आपके नाम के आगे "श्री" दूसरे लगाएं तो ही उचित!
क्या किसी के चरणों में केवल इसीलिए गिर जाऊं क्योंकि वो साधू या संत या ज्ञानी केवल वेशभूषा से दिखता है?
दुर्भाग्य है कि आज ज्ञानी व्यक्ति के ज्ञान से लोगो में उसकी वेशभूषा का अधिक महत्व है।
कभी कभी विचार आता है की राजीव भाई चाहते तो अपने ज्ञान के बल पर दाढ़ी बड़ा कर साधू का वेश धारण कर भगवा पहन कर करोड़ो लोगो को अपना अनुयायी बनाकर अपने पीछे चला सकते थे परन्तु उन्होंने यह नहीं किया जबकि उनमे एक संत कहलाने के सभी गुण उपस्थित थे
लेकिन आज कुछ लोग जिनको मैं स्वयं भी बहुत अच्छे से जानता हूँ जो अपने नाम के आगे आचार्य या आर्य, स्वामी, सरस्वती, महाराज आदि लगा कर अपने थोड़े बहुत अर्जित ज्ञान और साधू के वेश धारण कर लोगो को धोखा दे रहे है। जिनको मैने खुद अनाचरण करते देखा है।
ऐसे ही सरकार ने भी नकली शंकराचार्य बनाकर वास्तविक शंकराचार्यों की छवि मलिन करने की व्यवस्था बनाई हुई है। क्योंकि असली शंकराचार्य जी के समक्ष अपने कुकर्मों को स्वीकार करने का साहस नहीं है।
अगर मुझसे कोई मेरा नाम पूछे तो मैं कहूँगा की
"मेरा नाम वीरेंद्र सिंह है"
लेकिन अगर मैं कहूँ की
"मेरा नाम श्री वीरेंद्र सिंह है"
तो आप हँसेंगे मुझ पर क्योंकि स्वयं के नाम के आगे श्री लगाना सही नही। दूसरा व्यक्ति मुझे श्री वीरेंद्र सिंह कहकर बुलाए तो ही उचित।
ठीक इसी प्रकार मुझे लगता है जब मैं देखता हूँ की लोग अपने नाम के आगे आचार्य, आर्य और अन्य विशेषण लगा लेते है।
आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ, शिष्ट या सज्जन व्यक्ति
परंतु कितना अच्छा हो की हम स्वयं को यह उपाधि न देकर दूसरो को हमारे आचरण के अनुसार इसका निर्णय लेने दे की हम आर्य या आचार्य है की नहीं ।
अब कोई तर्क देगा की इसमें क्या बुराई है ?
तो मैं कहूँगा की बुराई यह है की अपने सीमित ज्ञान के कारण लोगो के बीच जाकर अगर कही मुर्ख साबित हो गए तो ऐसे लोग वास्तविक साधू-संतो के नाम पर कलंक लगा देते है
अगर वेशभूषा के साथ ज्ञान भी हो तो फिर कोई परेशानी नहीं
परन्तु ज्ञान बिना ज्ञानी की वेशभूषा किसी काम की नहीं
कृपया ऐसे लोगो को बढ़ावा न दे
- वीरेंद्र
VirenderSingh.in
Gaudhuli.com
आपका संकेत मुझे मिल गया
ReplyDeleteकौन है वह
Deleteसही कहा आपने
ReplyDeleteहम तो नहि देते ऐसे लोगो को बढावा
ReplyDeleteजी श्रीमान जी आपने सत्य कहा
ReplyDeleteजो सच में सत्य की खोज कर रहे होते हैं वह पाखंड से बचते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।
ReplyDeleteजिसके अंदर झूठ का आकर्षण बचा होता है, वह हि झूंटे मायाजाल में अटकता है।
आपकी निष्पक्ष दृष्टि को नमन।प्रेम एवं शुभकामनाएं।
कोन है भाई एसा ज्ञानी जो अज्ञान को दृशाता है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है
ReplyDeleteसहमत हैं
ATI sundar
ReplyDeleteRespected shri VirenderSingh jee ko saadar naman, vandan. Aapkaa kahnaa bilkul sahee hai. (+91-9753219048)
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