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Showing posts from May, 2020

घी क्यों और कितना खाएं? - इस विषय पर संक्षिप्त परन्तु तृप्त करने योग्य जानकारी।

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घी क्यों और कितना खाएं? इस विषय पर संक्षिप्त परन्तु तृप्त करने योग्य जानकारी। चाय, हृदय रोगी, मोटापा, जोड़ो के दर्द से मुक्ति सुंदर त्वचा के इक्छुक अवश्य पढ़ें बिना घी की रोटी खाने वालों आपको मुर्ख बनाया गया है, जानिए .....सच्चाई क्या है दोस्तों, हर घर से एक आवाज जरुर आती है, “मेरे लिए बिना घी की रोटी लाना”, आपके घर से भी आती होगी, लेकिन घी को मना करना सीधा सेहत को मना करना है। लोगो तला हुआ या चिकनाहट वाले भोजन में अंतर नही पता अतः वह घी से दूरी बना लेते है। पहले के जमाने में लोग सामान्य दिनचर्या में घी का निसंकोच प्रयोग करते थे। इस लेख में घी का अर्थ है देसी गाय का वैदिक विधि से बिलोने से बना शुद्द देशी घी। मलाई से या किसी और शॉर्टकट से बना घी जैसा पदार्थ घी नही है। घी को अच्छा माना जाता था और कोलेस्ट्रोल और हार्ट अटैक जैसी बीमारियाँ कभी सुनने में भी नही आती थी। लेकिन फिर आरंभ हुआ घी का योजनाबद्ध नकारात्मक एवं गलत प्रचार। बड़ी बड़ी विदेशी कंपनियों ने डॉक्टरों के साथ मिलकर अपने बेकार और अनावश्यक उत्पादों का बाजार खड़ा कराने के लिए लोगों में घी के प्रति भ्रम फैलाया और कहा कि "घी से मोटा

लोकल नही स्वदेशी वो भी उचित औऱ पूर्ण स्वदेशी!

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लोकल नही स्वदेशी वो भी उचित औऱ पूर्ण स्वदेशी           कुछ दिन पहले "उचित स्वदेशी" के शीर्षक वाली एक पोस्ट डाली थी, जिसमे सभी देशवासियों से निवेदन किया था कि स्वदेशी सामान का माध्यम भी स्वदेशी हो तो ही उचित है कोरोना के बाद भी यदि हम भारतवासियों की आँखें न खुली तो भारत क़र्ज़ के ऐसे दुष्चक्र में फँस जायेगा जिसको चुकाते चुकाते हमारी आने वाली पीढ़ियां पूर्ण आर्थिक गुलामी में फस जाएगी।      मैंने यह भी लिखा था कि हो सकता है वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार बड़े बड़े आर्थिक सहायता पैकेज देश को दें परन्तु वह मुख्यतः लोन के माध्यम से ही मिलेगा और यह क़र्ज़ जो किसी नेता को अपनी जेब से नहीं अपितु भारत की प्रजा को ही चुकाने है उसके लिए जापान की तरह स्वावलम्बी बनने का पहला चरण उचित स्वदेशी के माध्यम से ही मिलेगा।      हमारे मोदी जी द्वारा कल दिए राष्ट्र के नाम सन्देश में कुछ नया नहीं लगा जो आशा थी।  वही उन्होंने कहा परन्तु सबसे दुःखद लगा की उन्होंने स्वदेशी शब्द एक बार भी प्रयोग नहीं किया और केवल लोकल शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ स्वदेशी नहीं होता लोकल      अब स्वदेशी शब्द का प्रय

आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं मोदी विरोधी हूँ?

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यह इस देश के एक युवा के मन की बात है ! अब राहुल गाँधी अभी तक युवा नेता है तो मैं भी स्वयं को युवा कह सकता हूँ! जिसकी जैसी दृष्टि होगी उसको इस लेख में वैसा ही अर्थ और भाव नज़र आएगा इसीलिए यदि आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं मोदी विरोधी या प्रशंसक हूँ? तो उसका दोष या श्रेय मुझे नहीं स्वयं को दें! भले ही मैं व्यक्तिगत रूप से कोरोना षड्यंत्र का समर्थक नहीं परन्तु फिर भी जिस प्रकार से मोदी जी के सशक्त नेतृत्व में इस स्थिति से निपटा गया, उसकी मैं प्रशंसा करता हूँ। यही कारण है कि वो सबकी पसंद थे चाहे देश की प्रजा हो या विश्व के अन्य देश। इसी क्षमता के लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। गुजराती व्यक्ति अपना प्रचार करना बहुत अच्छे से जानता है यह उनका भी स्वाभाविक गुण है। यदि यह नेतृत्व कांग्रेस का होता तो जो विनाश कुछ वर्षो में होना था वो इन कुछ महीनो में हो जाता परन्तु ध्यान देने योग्य बात यह है की विनाश टला नहीं है होगा अवश्य। अब मेरी इस पोस्ट को मोदी विरोधी समझो या पक्ष में परन्तु सत्य है कि मैं उनका सबसे बड़ा शुभचिंतक हूँ, जैसे कोई कवि व्यंग्य में किसी को भी लपेट कर मर्यादा में अंत

योगीजी से विनम्र प्रश्न!

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योगीजी से विनम्र प्रश्न योगी आदित्यनाथ के लिए मेरे मन मे बहुत सम्मान है। जो उनके जीवन पर लिखी पुस्तक "The monk who became Chief Minister" पढ़ने के बाद और बढ़ गया। मोदी जी का अच्छा विकल्प है यह मानने लगा हूँ। परंतु हाल ही में एक छोटी सी घटना से योगी जी के लिए एक प्रश्न अनायास ही मस्तिष्क में आया। जो किसी भी प्रकार से उनके प्रति किसी दुर्भावना के अंतर्गत नही उपजा अपितु उनकी ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि उन जैसे निर्भीक सन्यासी को ऐसा निर्णय लेना पड़ा।  यह प्रश्न का विषय है कोरोना lockdown के समय उनके दिवंगत पिता जी के अंतिम संस्कार में न जाने के निर्णय के बारे मे। जैसा कि सबको पता है कि वह एक सन्यासी है  तो प्रश्न यह है कि क्या सन्यासी धर्म के अनुसार किसी सन्यासी को अपने त्यागे हुए परिवार के अंतिम संस्कार में जाने का नियम है? सन्यास लेने के पश्चात अपने माता पिता या परिवार से पूर्णतया विरक्त हो जाता है सन्यास नियम के अनुसार वह सब त्याग देता है तो अपने पिता के अंतिम संस्कार में यदि lockdown नही भी होता तो भी योगी जी शायद नही जाते। परंतु वहां न जाकर उसे कोरोना lockdown का पालन करने का विषय

दुनिया में शेर है भारत, परिक्षण का चूहा नहीं

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दुनिया में शेर है भारत, परिक्षण का चूहा नहीं. क्या आपको पता है? टीको को बनाने और बाजार में उतारने के नियम और मानक अन्य एलॉपथी की दवाइयों के मजूरी वाले मानकों से अलग होते है यदि टीको को बाजार में उतारने के मानक अन्य दवाइयों के मानकों की तरह कर दिए जाए तो संभवतः कोई भी टीका बाजार में उतारने योग्य न हो। इसीलिए कंपनियां कई देशो की गरीब लोगो पर यह परिक्षण उनकी भलाई के नाम पर करती है जो उन्हें बहुत सस्ता पड़ता है टीको के पीछे का आर्थिक लाभ कितना बड़ा है इसका अनुमान केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि बच्चो के टीकाकरण के चार्ट में एक नया टीका जोड़ने से एक कंपनी हज़ारो करोड़ का धंधा करती है और कोरोना का टीका बनाकर दुनिया के हर व्यक्ति को लगाने से होने वाली कमाई इतनी अधिक है कि इस दौड़ में जिसने पहले टीका बना लिया उसके लिए यह सोने की खान साबित होगी पाकिस्तान ने चीन को अपने नागरिको पर कोरोना के टीके के परिक्षण की आज्ञा दी है क्योंकि चीन उसके क़र्ज़ माफ़ करेगा या अन्य प्रकार के लाभ उसको मिल सकते है चीन ने ऐसे ही क़र्ज़ माफ़ी के द्वारा श्रीलंका की एक बंदगाह पर कब्ज़ा कर लिया ह