रॉकेट्री फिल्म - आज तक किसी फिल्म का ऐसा शुभारम्भ नहीं देखा! जो वास्तव में शुभ था
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साथियों, जैसा कि मेरी आदत है मैं बहुत ही चुनिंदा फिल्म देखता हूँ और अधिकतर अकेले ही देखता हूँ
जब यह फिल्म देखने गया तो यह तो आशा थी कि फिल्म सच्ची और अच्छी होगी परन्तु फिल्म का शुभारम्भ ऐसा होगा यह नहीं सोचा था क्योंकि जैसे ही फिल्म शुरू हुई और अंतरिक्ष से पृथ्वी की और जाता हुआ कैमरा जैसे जैसे केरल पर ज़ूम करता है पार्श्व संगीत अर्थात बैकग्राउंड म्यूजिक में श्री वेङ्कटेश्वर सुप्रभातम् की मधुर ध्वनिसिनेमा हॉल के Dolby Atmos की ध्वनि प्रणाली से गूंजने लगी तो मेरे रोँगटे खड़े हो गए अर्थात goosebumps आ गये और प्रभाव इतना आनंद भरा था कि उस क्षण के आनंद में एक आँसू भी आ गया।
पार्श्व संगीत के रूप में भजन का इतना अद्भुत और सुन्दर प्रयोग करना अपने आप में विलक्षण है।
संगीत कभी सीख नहीं पाया परन्तु ईश्वर प्रदत एक गुण है जिस से अच्छे संगीत को पहचानने की समझ अवश्य मिली अतः अच्छे संगीत का ऐसा प्रभाव मुझ पर कई बार हो जाता है
और ऐसा नहीं था कि मैं इस भजन से परिचित था इसीलिए ऐसा प्रभाव हुआ, मुझे तो यह भी नहीं पता था कि इस भजन को कहते क्या है? बस इसके गायन की शैली और संगीत इतना प्रभावी था कि मैं आनंदित हो गया
यह भजन बचपन से कई बार किसी फिल्म या किसी भी रूप में कानो में धुंधला सा पड़ा था और शायद आपने भी सुना होगा। जिनकी आवाज़ में सुना था वह आवाज़ थी एम. एस सुब्बलक्ष्मी जी की जो पहली ऐसी संगीतकार थी जिन्हे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
इस लिंक पर क्लिक करके आप भी वह आवाज़ सुन सकते है और आप भी सहमत होंगे कि आपने भी यह कभी न कभी अवश्य सुना होगा
यह शायद मेरे जीवन की पहली फिल्म थी जिसने प्रथम और अंतिम सीन दोनों में आंसू ला दिए
फिल्म देखकर घर आया और सबसे पहले काम किया कि इस भजन का नाम और इसके बोल सब सब ढूंढें और इसको डाउनलोड किया और बार इसके संगीत के साथ इसको गाने का प्रतिदिन अभ्यास करने लगा।
भक्ति भाव के साथ साथ संगीत के माधुर्य के कारण। अब लगभग 20 दिन हो गए है इसको प्रतिदिन गाते गाते भक्ति भाव और प्रबल होने लगा है। प्रभु वेंकेटेश को सुप्रभात बोलते बोलते स्वयं की प्रभात शुभ होने लगी है।
बहुत शांति मिलती है आशा करता हूँ आपको भी इसे सुनकर और संभव हुआ तो गाकर वही शांति का अनुभव होगा।
हालाँकि आवश्यक नहीं कि आप भी मेरी तरह इसे रोज़ सुने या गाए। सबका अपना अलग आनंद का विषय है अतः मुझे इसमें मिल रहा है तो मैं कर रहा हूँ। बस अपना अनुभव साँझा करने का मन किया सो कर रहा हूँ
रॉकेट्री फिल्म का आरम्भ जिस अद्भुत रमणीय भजन से होता है वह प्रभु वेंकेटेश के 4 भजनो से मिलकर बना है
श्री वेङ्कटेश्वर सुप्रभातम्
श्री वेङ्कटेश्वर स्तोत्रम्
श्री वेङ्कटेश्वर प्रपत्तिः
श्री वेङ्कटेश मङ्गलाशासनम्
