बिना रिश्वत पासपोर्ट के बनने की कहानी
कई वर्ष पहले मैंने पासपोर्ट बनवाया था जिसकी बहुत ही रोचक कहानी है और जो चाहे उस से आप सीख सकते है
क्या आपको पासपोर्ट बनवाने के लिए पासपोर्ट शुल्क के अलावा किसी प्रकार की राशि रिश्वत में या फॉर्म जमा करने के लिए दलाल को देनी पड़ी थी? अगर हाँ तो क्यों?
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मेरे पासपोर्ट के बनने की कहानी:
कहानी की सीख - "भ्रष्टाचार का आरंभ और अंत हमसे ही होता है"
बात तब की है जब राजीव भाई को नहीं जानता था
मेरे जीवन के दो भाग है राजीव भाई को सुनने से पहले का और बाद का
कोई बात चल रही थी कार्यालय में मैंने दोस्त से कहा - मैं रिश्वत नहीं देता
दोस्त ने कहा - कभी तो देनी पड़ेगी
"लेकिन मैं नहीं दूंगा" मैंने कहा
मैंने पासपोर्ट बनवाने का तरीका पुछा तो वो बोला की उसके लिए तो पहले फॉर्म जमा करने के लिए दलाल को पैसे देने पड़ेंगे और फिर घर पर निरिक्षण करने आयेगा तो उसको भी देने पड़ेंगे
तब पासपोर्ट के अधिकारिक रूप से रु.1000 लगते थे और दलाल को फॉर्म भरने और जमा करने के रु.700 अलग से देने पड़ते थे
मैंने कहा की अगर मुझे फॉर्म भरने के लिए दलाल की ज़रूरत पड़ती है तो मेरे साक्षर होने का कोई फायदा नहीं
यह ठान कर जब मैंने थोडा समय लगाकर इन्टरनेट पर ढूँढा तो पता चला की पासपोर्ट का फॉर्म ऑनलाइन भी भर सकते है और सभी आवश्यक प्रमाणपत्र जमा करने की तिथि बे निश्चित हो गयी औरउस दिन सभी कागज़ लेकर मैं दिल्ली के भीकाजी कामा प्लेस स्थित कार्यालय पंहुचा
एक घंटे लाइन में लगकर निर्धारित शुल्क रु.1000/- जमा कर उसकी रसीद प्राप्त कर ली और दलाल के बिना काम करवा लिया
दोस्त को आश्चर्य हुआ लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी बोला अभी तो इंस्पेक्टर को पैसे देने पड़ेंगे सत्यापन (verification) के लिए लेकिन मैंने कहा उसे भी नहीं दूंगा चाहे कुछ भी हो
कुछ दिन बीते तो घर से फ़ोन आया की कोई पासपोर्ट सत्यापन के लिए आया है उस समय मैं घर पर नहीं था कार्यालय में था
मेरे माता पिता ने सभी कुछ प्रमाणित रूप से दिखा दिया था लेकिन उस इंस्पेक्टर ने मुझे फ़ोन पर कहा की आपको पासपोर्ट के क्षेत्रीय कार्यालय में जो मायापुरी पुलिस थाने में था वह आना पड़ेगा कुछ हस्ताक्षर करने के लिए
मुझे पता था की वो क्यों बुला रहा है? लेकिन मैं अनजान बना रहा
अगले दिन मैं वहां पंहुचा तो वह तीन इंस्पेक्टर टूटी फूटी टेबल पर बैठे थे
मैंने अपना नाम बताया और कहा की आपने बुलाया था कुछ साइन कर के लिए
उसने कहा बैठ जाओ
तभी मैंने देखा की वहां एक गरीब अवस्था में व्यक्ति बैठा था उन लोगो ने उस से कहा -
"ओय सुन हमारे लिए नीचे से चाय लेकर आ अगर पासपोर्ट बनवाना है तो"
मेरा खून खौल गया यह देखकर
(एक दिन पहले जब वो मेरे घर आया था तो उसने वह भी ऐसे ही बर्ताव किया - मेरे पिता ने उसका अच्छा अतिथ्य किया परन्तु उसकी भाषा कर्कश ही रही मेरे माता पिता के प्रति भी)
अब मैंने सोच लिया की इसको सबक सिखाना होगा चाहे पासपोर्ट बने या न बने
उसने मुझे बुलाया और कहा की - "कोई कागज़ लाने के लिए कहा था तुझे"
मैंने कहा नहीं कहा अपने तो बुलाया था साइन के लिए
वो बेशर्मी से मुस्कराते हुए बोला - अरे कुछ तो बोला होगा मैंने
मैंने मासूम चेहरा बनाकर नहीं - जी नहीं!
ऐसा उसने दो तीन बार पुछा
अरे यार तू नहीं समझेगा चल बाहर चल - उसके कमरे से बाहर आकर उसने अपनी बाजू सच्चे मित्र की तरह मेरे कंधे पर रखकर कहा कि-
अरे वेरिफिकेशन पास करने के पैसे लगते है!
अच्छा सर, मुझे तो पता नहीं. कितने लगते है?
तुझे जितने ठीक लगे दे दे
सर मेरे पास तो रु. 100 है
अरे कम से कम 500 तो दे. पासपोर्ट बन रहा है तेरा
सर 100 ही है मेरे पास तो
अरे 200 तो दे दे
सर 100 से ज्यादा नहीं लाया मैं
चल ठीक है वही दे दे
(आगे आप शायद विश्वाश न करें लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ था)
मैंने उसके हाथ में रु100 थमा दिए और फिर उसके हाथ से नोट वापस लेकर मैंने अपनी जेब में रखते हुए कहा:
"सर मैं रिश्वत नहीं देता, आप मेरे पासपोर्ट REJECT कर दो" और मैं मुड़कर वापस जाने लगा
उसका चेहरा सफ़ेद हो गया और उसे समझ नहीं आया की वो क्या कहे?
