हिंदी का पतन: बोली बनती जा रही भाषा!


हिंदी का पतन: बोली बनती जा रही भाषा!

हिंदी को भाषा से बोली बनाने के षड्यंत्र में हम सभी सहभागी!

 देहरादून स्टेशन का नाम संस्कृत में लिखने से विवाद क्यों?

8 फरवरी 2020 को 3 महीने के बाद फिर से खुले देहरादून एवं अन्य कुछ स्टेशन का नाम हिंदी अंग्रेज़ी के साथ उर्दू की जगह संस्कृत में भी लिखने का बढ़िया कदम उठाया गया।

परंतु दुर्भाग्य इस देश का कि विवाद उठा दिया गया कि
संस्कृत में क्यो लिखा?
उर्दू में क्यो नही?

पारिणाम हुआ कि अब बोर्ड से संस्कृत हटा कर पुनः उर्दू में लिख दिया गया है और उसपर भी विवाद हो गया है।

जिसने भी संस्कृत लिखने का साहसिक कार्य किया उसको नमन। परंतु जैसा देश की स्थिति है बोर्ड पर संस्कृत और उर्दू दोनो ही लिख देते तो उचित होता।

इस पोस्ट का वास्तविक औचित्य है कि बोर्ड का तो विषय तो कुछ दिन का है परंतु हम दैनिक जीवन में बोलने एवं लिखने में अत्यधिक उर्दू और हिंदी की खिचड़ी बनाकर ही प्रयोग करते है जो एक कड़वी सच्चाई है।

अंग्रेज़ी तो कोई प्रयोग करे तो पता चलता है कि अंग्रेज़ी है परंतु जब हिंदी में उर्दू की अशुद्धता प्रवेश कर जाती है वो फिर वह न हिंदी रही न उर्दू और ऐसा मिश्रण भाषा नही बोली कहलायेगा।
क्योंकि व्याकरण हिंदी का परिभाषित है इस मिश्रण पर तो वह व्याकरण के नियम लागू नही होते। अतः वह भाषा रही कहाँ? बिना व्याकरण  के वह बोली ही रह गई।

विचार किया तो लगा कि भविष्य में कोई नई भाषा बन जाएगी। या हो सकता कि "हिंदू" शब्द हिंदी के "हिं" औऱ उर्दू के "दू" से मिलकर तो नही बना! (व्यंग्य)

कैप्टन व्योम 
नाम का एक धारावाहिक दूरदर्शन पर बचपन मे देखते थे जिसमें हॉलीवुड के Star Wars फ़िल्म से प्रेरित होकर भविष्य में अंतरिक्ष मे भारत के प्रभुत्व को दिखाया जाता है पूरा धारावाहिक अंतरिक्ष मे ही प्रस्तुत किया जाता है। इसका उल्लेख इस पोस्ट में करने का औचित्य है कि उस भविष्य की पृष्ठभूमि वाले धारावाहिक में यथासंभव शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया गया था जो कि भविष्य में हिंदी और विशेषकर सर्वश्रेष्ठ घोषित वैज्ञानिक भाषा संस्कृत के महत्व को दर्शाने की दिशा में एक अच्छी पहल थी।

चाणक्य एवं उपनिषद गंगा जैसे धारावाहिकों के निर्माता चंद्र प्रकाश द्विवेदी जी जैसे विद्वानों द्वारा प्रयुक्त भाषा के स्तर का कोई मेल दूर दूर तक नही।


आएं हम प्रयास करें कि आज से ही अपनी बोलचाल आदि मे उर्दू के शब्दो का उच्चारण रोकना होगा तथा अपनी मातृभाषा का प्रयोग बिना मिलावट करेंगे।

 मैं स्वयं लगभग 9 वर्षो के अभ्यास के पश्चात भी उर्दू के शब्दों का प्रयोग पूर्ण रूप से बंद नही कर पाया हूँ। इस लेख में भी कई हिंदी शब्द न सूझने के कारण उर्दू के प्रयोग करने पड़े ।

सरल नही है परंतु असंभव भी नही। जिस से की कुछ पीढ़ियों बाद उर्दू को लिखने की आवश्यकता न रहे।

भ्रमित भारतीयों के भ्रम का भ्रमण

वीरेंद्र की कीबोर्ड रूपी कलम से
सहसंस्थापक गोधूली परिवार (Gaudhuli.com)

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