हम जूठा व बासी नही खाते !!! अगली बार ये कहने से पहले सोचियेगा।

 हम जूठा व बासी नही खाते !!!

अगली बार ये कहने से पहले सोचियेगा।
एक इंसान की अनुभव के आधार पर सच्ची कहानी के माध्यम से समझिए।

कुछ दिन पहले एक परिचित दावत के लिये एक मशहूर रेस्टोरेंट में ले गये।

मैं अक़्सर बाहर खाना खाने से कतराता हूँ किन्तु वर्ष में एक दो बार शरीर को बाहर के कचरे से अवगत करवा देता हूँ जिस से अशुद्ध को भी झेलने की क्षमता का शरीर का अभ्यास हो जाता है।

आजकल पनीर खाना रईसी की निशानी है इसलिए उन्होंने कुछ डिश पनीर की ऑर्डर की।

प्लेट में रखे पनीर के अनियमित टुकड़े मुझे कुछ अजीब से लगे। ऐसा लगा की उन्हें कांट छांट कर पकाया है।

मैंने वेटर से कुक को बुलाने के लिए कहा, कुक के आने पर मैंने उससे पूछा पनीर के टुकड़े अलग अलग आकार के व अलग रंगों के क्यों हैं तो उसने कहा ये स्पेशल डिश है।"

मैंने कहा की मैँ एक और प्लेट पैक करवा कर ले जाना चाहता हूं लेकिन वो मुझे ये डिश बनाकर दिखाये।

सारा रेस्टोरेंट अकबका गया...
बहुत से लोग थे जो खाना रोककर मुझे देखने लगे...

स्टाफ तरह तरह के बहाने करने लगा। आखिर वेटर ने पुलिस के डर से बताया की अक्सर लोग प्लेटों में खाना,सब्जी सलाद व रोटी इत्यादी छोड़ देते हैं। रसोई में वो फेंका नही जाता। पनीर व सब्जी के बड़े टुकड़ों को इकट्ठा कर दुबारा से सब्जी की शक्ल में परोस दिया जाता है।

प्लेटों में बची सलाद के टुकड़े दुबारा से परोस दिए जाते है । प्लेटों में बचे सूखे चिकन व मांस के टुकड़ों को काटकर करी के रूप में दुबारा पका दिया जाता है। बासी व सड़ी सब्जियाँ भी करी की शक्ल में छुप जाती हैं...

ये बड़े बड़े होटलों का सच है। अगली बार पहले तो प्रयास करें की बाहर का न खाएं और यदि कभी खाना पड़े तो जब प्लेट में खाना बचे तो उसे इकट्ठा कर एक साथ ले जाएं व बाहर जाकर उसे या तो किसी जानवर को दे दें या स्वयं से कचरेदान में फेंके।

वरना क्या पता आपका झूठा खाना कोई और खाये या आप किसी और कि प्लेट का बचा खाना खाएं।

आप सोचेंगे की ऐसा कोई कैसे कर सकता है? तो आपको बता दूँ कि आज जहाँ केवल लाभ कमाने का भाव है और शुभ लाभ जैसा कुछ नहीं रह गया है वहां कोई कुछ भी कर सकता है।

जैसे की एक उदाहरण जो इस विषय से अलग है परन्तु समझाने के लिए पर्याप्त है कि सरकार द्वारा राजस्व कमाने के लिए शराब और सिगरेट के विज्ञापन पर रोक तो लगा देती है लेकिन इतने दुष्प्रभाव होने पर भी उत्पादन इकाइयां पर प्रतिबन्ध नहीं लगाती । क्योंकि पैसा चाहिए लाभ चाहिए।

ऐसा नही है की हर रेस्टोरेंट में ऐसा होता है परंतु कहाँ होता है और कहाँ नहीं इसका विश्वास बिना जांचे कैसे करें?

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दूसरा क़िस्सा भगवान कृष्ण की भूमि वृंदावन का है. वृंदावन पहुंच कर,मैँ मुग्ध होकर पावन धरा को निहार रहा था। दिल्ली से लंबी यात्रा के बाद हम सभी को कड़ाके की भूख लगी थी सो एक साफ से दिखने वाले रेस्टोरेंट पर रुक गये । समय नष्ट ना करने के लिए थाली मंगाई गई।

एक साफ से ट्रे में दाल, सब्जी,चावल, रायता व साथ एक टोकरी में रोटियां आई।

पहले कुछ कौर में ध्यान नही गया फिर मुझे कुछ ठीक नही लगा। मुझे रोटी में खट्टेपन का अहसास हुआ, फिर सब्जी की ओर ध्यान दिया तो देखा सब्जी में हर टुकड़े का रंग अलग अलग सा था। चावल चखा तो वहां भी माजरा गड़बड़ था। सारा खाना छोड़ दिया। फिर काउंटर पर बिल पूछा तो 650 रुपये का बिल थमाया।

मैंने कहा 'भैया! पैसे तो दे दूंगा, लेकिन एक बार आपकी रसोई देखना चाहता हूं" वो अटपटा गया और पूछने लगा "क्यों?"

मैंने कहा "जो पैसे देता है उसे देखने का हक़ है कि खाना साफ बनता है या नहीँ?"

इससे पहले की वो कुछ समझ पाता मैंने होटल की रसोई की ओर रुख किया।

आश्चर्य की सीमा ना रही जब देखा रसोई में कोई खाना नहीं पक रहा था। एक टोकरी में कुछ रोटियां पड़ी थी। फ्रिज खोला तो खुले डिब्बों में अलग अलग प्रकार की पकी हुई सब्जियां पड़ी हुई थी। कुछ खाने में तो फफूंद भी लगी हुई थी।

फ्रिज से बदबू का भभका आ रहा था। डांटने पर रसोइये ने बताया की सब्जियां करीब एक हफ्ता पुरानी हैं। परोसने के समय वो उन्हें कुछ तेल डालकर कड़ाई में तेज गर्म कर देता है और धनिया टमाटर से सजा देता है।

रोटी का आटा 2 दिन में एक बार ही गूंधता है।

कई कई घण्टे जब बिजली चली जाती है तो खाना खराब होने लगता है तो वो उसे तेज़ मसालों के पीछे छुपाकर परोस देते हैं। रोटी का आटा खराब हो तो उसे वो नॉन बनाकर परोस देते हैं।

मैंने रेस्टोरेंट मालिक से कहा कि "आप भी कभी यात्रा करते होंगे, इश्वेर करे जब अगली बार आप भूख से बिलबिला रहे हों तो आपको बिल्कुल वैसा ही खाना मिले जैसा आप परोसते हैं" उसका चेहरा स्याह हो गया....

आज आपको खतरो, धोखों व ठगी से सिर्फ़ जागरूकता ही बचा सकती है क्योंकी भगवान को भी दुष्टों ने घेर रखा है।

भारत से सही व गलत का भेद खत्म होता जा रहा है....


भारत में सबसे पहले खाना बनारस में बिकना शुरू हुआ उस से पहले भारत में अन्न बेचना पाप माना जाता था परन्तु समय के साथ सामाजिक व्यवस्था बदली और सम्मानजनक जीविका का ठिकाना जो गाँव में हुआ करता था अब वह केवल जीविका की व्यवस्था करने तक सीमित हो गया जिसमे सम्मान हो या न हो अब महत्त्व का नहीं था।

हमारे देश में भोजन को बनाने वाले का बनाते समय और खाने वाले का खाते समय मन शांत होना चाहिए। परन्तु यह तो असंभव सा काम है आज कल क्योंकि दोनों ही जल्दी में है।

भजन में ओ या कहें की ