तीन स्तरीय है कुंडली मिलान का विज्ञान!

 




कुंडली मिलान का भी विज्ञान है

विवाह से पूर्व वर कन्या और उनके परिजन एक दूसरे की प्रकृति गुण दोष शादी के बारे में प्रायः अनभिज्ञ रहते हैं। अक्सर देखा गया है कि दोनों पक्ष अपने दोषों को छुपाते हैं और गुणों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। 

इससे विवाह में कुछ समय बाद ही पति-पत्नी के संबंधों में तनाव आरंभ हो जाता है। ऐसे में वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे, इसके लिए विवाह से पूर्व जन्मपत्री का मिलान जरूरी है। कुंडली मिलान के अंतर्गत भावी वर-वधू की कुंडली का अध्ययन करके पूर्वानुमान लगाया जाता है कि विवाह के बाद उनके जीवन में परस्पर सामंजस्य होगा या नहीं।




*कुंडली मिलाई फिर बेटी दुखी क्यों?*

अक्सर देखने में आता है कि जन्म कुंडलियों का मिलान करते समय केवल दो ही बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है - पहला, लड़का लड़की मांगलिक तो नहीं औऱ दूसरा, गुण कितने मिल रहे हैं । लेकिन सुखमय जीवन के लिए संपूर्ण मिलान तीन स्तरों पर किया जाता है। 

- नक्षत्रो के आधार पर

- ग्रहों के आधार पर 

- कुंडली में बनने वाले शुभाशुभ योगों के आधार पर नक्षत्र। 

1) नक्षत्रों के आधार पर मिलान करते समय अष्टकूट मिलाने की परंपरा है। इसके अंतर्गत वर्ण वश्य, तारा, योनि, ग्रह-मैत्री, गण, भकूट और नारी सम्मिलित है। अष्टकूट के आठ मापदंडों के आधार पर वर-कन्या की प्रकृति, स्वभाव और अभिरुचिओ का सूक्ष्म अवलोकन किया जाता है।

2) दूसरे स्तर पर भावी वर-वधू के ग्रहो को मिलाया जाता है। जन्मकुंडली के मंगल, शनि, सूर्य, राहु, केतु, की स्थिति के परस्पर मूल्यांकन के आधार पर अनुकूलता और प्रतिकूलता का अध्ययन किया जाता है 

3) तीसरे स्तर के अंतर्गत वर कन्या की कुंडली में शुभाशुभ योगों के आधार पर दोनों के चरित्र स्वास्थ्य, आयु, भाग्य, आर्थिक स्थिति और संतान आदि का विचार किया जाता है। अगर पति और पत्नी दोनों में से किसी एक की कुंडली में अल्पायु योग, दरिद्र योग, संतानहीन योग, चरित्र-भंग आदि योग हुआ, तो भले ही कितने भी गुण मिले अथवा दोनों की प्रकृति और अभिरूचि में कितनी भी समानता और घनिष्ठता हो, अशुभ योगों के प्रभाव से उनका दांपत्य जीवन सुखी नहीं हो सकता। इसीलिए केवल मंगली और अष्टकूट मिलान ही सुखी दांपत्य जीवन की गारंटी नहीं है। 

इन्हीं कारणों से कम गुण मिलने वाले दंपतियों का जीवन भी सुखमय देखने को मिलता है। और पर्याप्त गुण मिलने वाले दंपतियों का जीवन कष्टप्रद देखा जाता है। इसीलिए दोनों की कुंडलियों का विस्तार पूर्वक अलग से अध्ययन जरूरी होता है। 


विवाह का भाग्य पर असर

जन्म कुंडली के मिलान से यह सुनिश्चित किया जाता है कि विवाह के बाद पति पत्नी पर एक दूसरे के ग्रहों की चाल का प्रभाव किस प्रकार पड़ेगा। जैसे कि पति का भाग्योदय पत्नी के ग्रहों की चाल से बदल जाता है वैसे ही पत्नी का भाग्य उदय पति के ग्रहों से प्रभावित होता है। 

मंगल एक अत्यंत ऊर्जावान ग्रह है। पति पत्नी में से एक गैर मंगली और दूसरा मंगली होने पर मंगल की ऊर्जा में अंतर के कारण एक दूसरे से खुद को असहज महसूस करता है। एक निश्चित सीमा से ज्यादा असहजता दांपत्य जीवन में कड़वाहट का कारण बनती है। 

इसीलिए ज्योतिष शास्त्र ग्रह नक्षत्रों का तालमेल बनाकर ही मित्रता, विवाह या साझेदारी करने के निर्देश देता है। प्रत्येक व्यक्ति में किसी न किसी एक तत्व की प्रधानता होती है। कुंडली मिलान के समय इन तत्वों का सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है।

समाज में कुछ विशेष विचारधारा के लोग इस विज्ञान को मिथ्या एवं भ्रम के रूप में परिभाषित करते है 

एवं दूसरो  को भी इसका बहिष्कार करने की सलाह देते है।  उसका उपाय यह कि लाखों वर्षो पुराना विकसित विज्ञान यदि मिथ्या है तो इनका नया ज्ञान पर कितना विश्वास करें। 

Comments

  1. हम सिख सकते है ,क्या?

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  2. नमस्कार वीरेंद्र भाई🙏

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  3. Isme kya vigyan he jyotish vigyan srif graho ki chal ya space se related jankari dete he...na ki hmare Bhagya ki ye to hmare karma ke adhar par hi hm sb sb kuch bhugat rhe he or aage bhi karma ke adhar par hi sb chlege...mere isme hindi typing misiing he Varna me hindi likhna prefer krti..dynyvad..

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