इस फिल्म के लिए इन चारो भजनो को बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया गया है इसका लिंक यहाँ दे रहा हूँ
इसका संगीत इतना मधुर है कि प्रतिदिन इसको सुनने के साथ साथ इसको स्वयं भी गाता हूँ
इस फिल्म के बारे में मेरे विचार जानने के लिए यह वीडियो देखें
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गुरु-चेला और अकेला की खुराक तैयार करने के लिए चरणबद्ध निर्देश: चरण 1: टीकाकरण के बाद आपके रक्त में हो रहे बदलावों को जानने के लिए यह टेस्ट करवाएं 1. D-Dimer - यह टेस्ट आपके शरीर में थक्को को पहचानने में सहायता करता है (सामान्य सीमा– 0 से 500ng/ml (0.00 - 0.5 ug/ml है) 2. Haematology: Hb, RDW, platelets, WBC, अन्य मानक पैरामीटर 3. लीवर फंक्शन टेस्ट (LFT) चरण 2: एक स्थायी ब्लैक मार्कर के साथ 1 लीटर प्लास्टिक/कांच की प्लास्टिक कैप वाली बोतल की व्यवस्था करें। इस मार्कर के साथ, खाली बोतल पर 8 बराबर भागों को चिन्हित करें जैसा की चित्र में दिखाया गया है चरण 3: गुरु चेला और अकेला की नई बोतलें खोलने की विधि: बोतल के ढक्कन को कसकर बंद करें और उसे खोलें। कैप में स्वयं छेद करने की व्यवस्था है जिस से उसकी सील टूट जाएगी। यदि सेल्फ पियर्सिंग नहीं होती है तो एक पिन का उपयोग करें और उसमें छेद करें। चरण 4 : एक लीटर की बोतल का ढक्कन लें और उसे कपड़े से अच्छी तरह सुखा लें। चरण 5 : गुरु की 8 बूँदें और चेला की 8 बूँदें इस ढक्कन मे डालें। तब तक प्रतीक्षा करें जब तक कि घोल का रंग लगभग 30 से
*कश्यपसंहिता में वर्णित 3 हज़ार वर्ष पुराना आयुर्वेदिक टीकाकरण - स्वर्णप्राशन* भारत की इस धरा ने - हमारी साँस्कृतिक परंपरा ने कई महापुरुषो, संतो, शूरवीरो, बौद्धिको, महान तत्ववेत्ताओ को जन्म दिया है। पर इस परंपरा को खडी करने और इतने सारे महान चरित्रो का संगोपन कैसे किया होगा यह हमने कभी सोचा है क्या? हमारे प्राचिन ऋषिओं ने इसके लिये अथाह परिश्रम उठाया है। समाज स्वस्थ - निरोगी बने इसके लिये आज कई सामाजिक, धार्मिक संस्थान और खुद सरकार भी चिंतित और कार्यरत है। अरबो का बजट हमारे आरोग्य की रक्षा के लिये सरकार और अंतराष्ट्रीय संस्थाएँ खर्च करती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के केम्प, सहायता, जागृकता बढें इसके लिये विज्ञापन, फरजियात टीकाकरण द्वारा बहुत ही जोरो से प्रयत्न होता रहता है। कभी कभी इसके परिणमो की ओर दृष्टि करें तो प्रयत्न के समक्ष परिणाम बहुत ही अल्प मात्रा में दिखता है । समाज में शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढी है, पर मानसिक स्वास्थ्य का क्या? उसके लिये कभी किसी ने विचार किया है क्या?...... मानसिक रोग, निर्माल्य एवं असंस्कारी समाज अगर दीर्घायुष्य पाता है तो आश
Good
ReplyDeleteThanks virendra Bhai for such song .and film....India se bharat ki oor
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