पेट में मोम (WAX) जमा कैसे करें?





पेट में मोम (WAX) जमा कैसे करें?



यह बहुत आसान है!

 Disposable पेपर कप में चाय, पानी दूध आदि आदि प्रतिदिन प्रयोग करके यह आसानी से किया जा सकता है 

आइये जानते है कैसे?
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आखिरकार, आज का युग सफाई पसंद है वो जीवन में हर पहलु में डिस्पोजेबल (Disposable) तकनीक का प्रयोग करता है चाहे वो रिश्ते हो या बर्तन

USE and THROW!

विशेषकर शादियों में, बड़े बड़े कॉर्पोरेट दफ्तरों में छोटे छोटे ढाबो पर, चाय की दुकान पर, ट्रेन में, बस में और न जाने कहाँ कहाँ सब विदेशियों की तरह डिस्पोजेबल प्रयोग करने लगे है।

क्योंकि सब बहुत पढ़े लिखे है कोई गलत काम नहीं करते। बर्तन जूठा भी नहीं करते और यह सोचकर की यह प्लास्टिक का कचरा चन्द्रमा पर चला जायेगा अपनी जीवन शैली में सब कुछ Disposable प्रयोग करने लगे।

वैसे लिख तो दिया है की जनहित में जारी लेकिन ऐसे जन का हित करने के मन नहीं है जो जानबूझ कर अपनी आने वाली पीढियों के लिए संस्कारो की नहीं बल्कि दिल्ली जैसे कचरे के पहाड़ और बीमारी से भरे एक समाज की विरासत छोड़ कर जायेगा।




कैसे बनता है यह?

सामान्यतः यदि आप अपने बच्चे की स्कूल की कॉपी से एक पेज फाड़कर उस कागज़ के कप बनाये और उसमें चाय, दूध या पानी पीने का प्रयास करें तो नही हो पायेगा क्योंकि कागज़ गल जाएगा। परंतु पेपर कप के नाम से बिकने वाला यह कप नही गलता। क्यो?


इसमें भी कागज़ ही होता है परंतु कागज़ को गलने से बचाने के लिए इसके अंदर की ओर निर्धारित मानकों के अनुसार या polymer coatings या सामान्य भाषा में कहे तो मोम जैसे पदार्थ की परत चढ़ाई जाती है। यही परत गरम पदार्थ के साथ घुलकर हमारे पेट मे पहुंच जाएगी। 




यदि आधुनिक विज्ञान की माने तो उनके अनुसार शरीर द्वारा थोड़े बहुत मोम को निकालने की क्षमता होती है परंतु अधिक मात्रा जाने पर यह पेट के कई भयंकर विकार उत्पन्न करेगा। इस मोम की परत की मोटाई कितनी हो इसके मानक भी तय है परंतु भारत में मानकों के अनुसार कार्य नही होता अतः शुभ-लाभ के स्थान पर केवल लाभ कमाना ही मानक होता है।

वर्ष 2016 में यह जानकारी फेसबुक पर डाली थी। यह पोस्ट देखने के बाद पेपर कप को बनाने वाले एक फैक्ट्री के मालिक का कॉल आया और बोले कि आपने गलत जानकारी दी है क्योंकि आप स्वयं आकर देख सकते है हम किसी भी प्रकार का गलत पदार्थ इस कप को बनाने में प्रयोग नहीं करते। मैंने कहा यदि ऐसा है तो मैं देखना चाहूँगा। किसी की जीविका पर मेरे कारण संकट आये यह मुझे स्वीकार्य न था

मैं वहां पंहुचा तो देखा की वह व्यक्ति सही कह रहा था की उसकी फैक्ट्री में मोम की परत नहीं चढ़ाई जा रही। क्योंकि वहां केवल कप को आकार देने की मशीन थी। फिर मैंने ध्यान दिया की उस कप को बनाने वाला कागज़ रिलायंस (अम्बानी वाली) से आता है जिसपर यह परत पहले से ही चढ़ी होती है क्योंकि कच्चे तेल संशोधन (Refining) का एक उत्पाद यह मोम होता है जो रिलायंस के पास भरपूर मात्रा में है। उस भाई ने सही कहा था की उसकी फैक्ट्री में यह मोम नहीं मिलाया जाता परन्तु उस कागज़ में यह परत चढ़कर आती है जिसको मशीन से काट जोड़कर उसे कप का केवल आकार देने का काम वहां होता है

मैं उस फैक्ट्री भाई से कहना चाहूँगा की इश्वर आप को अपने कार्य में खूब सफलता दे और मेरी इस पोस्ट से आपकी जीविका पर कोई संकट नहीं आयेगा क्योंकि ऐसी जानकारी को केवल समझदार लोग ही पालन करेंगे और आजकल अधिकतर पढ़े लिखे विवेकहीन सफाई पसंद लोगो को मेरी इस पोस्ट से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि मैंने हाल में ही ट्रेन और कई स्थानों पर देखा है की यह लोग खाना खाने से पहले हाथ नहीं धोते अपितु sanitizer से हाथ को कीटाणु मुक्त करके ही खाना खाते है। इस विषय पर किसी और पोस्ट में जानकारी दूंगा तब तक

विवेक हीन और चेतना शून्य लोग कृपया अपने शरीर में विष घोलना जारी रखें

क्योंकि बहुप्रजा से अच्छी है सुप्रजा

जय गोमाता
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- वीरेंद्र की लेखनी से
सह-संस्थापक
गोधूली परिवार
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Comments

  1. धन्यवाद भैया इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारे इधर प्रतिदिन लोग चाय में प्लास्टिक व पेपर के कप का प्रयोग करते है । अब जितना हो सके मैं उन्हें सचेत करूँगा । मैं आपकी पोस्ट कॉपी करके व्हाट्सएप पर शेयर करता हूं🙏
    जय हिंद गुरुदेव राजीव जी अमर रहे🇮🇳

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  2. बहुत बढ़िया जानकारी भाई।

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  3. Respected shri VirenderSingh jee ko saadar naman, vandan. (+91-9753219048)

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  4. महत्वपूर्ण किंतु अग्राह्य

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  5. आज से ओर अभी से बिलकुल बन्द

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  6. पढ़े लिखे महा बुद्धिमान व्यक्तियों को समझना व्यर्थ है । जिसे मरना है वो मरे।पाप करने से भी नही डरते , बस भौतिक सुख चाहिए वो भी इसी क्षण, उसके लिए किसी भी जीव को हानि पहुंचाए, माँ प्रकृति को दूषित करें , गौ माता पर अत्याचार करें या उसका अनुमोदन करें इन्हे कोई फर्क नही पड़ता। ऐसे स्वार्थी लोगो के लिए चिंतित होना व्यर्थ है।

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  7. धन्यवाद
    हम जैसे पेहले चुप थे अब भी चुप हैं और आगे भी चुप ही रहेंगे वो क्या है की बोल कर तकल्लुफ लेने की बजाय हम अपना और अपने भविष्य का डॉक्टर के यहा इलाज कराके तकल्लुफ लेने मे ज्यादा विश्वास करते है क्या करे साहब हम पब्लिक जो हैं, हे हे

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