क्यों बधाइयाँ दे रहे हो ?? हैप्पी न्यू ईयर की !
लोगों ने दिमाग खराब कर रखा है। हैप्पी न्यू ईयर...हैप्पी न्यू ईयर...
अरे भाई भेड़ चाल देखकर ही क्यों बधाइयाँ दे रहे हो ??
क्या सच मे 2022 आ गया ??
2022 तो क्या भी तो 2021 भी नहीं आया !!
आपने थोड़ा भी विज्ञान पढ़ा हो तो ये बात झट से आपके समझ मे आ जाएगी !! की 2022 आया ही नहीं बल्कि 2021 भी नहीं आया !!
आइए अब मुख्य बिन्दु पर आते हैं ! पहले ये जानना होगा कि एक वर्ष पूरा कब होता है ??? और क्यों होता है ??? एक वर्ष 365 दिन का क्यों होता है और एक दिन 24 घंटे का ही क्यों होता है ??
तो पहले बात करते हैं 1 दिन 24 घंटे का क्यों होता है ?
तो मित्रो आपने पढ़ा होगा की हमारी पृथ्वी अन्य ग्रहों की भांति सूर्य के चारों और घूम रही है !! और चारों और घूमते घूमते अपने आप मे भी घूम रही है ! इस वाक्य को फिर समझे कि एक तो पृथ्वी पूरा चक्र सूर्य के चारों तरफ चक्र लगा रही है ! और चारों तरफ चक्र लगाते लगाते अपने आप मे भी घूम रही है !! पृथ्वी अपने अक्ष(अपने आप ) मे घूमने में 24 घंटे का समय लेती है, जिसे हम एक दिनांक(एक दिन ) मान लेते हैं। तो इस तरह पृथ्वी के अपने आप मे एक चक्र पूरा होने पर एक दिन पूरा हो जाता है जो की 24 घंटे का होता है !!
अब बात करते एक साल 365 दिन का कैसे होता है ??
तो जैसा की हमने ऊपर बताया की अपने अक्ष पर घूमने के साथ साथ पृथ्वी सूर्य के चारों और भी घूम रही है ! सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे का समय लेती है। अब जो 6 घंटे है इसका कुछ adjust करने का हिसाब किताब बनता नहीं तो एक साल को 365 दिन का ही मान लिया जाता है !! अब जो हर साल 6 घंटे बच जाते है तो चार साल बाद इन 6 घंटों को चार बार जोड़ने पर 24 घंटों का पूरा एक दिन बन जाता है,
इसलिए हर चार साल बाद leap year आता है जब फरवरी महीने मे एक दिन बढ़ा कर जोड़ देते हैं ओर हर चार वर्ष बाद 29 फरवरी नामक दिनांक के दर्शन करते हैं।बस सभी समस्याओं की जड़ यह 29 फरवरी ही है। इसके कारण प्रत्येक चौथा वर्ष 366 दिन का हो जाता है।
यह कैसे संभव है? सोलर कलेंडर के हिसाब से तो एक वर्ष वह समय है, जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करती है। चक्कर पूरा करने में 366 दिन नहीं अपितु 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। इस लिहाज से तो एक साल जिसे हम 365 दिन का मानते आये हैं, वह भी गलत है। परन्तु फिर भी, क्योंकि इन अतिरिक्त 6 घंटों को चार साल बाद एक दिनांक (दिन )के रूप में किसी वर्ष में शमिल नहीं किया जा सकता इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष ही इनके अस्तित्व को स्वीकारना पड़ता है।
फिर भी किसी प्रकार इन 6 घंटों को एडजस्ट करने के लिए प्रत्येक चार वर्ष बाद 29 फरवरी का जन्म होता है। किन्तु यह एक दिन जो प्रत्येक चार साल बाद हमारे पास फालतू बच रहा है इसी प्रकार 100 साल बाद 25 दिन ज्यादा बच गए ! और इसी प्रकार 200 साल बाद 50 दिन ज्यादा बच गए और 365 x 4 = 1460 वर्षों के बाद एक पूरा वर्ष भी तो बना देता है।
अब हर साल 6 घंटे जो फालतू बच जाते थे उसे हम हम प्रत्येक चार साल बाद 29 फरवरी के रूप में एक दिन बढ़ा कर एडजस्ट कर रहे थे। इस हिसाब से तो प्रत्येक 1460 वर्षों के बाद पूरा एक बर्ष फालतू बन जाता है l leap year मे एक दिन बढ़ाने की तरह 1460 साल बाद पूरा एक वर्ष बढ़ना चाहिए (adjust होना चाहिए ! अत: अभी 2022 नहीं, 2021 ही होना चाहिए। क्योंकि ईस्वी संवत(ईसाइयो का जन्म ) मात्र 2021 वर्ष पुराना है, अत: अभी 2020 की सम्भावना नहीं है। क्योंकि इसके लिए 2920 वर्ष का समय लगेगा।
क्या झोलझाल है यह सब?
