पोलियो के खुराक से बच्चो में हो रहा लकवा
पोलियो के खुराक से बच्चो में हो रहा लकवा
-दुनिया में प्राकृतिक रूप से होने वाले पोलियो मुकाबले पोलियो के टीके के कारण ज़्यादा बच्चे पोलियो के शिकार हो रहे है जो बहुत ही गंभीर स्थिति है।
-40 देशों की सरकारों ने कई वर्ष पहले पोलियो से जुड़े खतरों के कारण अपने देशो में ओपीवी पर रोक लगा दी थी।
- सुविधा के लिए, भारत जैसे कई देशों द्वारा नैतिक मुद्दों की अनदेखी की गई है; मौजूदा कार्यक्रम की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
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नई दिल्ली: पिछले पांच वर्षों में भारत में कम से कम 400 बच्चों में ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) प्राप्त करने के बाद पोलियो विकसित हुआ है , एक शीर्ष भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ ने एक हाल ही में प्रकाशित एक वैज्ञानिक पेपर में खुलासा किया है जिसमे कि ओपीवी के निरंतर उपयोग की नैतिकता पर सवाल उठता है ।
टी जैकब जॉन, जो क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में एक प्रोफेसर है और जिन्होंने पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार को पोलियो उन्मूलन नीतियों पर सलाह दी है, ने ओपीवी के निरंतर उपयोग को एक "नैतिक विसंगति" के रूप में वर्णित किया है जो बच्चों के लिए पोलियो का कारण बन रहा है जो यदि टीका नहीं दिया जाता तो कभी पोलियो नहीं होता।
भारत 2011 से पोलियो वायरस से मुक्त घोषित है, लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ओपीवी के आज तक एक दुर्लभ प्रतिकूल प्रभाव वाले पोलियो से होने वाले लकवे अर्थात पक्षाघात (Vaccine Associated Polio Paralysis - VAPP) के टीके पर डेटा जारी नहीं किया है, जो शिशु पक्षाघात का कारण बनता है।
1994 से पल्स पोलियो कार्यक्रम के माध्यम से देश में 6 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो बूँद की कई खुराकें प्राप्त होती हैं - जिनमें जीवित पोलियो वायरस होता हैं सरकार ने 2015 में बच्चों के लिए इंजेक्शन वाली पोलियो वायरस (IPV) का टीका भी लॉन्च किया था।
जॉन ने मौजूदा नीति को चुनौती देते हुए कहा कि सरकार ने ओपीवी जारी रखा है क्योंकि "यह आसान और व्यावसायिक रूप से अधिक व्यावहारिक है"। “सुविधा के लिए, भारत जैसे कई देशों द्वारा नैतिक मुद्दों की अनदेखी की गई है; मौजूदा कार्यक्रम की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
उन्होंने Indian Journal of Ethical Issues में मुंबई के बाल रोग विशेषज्ञ धान्या धर्मपालन के साथ संयुक्त रूप से विश्लेषण प्रकाशित किया है। जॉन ने बताया है कि लगभग 40 देशों की सरकारों ने कई वर्ष पहले पोलियो से जुड़े खतरों के कारण अपने देशो में ओपीवी पर रोक लगा दी थी।
दुनिया भर में बच्चों को दी जाने वाली ओपीवी में, टाइप 2 वैक्सीन वायरस का 2016 में उपयोग बंद कर दिया गया था। परन्तु इस टीके में वायरस के टाइप 1 और 3 स्ट्रेन अभी भी रहते हैं जो VAPP का कारण बन सकते हैं। दुर्भाग्य है या या कोई षड्यंत्र की भारत में जहाँ बच्चों को 14 सप्ताह के बच्चे को इंजेक्शन वाले टीके अर्थात IPV की केवल एक खुराक देने की सिफारिश है वही उनको 14 सप्ताह और 6 साल की आयु में दो खुराक दी जा रही है जो की बच्चो के साथ एक खिलवाड़ है।
प्रकाशित शोध में लिखा है कि पिछले पांच वर्षों में, विश्व स्तर पर, वैक्सीन वायरस के कारण होने वाले पोलियो के मामलों ने प्राकृतिक रूप से होने वाले पोलियो वायरस के कारण होने वाले पोलियो के मामलों को पछाड़ दिया है। अर्थात दुनिया में प्राकृतिक रूप से होने वाले पोलियो मुकाबले पोलियो के टीके के कारण ज़्यादा बच्चे पोलियो के शिकार हो रहे है जो बहुत ही गंभीर स्थिति है।
हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि पीलिओ की बूँद वाली खुराक OPV से जुड़े लाभ उस से होने वाले के खतरों के मुकाबले कहीं अधिक है। एक अधिकारी ने कहा, " क्योंकि पोलियो उन्मूलन में पिछले 25 वर्षों में मिले परिणामो के कारण हमने ओपीवी पर भरोसा किया है "इसके अलावा, हमारे पास पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम पर डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश के पालन के अतिरिक्त कोई और तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है।"
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि जब तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में पोलियो के केस आना बंद नहीं होंगे, तब तक भारत से ओपीवी अर्थात पोलियो उन्मूलन अभियान वापस लेना मुश्किल होगा।
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(ऊपर का समाचार अंग्रेजी अखबार दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार की 23 अक्टूबर की अंग्रेजी में छपी खबर का हिंदी अनुवाद है)
तो अब प्रश्न यह उठता है की अपने बच्चो के लिए यदि सरकारों पर विश्वास न करें तो किस पर करें?
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समाचार का स्त्रोत :
The New Indian Express News about Polio
अन्य सम्बंधित समाचार :
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ऊपर का समाचार अंग्रेजी अखबार दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार की 23 अक्टूबर की अंग्रेजी में छपी खबर का हिंदी अनुवाद है
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जनहित में प्रेषित
वीरेंद्र
सह-संस्थापक
गोधूलि परिवार
पोलीओ के खतरे से बचने के लिए पोलीसो जैसे आदी डोस लेना ही बच्चो को सुरक्षित रख सकता है ऐसी धारणा जो बन चुकी है या इसे अंधा भरोसा भी कहा जा सकता है इसे माता पिता के मन से निकालना अपने आप में एक चुनौती नजर आती है..
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