"जागे हुए को मैं क्या जगाऊँ?"
"जागे हुए को मैं क्या जगाऊँ?"
बचपन में सुबह हम जब बिस्तर से नहीं उठते थे ऊंघते रहते थे तो माँ एक वाक्य कहती थी कि
"जागे हुए को मैं क्या जगाऊँ?"
आज इस समाज पर यह बात सटीक बैठती है जो अधिकतर अपनी जीभ के स्वाद का गुलाम बन,
जान-बूझकर अनजान बन वही खा रहा है जिसने आपके घर के सदस्य को अस्पताल का सदस्य (मरीज़) बनाया क्योंकि ऐसे अस्पताल में आने वाले लोगो को सोशल मीडिया के युग में सही गलत का पता न हो वह मैं मान ही नहीं सकता।
आने वाली पीढ़ियां हमारे आज का आचरण से निर्मित होती है इस बात को ध्यान में रख यह पोस्ट पढ़ें
किसी मित्र के कार्य हेतु एक तथाकथित चमक दमक होटल जैस हो(स्पी)टल में जाना हुआ
मरीज़ो से भरा और परन्तु इलाज से खाली था. लाइन लगाकर लोग पैसा जमा करने की होड़ में थे और समय उनके पास भरपूर था। यह मेरा मानना है की पैसा और समय सबके पास होता है और इसे लूटने की कला आधुनिक अस्पतालों ने बखूबी सीख लिया है।
यह जो उदहारण मैं दे रहा हूँ उस से पुनः यह बात साबित हो जाती है की जिस चिकित्सा व्यवस्था वालो को इतना भी भान नहीं है की अस्पताल में स्वस्थ भोजन का क्या अर्थ या परिभाषा है वहां इलाज नहीं बीमार होने की सम्भावना ही अधिक है।
हॉस्पिटल में मरीज़ के साथ उनके परिवार वालो का भी मरीज़ बनने की व्यवस्था हो या कर दी जाती है।
इन चित्रों में दिख रहे इस जैसे सभी अस्पतालों में यही हाल है।
पहले खाने की दूकान जो है उसमे लिखा है SaladChef में सलाद तो देते है लेकिन मैदा के बने ब्रेड आदि के बीच में रखकर और बाकी उनके मेनू में बर्गर आदि से पता चल जाता है की खाने योग्य कतई नहीं है। इस दूकान में फल तो थे परन्तु इसकी एक दीवार पर बैनर में जिसपर लिखा था -
" A Healthy Outside Starts From Inside" जो की हास्यास्पद था।
इनका खाना खाकर न तो अंदर से और न बाहर से स्वस्थ रह सकते है। यहाँ खाते लोग लोग बाहर ठेले से बिना मोलभाव फल नहीं खरीदेंगे परन्तु उसी फल को यहाँ प्लेट में सजाकर 5 गुना कीमत पर मिलेगा तो स्वयं तो प्रगतिशील समझेंगे।
अब अगली दूकान का नाम है जिसके नाम के नीचे tagline है
"Live Healthy, Eat Fresh"
परन्तु यदि आप अगले चित्रों में इनके मेनू और उसमे बिकने वाले सामान की और देखेंगे की न तो इसे खाकर कोई स्वस्थ रह सकता है न ही यह किसी भी दृष्टि से ताज़ा हैा
बेचने वाले तो कुछ भी बेचेंगे परन्तु हमे वो लेना है की नहीं इसका विवेक कही बिकता नहीं वह विवेक या तो संस्कारो द्वारा निर्मित करना पड़ता है या हम उसे लेकर पैदा होते है।
अस्पताल में गेहूं में घुन की तरह व्यक्ति दिन रात अपने परिजन की स्वास्थ्य की कामना लिए हुए कब तक भूखा रहे और जब कोई विकल्प नहीं है तो वो यही खायेगा।
यही विकल्प और विवेक की एक साथ कमी अत्यंत हानिकारक मेल है तो दोनों में से सबसे सरल है और जो अपने हाथ में है वह है विवेकशील बनना।
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विवेकहीनता का एक और उदहारण अमृतसर की मेरी प्रथम यात्रा में देखने को मिला और यह देश में कही भी मिल सकता है परन्तु यहाँ दिखा तो मैंने बताना उचित समझा की जहाँ एक और प्रतिदिन लाखो लोगो के गुरु के लंगर में स्वास्थ्य की दृष्टि से लोहे की अनेक विशालकाय कढ़ाई का प्रयोग होते देखा वही उस लंगर के पश्चात अपना स्वास्थ्य रु 5/- प्रति 200 ml के भाव से पेप्सी कंपनी को गिरवी रखते देखा
ज़हर यदि सस्ता मिल रहा है फिर भी ज़हर ही होता है यह विवेक कौन देगा?