दरअसल सोलर कलेंडर के अनुसार दिनांक, माह व वर्ष केवल पृथ्वी व सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जबकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में अन्य आकाशीय पिंडों को नाकारा नहीं जा सकता। इनका भी तो कोई रोल होना ही चाहिए हमारे कलेंडर में। इसीलिए विक्रम संवत में हमारे हिंदी माह पृथ्वी व सूर्य के साथ-साथ राहु, केतु, शनि, शुक्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, चंद्रमा आदि के अस्तित्व को स्वीकार कर दिनांक निर्धारित करते हैं।पृथ्वी पर होने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही महीनों को निर्धारित किया जाता है न कि लकीर के फ़कीर की तरह जनवरी-फरवरी में फंसा जाता है।
आप अँग्रेजी की कोई भी डिक्शनरी उठाईए !!
Sept, Oct, Nov,Dec का अर्थ पढ़िये !!
September, Octuber, November व December नामक शब्दों का उद्भव क्रमश: Sept, Oct, Nov व Dec से हुआ है, जिनका भी अर्थ क्रमश: सात, आठ, नौ व दस होता है।
किन्तु जब महीनो की बात आती है तो Sept, को नौवाँ,Oct, को दसवां Nov को ग्यारहवा ,Dec को बारवहाँ महीना माना जाता है !! जबकि इन्हें क्रमश: सातवाँ, आठवा, नवां व दसवां महिना होना चाहिए था।
दरअसल ईस्वी संवत(ईसाईयों के जन्म ) के प्रारंभ में एक वर्ष में दस ही महीने हुआ करते थे। अत: September, Octuber, November व December क्रमश: सातवें, आठवे, नवें व दसवें महीने हुआ करते थे। किन्तु अधूरे ज्ञान के आधार पर बना ईस्वीं संवत(ईसाई लोग ) जब इन दस महीनों से एक वर्ष पूरा न कर पाया तो आनन-फानन (जल्दी जल्दी में ) 31 दिन के जनवरी व 28 दिन के फरवरी का निर्माण किया गया व इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में जोड़ दिया गया। फिर वही अतिरिक्त 6 घंटों को 29 फ़रवरी के रूप में इस कैलंडर में शामिल किया गया। ओर फिर वही झोलझाल शुरू।
इसीलिए पिछले वर्ष भी मैंने लोगों से यही अनुरोध किया था कि 1 जनवरी को कम से कम मुझे तो न्यू ईयर विश न करें। तुम्हे अज्ञानी बन पश्चिम का अन्धानुकरण करना है तो करते रहो 31 दिसंबर की रात दारू, डिस्को व बाइक पार्टी। और क्या आपने कभी अपने पड़ोसी के बच्चे का जन्मदिन मनाया है ??? तो फिर ये ईसाई अँग्रेजी नव वर्ष क्यों ???
