*कश्यपसंहिता में वर्णित 3 हज़ार वर्ष पुराना आयुर्वेदिक टीकाकरण - स्वर्णप्राशन* भारत की इस धरा ने - हमारी साँस्कृतिक परंपरा ने कई महापुरुषो, संतो, शूरवीरो, बौद्धिको, महान तत्ववेत्ताओ को जन्म दिया है। पर इस परंपरा को खडी करने और इतने सारे महान चरित्रो का संगोपन कैसे किया होगा यह हमने कभी सोचा है क्या? हमारे प्राचिन ऋषिओं ने इसके लिये अथाह परिश्रम उठाया है। समाज स्वस्थ - निरोगी बने इसके लिये आज कई सामाजिक, धार्मिक संस्थान और खुद सरकार भी चिंतित और कार्यरत है। अरबो का बजट हमारे आरोग्य की रक्षा के लिये सरकार और अंतराष्ट्रीय संस्थाएँ खर्च करती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के केम्प, सहायता, जागृकता बढें इसके लिये विज्ञापन, फरजियात टीकाकरण द्वारा बहुत ही जोरो से प्रयत्न होता रहता है। कभी कभी इसके परिणमो की ओर दृष्टि करें तो प्रयत्न के समक्ष परिणाम बहुत ही अल्प मात्रा में दिखता है । समाज में शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढी है, पर मानसिक स्वास्थ्य का क्या? उसके लिये कभी किसी ने विचार किया है क्या?...... मानसिक रोग, निर्माल्य एवं असंस्कारी समाज अगर दीर्घायुष्य पाता है तो आश
Ghar lautne jaisha anubhav
ReplyDeleteRajiv bhai ko dekha nahi phir bhi unka gyan margdarshan kar rahi