प्राइवेट ट्रेन खुद तय करेंगी अपना किराया, सरकार देगी छूट
प्राइवेट ट्रेन खुद तय करेंगी अपना किराया, सरकार देगी छूट
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निजी कंपनियों को ट्रैन का किराया अपनी मर्ज़ी से तय करने की मिली छूट
अब सरकार को क्या दोष दें, इतना तो समझ आ गया है इस PM की कुर्सी पर कोई पार्टी आ जाये, देश उसी दिशा में जायेगा जहाँ उसे वैश्विक माफिया शक्तियां ले जाएँगी।
इस विषय का इंतज़ार रहेगा की इन ट्रैन में सांसदों को मुफ्त में ढोया जायेगा या नहीं?
अब इस कड़वे निर्णय को सही साबित करने के लिए टिपण्णी में बहुत ही सकारात्मक शब्दों का शहद लगाकर हमें चटवाया जायेगा और उस निर्णय के अलसी स्वाद के आने तक हम वाह वाह करेंगे और बाद में आह करेंगे
लेकिन बहुमत जो वोटिंग मशीन के दम पर मिला है उसका असली उद्देश्य तो अभी पूरा करना है।
अब हमें सरकार विरोधी, वामपंथी, कांग्रेसी और इस कड़वे निर्णय को सही साबित करने के लिए टिपण्णी में बहुत ही सकारात्मक शब्दों का शहद लगाकर हमें चटवाया जायेगा और उस निर्णय के असली स्वाद के आने तक हम वाह वाह करेंगे और बाद में आह करेंगे
हास्यास्पद है कि इन निजी कंपनियों के लिए ट्रैन किराये की अधिकतम सीमा निश्चित न करने के पीछे उनका यह कहना है की इन रूट पर एयर-कंडीशन बस और विमान सेवा भी है और यही ट्रैन के किराये को नियंत्रित रखेगी। मतलब यदि बस सेवा, विमान सेवा और ट्रैन सेवा तीनो ने मिलकर भविष्य में किसी सरकार को प्रभावित कर जैसे तैसे किराये को मनमाने ढंग से तय करने की आगे व्यवस्था बना ली तो?
क्या अनारक्षित डिब्बों में यात्रा करने वाले लोगो के पास सच में एयर-कंडीशन बस और विमान सेवा वाला विकल्प आज भी है? उत्तर है कि कभी था ही नहीं और न कभी होगा। केवल मुनाफा कमाने आयी इन कम्पनयों से इन अनारक्षित डिब्बों में यात्रा करने वाले लोगो को लाभ मिलना असम्भव से लगता है। क्योंकि प्लेटफार्म टिकट 10 वर्षो में रु 3/- से 10 और अभी 2020 में रु 50 हो गया है।
अब यह कहेंगे की अच्छी सुविधाएं मिलेगी, लेकिन वो भी बड़ा प्रश्न है कि सुविधा अच्छी देने के नाम पर लूट की खुली छूट देना कितना उचित है?
जनता के पैसो से हज़ारो रूपए के मुफ्त के लाभ हर महीने लेने वाले नेताओ को क्या फर्क पड़ता है
उदहारण: जब 500 रु में महीने भर अनलिमिटेड कॉल मिल जाती है तो इनको महीने में हज़ारो रुपये टेलीफोन भत्ते के क्यों दिए जाएँ।
जब लोगो को गैस सब्सिडी छोड़ने को कहा जाता है लेकिन संसद में इन गरीब सांसदों को 2015 में किस मूल्य पर संसद में भोजन मिल रहा था स्वयं नीचे दिए लिंक पर देख लीजिए।
इस व्यवस्था से अब बू आने लगी है
लेकिन बहुमत जो वोटिंग मशीन के दम पर मिला है उसका असली उद्देश्य तो अभी पूरा करना है
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स्त्रोत:
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हमारे देश की भौगोलिक, सामाजिक परिस्तिथियों को दरकिनार करते हुए भारत को अमेरिका जैसा बना देने के दिवास्वप्न प्रतिदिन जनता को दिखाए जा रहे है, जिसकी आड़ में देश के संसाधनों को कौड़ियों भाव बेच जा रहा है और हमारा भविष्य निरंतर अंधकार में डूब रहा है।
ReplyDeleteDabe panw bhedio ki aahat jaesa hae
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