क्या इस दुनिया को बने हुए सिर्फ 2021 वर्ष हुए है ???
नहीं !ईसाई धर्म की शुरुवात 2021 वर्ष पहले हुई है !! जब हम हिन्दू ,भारतीय और हमारी संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी ये धरती !!तो खैर !ईसाई धर्म की शुरुवात 2021वर्ष पहले हुई है !!तब यह झमेला कैलंडर शुरू हुआ है !! और क्यों अंग्रेजों ने भारत पर 250 साल राज किया था और क्योंकि अंग्रेज़ो के जाने के बाद आजतक भारत मे सभी अँग्रेजी कानून वैसे के वैसे ही चल रहे है !! तो ये अँग्रेजी कैलंडर भी चल रहा है !! ये एक गुलामी का प्रतीक है इस देश मे !!
हम अपने सभी धार्मिक पवित्र कार्य विवाह की तारीक निकलवाना ,बच्चे का चोला , और यहाँ तक हमारे सारे त्योहार भारतीय हिन्दू कैलंडर के अनुसार मानाते है ! तभी तो ये त्योहार हर साल अँग्रेजी कैलंडर के अनुसार अलग अलग तारीक को आते है !! जब भारतीय कैलंडर के अनुसार उसी तारीक वही होती है वो बात अलग है ज़्यादातर लोगो को भारतीय कैलंडर देखना नहीं आता क्यों कि उनको पढ़ाया नहीं गया तो उनको समझ नहीं आता जबकि हमारा भारतीय ,हिन्दू कैलंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक scientific है !! फिर भी हम मानसिक रूप से अंग्रेज़ियत के गुलाम है ! और उनके पहरावे उनके त्योहार, हर चीज उनकी नकल करते हैं !!
हम उन लोगो की मजबूरी को फैशन और आधुनिकता समझ रहे है !! इस एक वाक्य को अगर
आपने पूर्ण रूप से समझना है कि कैसे हम उनकी मजबूरीयों को फैशन समझते है !!
Very true, yeh new year ke naam par, sharab, party ka bahana hai ..
ReplyDeleteTotally agree with you,we r still under the shadow of britishers.
DeleteVirender vai ji ye logon ko kab samajh mein ayega bas usi din ka intazar he.
ReplyDeleteChahe jo bhi ho hum to nakal nahi karenge ye gulami ki pratha.
परम सत्य
ReplyDeleteवीरेंद्र भाई हम सब एक भीड़ का हिस्सा बन गए हैं और इससे निकलने के लिए बहुत साहस और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इस वजह से हम भी से बहुत कुछ चीजें जानते हुए भी वही करते हैं
ReplyDeleteMai ek teacher hu aur aaj Maine apne class me sabko samzaya ki ye zolzal kya hai Taki nayi peedhi ko bhi ye bate pta chale
ReplyDelete�� बात शत प्रतिशत सत्य है। आपकी हमारे आने वाले पीढियों को भरतीय सभ्यता , ज्ञान, विज्ञान, समाजिक व्यवस्था, रिती रिवाज, त्यौहार इत्यादि को गहराई से समझना चिहिये । ऐसा ज्ञान भारत को छोडकर कही नही मिलेगा।
ReplyDeleteमै अपने आप को बड़ा सौभाग्यशाली
समझता हूँ की इस भारत भूमि पर मेरा जन्म हुआ।
स्वर्गीया श्री रविन्द्र शर्मा जी( गुरुजी ) की बाते सुन कर तो मै तो दंग रह गया और मै अनुमान लगा रहा हूँ की पहले हमारे पूर्वज कैसे रहे होँगे किस विविधता से वो सभी लोग जियें होँगे वास्तव मे हमरा देश विश्वा गुरु था । और हम पशिमी सभ्यता, पश्चिमी विज्ञान की दौड मे कहा आ गये है ? ....अगर अभी भी नही सम्भ्ले तो... विनाश निश्चित है।