मूल से अधिक प्यारा ब्याज होता है!
मूल से अधिक प्यारा ब्याज होता है
मूल से अधिक प्यारा ब्याज होता है
इस चित्र में खिड़की के बाहर मेरे पिता किसी काम से दिल्ली रुके और हमे छोड़ने स्टेशन पर आये थे या कहूँ की अपने पोता पोती को छोड़ने आए थे।


ऐसे में कुछ नया कहने को नही होता बस अपनो की वो झलक भर दिख जाए उसी मे जीवन निहाल हो जाता है।
पोता चलती गाड़ी के आनंद में मस्त था और दादा को हाथ हिलाते नही देखा तो उसके आनंद में ही अपना आनंद खोज कर दादा ने गाड़ी के साथ अपनी छोटी सी दौड़ समाप्त की और मन में संतोष किया की चलो अच्छा हुआ उसने मुझे नही देखा। वो भूल गए की गाड़ी के साथ उनकी दौड़ दिखने के लिए ही थी।
अपने बच्चो के लिए ममता का आनंद माता-पिता बने बिना नही अनुभव किया जा सकता। जब तक हम पिता नही बनते तब तक अपने माता-पिता के हमारे के प्रति इतने प्रेम का कारण समझ से परे ही होता है।

लेकिन पोता पोती के सामने तो अपने बच्चो की भी कोई बिसात नही।
ऐसा लगता है जैसे बच्चे मूल है और पोता पोती ब्याज।
अजीब सा है दादा-दादी, नाना नानी का प्यार
शायद जब हम बनेंगे तो ही हम भी समझेंगे।
- विरेन्द्र की कलम से
Shi kha Virender bhai
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