उस जगह से निकलकर मैंने केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) CVC के नंबर पर फ़ोन कर दिया
और फ़ोन को कान पर लगाकर ही मैं उसके पास पंहुचा और पुछा की आपका नाम क्या है?
उसने कहा - किसे फ़ोन कर रहा है? जिस मर्ज़ी को कर ले तेरा पासपोर्ट नहीं बनने दूंगा जा बोल दे महेंद्र यादव नाम है मेरा !
मैंने फ़ोन पर शिकायत दर्ज करवा दी
3 दिन बाद मेरे पिता का घर से फ़ोन आया वो बोले की -
वो इंस्पेक्टर मेरे पैरो में गिरकर रो रहा है
और बोल रहा है की तूने vigilance में उसकी शिकायत की है?
मैंने कहा की उस से बात करवाओ -
वो बोला बेटा (हाँ उसने बेटा कहा :-) तू तो बहुत चालाक निकला मैंने तो 100 रूपए ही तो मांगे थे और तूने मेरी रिटायरमेंट से ठीक एक साल पहले मेरी पेंशन, ग्रेच्युटी सब मिटटी में मिलवा देने का काम कर दिया. मैं तो तेरे एरिया राजस्थान के पास का हूँ अपने लोगो से ऐसा नहीं करते
मैंने कहा - दोबारा मेरे घर गलती से भी मत आ जाना क्योंकि मैं चाहता हूँ की आप जैसे रिश्वत लेने वालो को सबक मिले
वो चला गया
लेकिन माता पिता को चिंता हुई की इस तरह से कोई मुझे नुक्सान न पंहुचा दे
पिता जी ने भी बहुत कहा की शिकायत वापस ले लो
लेकिन मैं दृढ रहा।
15 दिन बाद मेरा पासपोर्ट भी बनकर आ गया
इंस्पेक्टर का फ़ोन आया की मैंने पासपोर्ट भी पास कर दिया अब तो शिकायत वापस ले लो
लेकिन मैंने कहा की मुझे पासपोर्ट के ज़रूरत नहीं है
पासपोर्ट विभाग का अलग सतर्कता (vigilance) होता है इसीलिए मेरा केस CVC से उन तक पंहुचा और मुझे अपना बयान लिखने 4 बार अलग अलग जगह जाना पड़ा और वह कोई न कोई मेरे निर्णय को प्रभावित करने का जोर मुझ पर डालता लेकिन जैसे ही मैं उनसे उनका नाम पूछता था की आपका नाम भी इस बयान में लिख देता हूँ
तो वो समझ जाते की मैं नहीं मानूंगा और हाथ जोड़ लेते
एक समय ऐसा आया जब उसने उल्टा मुझ पर आरोप लगाया की ये लड़का झूठ बोल रहा है
लेकिन मैंने अपना असली मोहरा बचा कर रखा था वो था
तब स्मार्टफोन का जमाना नही था, बेसिक फोन था लेकिन उसमे आवाज की रिकॉर्डिंग सुविधा थी। जिसका मैने प्रयोग किया था उसकी आवाज़ की रिकॉर्डिंग जो मैंने उसी दिन रिकॉर्ड कर ली थी जब उसने मुझे रिश्वत मांगी थी उस दिन की पूरी बातचीत मैंने अपने जेब में रखे रिकॉर्डर से रिकॉर्ड कर ली थी
जब मैंने वो रिकॉर्डिंग उसके असफ अली रोड पर स्थित Vigilance विभाग के ACP के सामने सुनाई तो
उसकी सिट्टी पिट्टी गुल हो गयी और आज वो अपनी 35 साल की नौकरी के बाद बिना पेंशन और किसी भी प्रकार के लाभ के बैठा है
- उसके जीवन भर किये गए कुकर्मो का फल शायद भगवान् ने मुझे निमित बनाकर उसे दे दिया
आप भी यह कर सकते है साहस के साथ
कहानी की 2 सीख -
पहली : "भ्रष्टाचार का आरंभ और अंत हमसे ही होता है"
दूसरी : कोई भी सरकारी काम अपातकाल में करवाने से बचे, खूब समय हो तो भ्रष्टाचार से लड़ पाएंगे।
- वीरेंद्र सिंह
Good lesson
ReplyDeleteअगर ये कहानी सच है तो आपके साहस का कोई जवाब नही
ReplyDeleteकहानी नही सच है भाई
Deleteआपको साधुवाद
ReplyDeleteमैने भी खुद सब प्रोसेस करते हुए पासपोर्ट बनवाया किसींको कुछ नहीं दिया | अभि 24 में रिनिव्हल हैं शायद नहीं करुंगा |
बाट यानि weight (तौल करने वाला) विभाग वाले 7-8 साल में एक बार आकर दुकान पर 10000 का जुर्माना लगा देते:
ReplyDeleteबर्तन की दुकान है,बाट पर मुहर लगवाना हर साल होता।2022 में मुहर लग गई रसीद भी मिल गई। कुछ दिन में २साहब आये रसीद माँगे,5 मिनट तक मैने खोजा नहीं मिला तो वो चल गये एक नम्बर देकर,औरउनके जाते ही रसीद मिल गईफिर रसीद का नम्बर बताया फोटो भी भेजा।
लेकिन लेकिन
2 महीने बाद
पुलिस एक नोटिस दे गई कि जिला केन्द्र पर जाइए 12000 लेकर।
पिताजी से 10000 वो सब ले लिए।
You are brave as well
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