घर मे बदलाव कठिन है तो देश मे सरल कैसे हो?



जिस दिन राजीव भाई की चिता जली उसके अगले दिन हो रहा था केजरिवाल जैसे सांप का फन उठाने की तैयारी।
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अपने घर मे भोजन पानी के नियमो बदलाव कर अपने स्वयं के परिवार को समझाने की जो हिम्मत नही दिखा पाते, वो एक देश मे बदलाव करने को आसान समझते है क्या? अपने बच्चों के भले के लिए हम कई अपनी समझ से या अपनो की राय लेकर निर्णय लेते है परंतु आवश्यक नही की सभी निर्णय सही साबित हो।

     भारत विरोधी ताकतों द्वारा एक मोहरे अमूल्य पटनायक को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर 2017 में बनवाया गया, वो आज 29 फरवरी को रिटायर हो रहा है। इस आदमी ने अपनी पूरी जिम्मेदारी के साथ दिल्ली के माहौल को 2017 से आज की स्थिति तक पहुचाने की ज़िम्मेदारी पूरी निभाई।

नवंबर 2019 में इसके खुद के डिपार्टमेंट के लोग पुलिस मुख्यालय पर अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए धरना दे रहे थे क्योंकि इसके कार्यकाल में पुलिस के हाथ बांधे हुए थे और पुलिस स्वयं को सुरक्षित अनुभव नही कर रही थी।


दंगो के बाद मैंने किसी वीडियो या फ़ोटो में इसे प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते नही देखा परंतु दिल्ली चुनाव के समय बूथ मैनजमेंट करने दौरा करने अवश्य पहुचा था ये। अमित शाह भी गलतीं कर बैठे की इस पर विश्वाश कर लिया। जब गलतीं का पता चला तो पटनायक को बाईपास कर NSA अजित डोभाल को भेजा, जिनके साथ कमिश्नर को कही नही देखेंगे आप! क्योंकि अमित शाह को अब पटनायक पर भरोसा नही था। यह नौकरशाही जिस गहराई तक सनी हुई है उसकी तह तक किसी भी नए PM या उनके मंत्रिमंडल को जाने में समय लगेगा।

दंगे वाले दिन भी कुछ पीड़ित हिन्दू परिवारों ने वीडियो में कहा कि पुलिस वाले हमे बचाने की जगह अपनी जान बचा रहे थे क्योंकि दंगाई उनपर छतों से तेज़ाब के पैकेट फेंक रहे थे और उन पुलिस वालो के अनुसार कमिश्नर की ओर से गोली चलाने के आदेश नही थे।
जिन लोगो के इशारे पर यह सब हुआ उन्होंने तेज़ाब, पेट्रोल बम, ईंटे, पत्थर, गुलेल सब एकत्रित किया परंतु पुलिस महकमा पटनायक कर कारण पंगु था।

योगी आदित्यनाथ की तरह क्या दिल्ली में छद्मचर अर्थात मुख्यमंत्री केजरीवाल में हिम्मत है की वो नुकसान की भरपाई दंगाइयों की संपत्ति नीलाम कर वसूले? उल्टा वो तो अपने हत्यारे पार्षद के वीडियो में दंगा करते दिखने के बावजूद भी उसे निर्दोष करार दे रहा है। इतनी खतरनाक लॉबी है इनकी की किसी को भी साफ कर दें।

14 नवंबर 2010 में जंतर मंतर पर एक सभा हुई जिसमे केजरी को पहली बार पेश किया गया। उसमें रामदेव, अन्ना, केजरी आदि कई लोग थे। जब इनका नाम कोई नही जानता था। निर्धारित हुआ की 2 दिसंबर
2010 को एक प्रेस कांफ्रेंस की जाएगी जिसमे India Against Corruption IAC के नाम से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का उदय होगा। यदि राजीव भाई की बगल में प्रेस कांफ्रेंस में केजरी बैठा होता तो इसको कोई CM तो छोड़ो चपरासी न बनने देता। लेकिन आज जिस एक तरफा राजनीति का खेल इसके आका इसको खेलने की ट्रेनिंग देकर भेजा है।


क्यों इस कांफ्रेंस से एक दिन पहले 30 नवंबर 2010 को राजीव भाई को दुनिया से जाना पड़ा? उनके सगे भाई में इतनी हिम्मत न थी न है की वो हिम्मत से इनके सामने खड़ा भी हो सके। यह अब समझ आ रहा है। जो लॉबी किसको CM औऱ कमिशनर बनाने की ताकत रखती है वो राजीव भाई जो यदि जीवित होते तो शायद PM बनने की क्षमता रखते थे, उनको क्यो प्रचारित नही होने दिया।

वो तो भला हो असंगठित समर्थकों की सेना का जिन्होंने गांव, शहर, घर सब जगह से उनके विचारों को जीवित रखा।

यदि राजीव भाई को राष्ट्रीय मीडिया उस दिन सुन लेता और इस कारण पूरा देश उनके क्रांतिकारी ओजपूर्ण वाणी को सुन लेता तो आज केजरीवाल की दुकान नही चल रही होती। नौकरशाही, मीडिया यह सब राष्ट्रवादी लोगो को न ऊपर आने देंगे न जीवित रहने देंगे। इसीलिए राजीव भाई की मृत्यु गुमनामी में हुई परंतु उनका विचार उचित समय पर जवालामुखी बन कब फटेगा इसकी प्रतीक्षा है क्योंकि जब जंतर मंतर पर उनके नाम के दो अखाड़े देखें तो लगा वह प्रतीक्षा लंबी चलेगी।

राजीव भाई ने धर्म-निरपेक्ष नही धर्म सापेक्ष होने की बात कही और वही क्षण था जब मैं सब धर्मों का सम्मान और परंतु गीता जी और  गुरू गोविंद सिंह जी की सीख से अधर्मियों से अपने धर्म की रक्षा करने का निर्णय लिया।

जिनको लगता है की मैं किसी पार्टी विशेष के प्रति कुछ अधिक लगाव रखता हूँ। उनको बता दूं की जो लोग मुझे जानते उन्हें मुझे स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नही। और जो मुझे नही जानते उनको स्पष्टीकरण देना क्यों है? अगर एक दूसरे को जानना है समय निकालो, आकर मिलो, बात करो फिर होगी सच्ची बात।

इसीलिए यदि विवेकहीन या उल्टी सीधी टिप्पणी की तो सीधा डिलीट और ब्लॉक का डंडा चलेगा।

राजीव भाई के ऋणी
वीरेंद्र की कीबॉर्ड रूपी कलम से
VirenderSingh.in

Comments

  1. भैया कभी कभी सोचता हूं कि शादी ना करूं और राजीव भाई और आपके साथ ही हो लूं किन्तु अभी कुछ घर की जिम्मदारियां हैं उन्हें निभाना ही पड़ेगा।

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  2. Bhai aapke vichar se sahmat hu me.
    Kejariwal ka kata nikal na padega.
    Desh ko ko media bueracrbure and judiciary dimak ki tarah kha rahi he.

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