टाफ़ रखा जाए, तो हमारा समय बच जाएगा, बस इतनी-सी ही हमारी मांग हैं.
यह सुनकर बादशाह ने अपना माथा पीट लिया!
इसके बाद वजीर की बादशाह द्वारा प्रशंसा की गई. उसका मानदेय बढ़ा दिया गया और परिणामस्वरूप राज्य प्रशासन पर उसकी पकड़ भी मजबूत हो गयी, ये पाठकों को अलग से बताने की जरूरत नहीं है.
आज भारत में जो हो रहा है, उसे देखते हुए मुझे नहीं लगता कि ऊपर वर्णित रूपक-कथा से कुछ अलग है. तथाकथित कोरोना के संदर्भ में आदेश चाहे कितने भी गलत और निराधार क्यों न हो, मास्क का उपयोग करने के लिए कहें या मास्क का उपयोग न करने पर जुर्माना लगाएं, लोग चुपचाप मास्क का उपयोग कर रहे हैं, जुर्माना भर रहे हैं, कोई ज्यादा नहीं बोल रहा है, न कोई शोर या हंगामा कर रहा है. उसमें भी अमीर लोगों ने अब तो मास्क पहनने को प्रतिष्ठा की निशानी बना ली है. चाहे अदालत हो या बड़ी संख्या में अधिकारी या मंत्री, उन्होंने अपनी मेजों के सामने प्लास्टिक के बड़े-बड़े पर्दे या शीशे लगा रखे हैं और यह प्रतिष्ठा या रुतबा दिखाने का एक नया संकेत हो गया है. लोगों के कार्यालय में प्रवेश पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गयी है.
*अवेकन इंडिया मूवमेंट के माध्यम से एड. नीलेश ओझा, साथ ही योहान टेंगरा, अंबर और निशा कोयरी, फिरोज मिठीबोरवाला* और उनके शेकडो सहयोगी अब अदालत में और सड़कों पर इसके खिलाफ लड़ रहे हैं.
*हरियाणा में देवेंद्र बलहारा, बिहार के युवा सांसद चिराग रामविलास पासवान, पूर्व सांसद डॉ. अरुण कुमार, रेणू कुशवाह* व कई अन्य जनप्रतिनिधि, डॉक्टर और शोधकार्टमें *डॉ. श्रीधर चिन्नास्वामी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायो मेडिकल जीनोमिक्स के वैज्ञानिक, महामारी विशेषज्ञ डॉ. अमिताभ बनर्जी, एम्सके डॉ. अरविंद कुशवाहा, डॉ. संजय रॉय और डॉ जगदाले, डॉ. सुजान, डॉ. माया वालेचा, दिल्ली में डॉ. विश्वरूपराय चौधरी, डॉ. तरुण कोठारी, नागपुर के डॉ. तुमाने, डॉ उमेश संखला*, पत्रकारोमे मुंबई से *गिनी अनेजा, दिल्ली के आशुतोष पाठक, अशोक वानखड़े, कपिल बजाज, नागपुर के अविनाश काकड़े और मेरे जैसे कई जागरूक पत्रकार* इस संदर्भ में कलम और व्हिडीओ शो द्वारा कार्यरत है. सड़क पर व जनसामान्य के लिए लड़ने वाले नगर के *देवललीकर, मुंबई के अजिंक्य थोरात, मोना टीचर* जैसे सैकड़ों लोग आजकल जागरूकता बढ़ा रहे हैं.
*टीकाकरण के दुष्परिणाम के संदर्भ में विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद वैक्सीन की दो खुराक लेने के लिए लोग कतार में लग रहे हैं! क्या ये कम था, जो कि लोग अब बूस्टर खुराक भी ले रहे हैं! छोटे बच्चों को स्कूल में टीके की खुराक दी जा रही है और माता-पिता इसके दुष्प्रभावों को जाने बिना ही इसे लेने दे रहे हैं. कोरोना के पिछले ढाई साल में बेसिरपैर के लॉकडाउन के कारण लोगों का कारोबार व काम-धंधे बंद हुए, बेरोजगारी बढ़ गयी, कृषि और किसानों की तबाही हुई. फिर भी सरकार ने भारी कर (टैक्स) बढ़ाए, पेट्रोल-डीजल-गैस, सीमेंट, लोहा, पाइप और अधिकांश आवश्यक वस्तुओं की कीमतों ने आसमान का सीना चीर दिया है, लेकिन लोग बिना किसी उपद्रव के इन सभी चीजों को खरीद रहे हैं और सभी प्रतिबंधों को सहन भी कर रहे हैं. तिस पर भी यह क्या कम है कि जिन्होंने ये पूरा सत्यानाश किया है, उन मोदी का जय-जयकार उनके अंधभक्त कर ही रहे हैं! बोलिये अब....!!*
इसलिए, मुझे पूरा विश्वास है कि अब पाठकगण ऊपर बताई गई रूपक-कथा से पूर्णतः सहमत होंगे कि वह भारत पर शब्दशः लागू होती है.
-----------------------------------------------
(लेखक : *प्रकाश पोहरे*, मुख्य संपादक, `दै.देशोन्नती’, हिंदी दैनिक `राष्ट्रप्रकाश’, साप्ताहिक `कृषकोन्नती’)
संपर्क : 2prakashpohare@gmail.com
***********
वीडियोउ न लोगो के लिए जो समाज के भलाई के लिए काम करने वालो पर ही आरोप लगाने में आनंद अनुभव करते है।
भाई साहब हम आपके इस लेख से पूर्णता सहमत हैं कृपया हमको इसका पीडीएफ उपलब्ध करा दें बहुत मेहरबानी धन्यवाद
ReplyDelete