सूर्य ग्रहण में सूतक के नियम एवं जानकारियाँ
21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण
आज के कुछ तथाकथित वैज्ञानिकता वाले युग जीने का दम्भ भरने वाले लोग इन सब बातो को अन्धविश्वास की दृष्टि से देखेंगे परन्तु इन सब नियमो के पीछे पूरी तरह विशुद्ध प्राचीन विज्ञान छिपा है
जिसे साधारण जनमानस को पालन करने हेतु साधारण भाषा में पाप आदि से जोड़ दिया गया है अतः हमारे पूर्वजो ने जिन पद्दतियों की नींव डाली थी वह भले ही आज अन्धविश्वास लगे परन्तु उनका शुद्ध रूप में पालन हमारे समाज एवं स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होगा।
पहले के भारत के लोगो ने कभी नहीं कहा की वो वैज्ञानिक युग में जी रहे है परन्तु उनका जीवन पूरी तरह से वैज्ञानिकता से परिपूर्ण था
आज के समय में हर दूसरा व्यक्ति विज्ञान की दुहाई देता है परन्तु सबका जीवन पूरी तरह से अवैज्ञानिक है
- 21 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा।
- इसका परिमाण 0.99 होगा।
- यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का मात्र 99% भाग ही ढकेगी।
- आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वलयाकार आकृति बनायेगी।
- इस सूर्य ग्रहण की सर्वाधिक लम्बी अवधि 0 मिनट और 38 सेकण्ड की होगी।
- यह सूर्य ग्रहण भारत, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, यूऐई, एथोपिया तथा कोंगों में दिखाई देगा।
- देहरादून, सिरसा तथा टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देगा।
- नई दिल्ली, चंडीगढ़, मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद, बंगलौर, लखनऊ, चेन्नई, शिमला, रियाद, अबू धाबी, कराची, बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।
सूतक प्रारम्भ - 09:52 pm, जून 20
सूतक समाप्त - 01:49 pm, जून 21
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ - 05:24 am, 21 जून
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक समाप्त - 01:49 pm, 21 जून
ग्रहण आरंभ - 10:20 am
ग्रहण समाप्त - 01:49 pm
किसी स्थान पर ग्रहण दर्शनीय होने पर ही वहाँ सूतक काल माना जाता है।
सूतक
सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण से पूर्व की एक निश्चित समयावधि को सूतक के रूप में जाना जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार सूतक काल के समय पृथ्वी का वातावरण दूषित होता है। सूतक के अशुभ दोषों से सुरक्षित रहने हेतु अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिये।
सूतक समयावधि
सूर्य ग्रहण से पूर्व सूतक काल चार प्रहर तक माना जाता है तथा चन्द्र ग्रहण के दौरान ग्रहण से पूर्व तीन प्रहर के लिये सूतक माना जाता है। सूर्योदय से सूर्योदय तक आठ प्रहर होते हैं। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से सूतक काल माना जाता है।
ग्रहणकाल के समय भोजन
ग्रहण एवं सूतक के दौरान समस्त प्रकार के ठोस एवं तरल खाद्य पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये। यद्यपि बालकों, रोगियों तथा वृद्धों के लिये भोजन मात्र एक प्रहर अथार्त तीन घण्टे के लिये ही वर्जित है।
गर्भवती स्त्रियों के लिये सावधानियाँ
गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में बाहर न निकलने का सुझाव दिया जाता है। मान्यता है कि राहु व केतु के दुष्प्रभाव के कारण शिशु शारीरिक रूप से अक्षम हो सकता है तथा गर्भपात की सम्भावनायें भी बढ़ जाती है। ग्रहणकाल में गर्भवती स्त्रियों को वस्त्र आदि काटने या सिलने अथवा सब्ज़ी काटने जैसे अन्य कार्य न करने का सुझाव दिया जाता है, क्योंकि इन गतिविधियों का भी शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
सूर्य या चंद्रग्रहण के गर्भ पर किसी प्रकार के प्रभाव से सुरक्षा हेतु गर्भवती महिला या गाय की नाभि पर प्राकृतिक लाल रंग गेरू लगा दें।
ग्रहण में स्नान के संदर्भ में जानकारी
ग्रहण में समस्त उदक (जल स्त्रोत) गंगासमान है; पानी ऊपर डालकर किए गए स्नान की अपेक्षा बहता पानी, सरोवर, नदी, महानदी, गंगा एवं समुद्र का स्नान श्रेष्ठ एवं पुण्यकारक है । सूर्यग्रहण में नर्मदा स्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है । नर्मदा स्नान संभव न हो, तो स्नान के समय नर्मदा का स्मरण करें ।
प्रतिबन्धित गतिविधियाँ
तेल मालिश करना, जल ग्रहण करना, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कन्घा करना, मञ्जन-दातुन करना तथा यौन गतिविधियों में लिप्त होना ग्रहण काल में प्रतिबन्धित माना जाता है।
ग्रहणोपरान्त अनुष्ठान
यह सलाह दी जाती है कि पहले से बने हुए भोजन को त्यागकर ग्रहण के पश्चात् मात्र स्वच्छ एवं ताजा बने हुए भोजन का ही सेवन करना चाहिये। गेहूँ, चावल, अन्य अनाज तथा अचार इत्यादि जिन्हें त्यागा नहीं जा सकता, इन खाद्य पदार्थों में कुश घास तथा तुलसी दल (पत्ता) डालकर ग्रहण के दुष्प्रभाव से संरक्षित किया जाना चाहिये। दही ज़माने वाले खट्टे में भी तुलसी पत्ता डाल कर रखें। ग्रहण समाप्ति के उपरान्त स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिये। ग्रहणोपरान्त दान करना अत्यन्त शुभ व लाभदायक माना जाता है।
(21 जून रविवार है अतः तुलसी दल एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें)
ग्रहण के दौरान मंत्र जाप करें
तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन।
हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥१॥
श्लोक अर्थ - अन्धकाररूप महाभीम चन्द्र-सूर्य का मर्दन करने वाले राहु! सुवर्णतारा दान से मुझे शान्ति प्रदान करें।
विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत।
दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥२॥
श्लोक अर्थ - सिंहिकानन्दन (पुत्र), अच्युत! हे विधुन्तुद, नाग के इस दान से ग्रहणजनित भय से मेरी रक्षा करो।
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गोधुली परिवार द्वारा जानकारी जनहित में प्रेषित
Gaudhuli.com
Dhanyawaad virenderji🙏
ReplyDeleteBahut badiya article.....thank you!
ReplyDeleteKya Brahman ko daan dene ka b koi vaigyanik karan h?
ReplyDeleteमहत्त्व दान का है, ब्राह्मण का नहीं
Deleteदान किसे दे रहे है यह महत्त्व का नहीं, आप दान दे रहे है या नहीं यह महत्त्व का है
कम लिखा अधिक समझना
Thank you sir
ReplyDeleteपहली बार इस बारे में जानने का मौका मिला। जय हिन्द
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteसनातन परंपरा की जय ✊✊🚩🚩
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी दी। वीरेंद्र जी।
ReplyDeleteनमस्ते जी , कोई वैज्ञानिक कारण क्योंकि ऊपर प्रत्येक कार्य मे कई कई 'क्यों' छिपे हुए हैं। जैसे तुलसी को रविवार को नही तोड़ना, आखिर क्यों। उचित तर्क अथवा कारण देने की कृपा करें
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