वीरता की मिसाल बाबा दीप सिंह, बंदा बहादुर जैसे वीरो के गुरुओ द्वारा आध्यात्मिक शक्ति और सात्विक भोजन की शक्ति से निर्मित शरीर और उनके उपदेशो से हमने अगर यह भी नहीं सीखा तो क्या सीखा?
यह उदहारण मैं इसीलिए दे रहा हूँ की सभी सिख महापुरुषों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है और जिन गुरुओ की सीख से कई सदियों से सभी सिख पगड़ी, कच्छा, कड़ा, कृपाण और कंघा रखने का नियम नहीं भूले, धूम्रपान, गुटका आदि का नशा करते हुए किसी सिख को आपने नहीं देखा होगा ऐसी गुरु आज्ञा के पालन के उदाहरण दुर्लभ होते है परन्तु फिर भी सिख समाज ने अपने स्वास्थ्य को जीभ के स्वाद के कारण ताक पर रख दिया जो इतनी श्रद्धा से इतनी सुन्दर सामाजिक व्यवस्था को चला रहे है।
जिस भोजन का लंगर में प्रयोग नहीं होने दिया जा सकता उसकी बिक्री ऐसे किसी भी धार्मिक स्थान चाहे वो मंदिर हो या गुरुद्वारा पर प्रतिबंधित होनी चाहिए।
फिर उन बेचारे इंडियन का क्या कहे जो की पूर्णतः आस्थाविहीन है वह तो किसी गुरु के मार्गदर्शन को ढोंग समझ किसी भी विदेशी विचार को अपना कर स्वयं को आधुनिक समझ रहे है।
अतः इस पोस्ट का वास्तविक उद्देश्य है कि अपने बच्चो को सही विकल्पों के अभाव में विवेक का अभाव दूर करने का संस्कार दें परन्तु उसके लिए वह संस्कार पहले स्वयं में उत्पन्न करने होंगे।
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गोधूलि परिवार (Gaudhuli.com) में हमारा प्रयास है की आपके पास शुद्ध उत्पादों का विकल्प देकर विवेक उत्पन्न करने योग्य जैविक एवं रसायनरहित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कर आने वाली पीढयों को स्वस्थ बनाने का एक अवसर दिया जाए।
इस अवसर का लाभ उठाये एवं शुद्ध उत्पादों के विकल्पों को एक बार मंगवाकर बाज़ारू विष के प्रभाव से परिवार को बचाएँ
- पूर्वजो के ज्ञान के ऋणी एवं इंडिया से भारत की यात्रा पर अग्रसर
वीरेंद्र की कीबोर्ड रुपी कलम से
(सह-संस्थापक, गोधूलि परिवार)
वाह वीरेंद्र भाई क्या उम्दा लिखा आपने।
ReplyDeleteवाह वीरेंद्र भाई क्या उम्दा लिखा आपने
ReplyDeleteभाई अंग्रेज़ी में कहते हैं,EFFORTS NEVER GO IN VAIN.आपके सत्प्रयास अवश्य सफल होंगे। मै भी अपने स्तर पर लोगों को जागरूक कर रहा हूं।
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteBhaiji aap ke vichar bade uttam hai. But meri ek wish hai ki akele koi jang ladna mushkil hai uske lie ek Puri force ki jarurat hogi. Aapke product ko desh wapi sikhaye yahi meri aapse prathana hai
ReplyDeleteU write always true
ReplyDeleteआपके द्वारा लिखी बाते एकदम सही है।
ReplyDeleteBahot hi badiya....
ReplyDeleteवाह! क्या सटीक और जीवन को बेहतर बनाने वाली जानकरी दी है l
ReplyDeleteभैया स्वास्थ प्रद भोजन बहुत ही सस्ती होती है, भले ही थोड़ी स्वाद हिन हो, पर हमे जीने के लिए खाना है ना कि खाने के लिए जीना है 🙏
ReplyDeleteઅતિ મહત્વનું લખ્યું છે, સુંદર
ReplyDeleteयह पोस्ट लंगर प्रबंधन समिति के लोगों तक पहुंचना चाहिए ताकि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो
ReplyDeleteRespected shri Virender singh jee ko and unkee pooree teams ko saadar naman, vandan. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete(+91 9753219048)
Respected shri Virender jee and unkee pooree teams ko saadar naman, vandan. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete(+91 9753219048)
बहुत सटिक वीरेंदर भाई।
ReplyDelete🙏
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