लोकल नही स्वदेशी वो भी उचित औऱ पूर्ण स्वदेशी!



लोकल नही स्वदेशी वो भी उचित औऱ पूर्ण स्वदेशी





        कुछ दिन पहले "उचित स्वदेशी" के शीर्षक वाली एक पोस्ट डाली थी, जिसमे सभी देशवासियों से निवेदन किया था कि स्वदेशी सामान का माध्यम भी स्वदेशी हो तो ही उचित है


कोरोना के बाद भी यदि हम भारतवासियों की आँखें न खुली तो भारत क़र्ज़ के ऐसे दुष्चक्र में फँस जायेगा जिसको चुकाते चुकाते हमारी आने वाली पीढ़ियां पूर्ण आर्थिक गुलामी में फस जाएगी।


    मैंने यह भी लिखा था कि हो सकता है वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार बड़े बड़े आर्थिक सहायता पैकेज देश को दें परन्तु वह मुख्यतः लोन के माध्यम से ही मिलेगा और यह क़र्ज़ जो किसी नेता को अपनी जेब से नहीं अपितु भारत की प्रजा को ही चुकाने है उसके लिए जापान की तरह स्वावलम्बी बनने का पहला चरण उचित स्वदेशी के माध्यम से ही मिलेगा।

    हमारे मोदी जी द्वारा कल दिए राष्ट्र के नाम सन्देश में कुछ नया नहीं लगा जो आशा थी।  वही उन्होंने कहा परन्तु सबसे दुःखद लगा की उन्होंने स्वदेशी शब्द एक बार भी प्रयोग नहीं किया और केवल लोकल शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ स्वदेशी नहीं होता लोकल

    अब स्वदेशी शब्द का प्रयोग करने में कोई बहुत कठिनाई नहीं थी लोकल-लोकल कहते रहे लेकिन स्वदेशी एक बार नहीं कहा यह उनकी भाषा शैली की निपुणता है जो एक गुजराती की पहचान है क्योंकि उन्हें अच्छे से पता था की स्वदेशी और लोकल शब्द के अर्थ भिन्न होते है। इसे ठीक से समझते है लोकल का अर्थ है


- देसी कंपनी द्वारा विदेशी कच्चे माल या

- विदेशी कंपनी द्वारा देसी कच्चे माल

- देसी कंपनी द्वारा से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सामान


ऐसे कई प्रकार के उत्पाद लोकल कहला सकते है स्वदेशी नहीं इसीलिए उस शब्द का प्रयोग नहीं किया

    और मैं यह भी मानता हूँ की विदेशी समझौतों के कारण शायद स्वदेशी शब्द उसके विरुद्ध हो जाता इसीलिए PM के लोकल का छिपा हुआ अर्थ पूर्ण स्वदेशी है यह मानकर हमे चलना है अर्थात भारत में भारत द्वारा भारत के लोगो के पसीने और भारत के पैसे से भारत की लोकल इकॉनमी में वृद्धि करने वाला उत्पाद ही स्वदेशी होगा


    यदि गहराई से विश्लेषण किया जाए तो समझ आएगा की अब भारत को चीन की तरह एक कचरे का ढेर बनाने की तैयारी है जो विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में फैक्ट्री बनाकर उसमे लोगो को रोज़गार देकर हम अपनी जीडीपी तो बढ़ा लेंगे लेकिन मनमोहन की गलत नीतियों की तरह 30 वर्ष बाद भी आने वाला भारत गन्दगी, बीमारी और ऋण के दुष्चक्र एवं दलदल में फंसा हुआ या और गहरा डूबा हुआ मिलेगा।


मेक इन इंडिया अभियान के लिए माननीय अब्दुल कलाम जी ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा था


'Make in India' campaign though it's "quite ambitious", it has to be ensured that India does not become the low-cost, low-value assembly line of the world.

अर्थात: "मेक इन इंडिया" अभियान हालांकि "काफी महत्वाकांक्षी" है यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत दुनिया की कम लागत वाली, सस्ती वाली असेंबली लाइन बनकर न रह जाए।



    इसका अर्थ है की आज कोरोना के कारण आये आर्थिक प्रलय के कारण सरकार को यह बहाना नहीं मिलना चाहिए की यहाँ उत्पादन के नाम पर चीन की तरह दुनिया भर का कचरा भारत और हमारे भावी पीढ़ियों को झेलना पड़े। क्योंकि जितनी औद्योगिक क्षमता अभी है यदि उतने में ही भारत के मनुष्य, मिटटी, जल, वायु, आकाश और अग्नि सब प्रदूषित हो गए है जिसका उदाहरण lockdown में स्वच्छ वातावरण से मिल गया है तो इन संकीर्ण लक्ष्यों और पैकेज के साथ 5 साल में सरकार वाहवाही लूट तो सकती है लेकिन बिना दूरदर्शिता के इसी त्रुटिपूर्ण व्यवस्था से भारत कितने वर्षो तक स्वस्थ और समृद्ध रह सकता है वह हमे मनमोहन जैसे नाकारा अर्थशास्त्री के निर्णयों के परिणाम के रूप में देख चुके है।


    मोदी जी यदि वास्तव में हिम्मत है तो देश के हर राज्य में बिना किसी सरकारी आज्ञा या हस्तक्षेप के कुटीर उद्योगों की स्थापना और उन्हें अपना माल उत्पादन क्षेत्र के 20 किलोमीटर के दायरे में २ वर्षो तक टैक्स सुविधा के साथ बेचने की अनुमति दे दो या कोई अन्य व्यवस्था जिस से गांव लम्बे समय तक केवल धन से नहीं मन और मानस से समृद्ध बने उसे विकसित करो। बड़ी बड़ी फैक्ट्री लगाकर लोगो को रोज़गार तो दे सकते हो लेकिन आत्मनिर्भरता नहीं। क्योंकि कोरोना जैसी स्थिति में उनको सरकारी मदद पर निर्भर होना पड़ेग जो कि उनके स्वाभिमान और मनोबल के लिए हानिकारक है।

राजीव भाई के शब्दों में:

बाहर से चढ़ाये हुए खून से कब तक भारत माँ को जीवित रख सकते है जब तक उसके शरीर में स्वयं रक्त बनने की क्षमता नहीं उत्पन्न होगी वह शरीर अधिक दिन जीवित नहीं रह सकता"


आने वाली पीढ़ियों को समर्पित

कीबोर्ड रुपी कलम से अपने विचार रखता

- वीरेंद्र

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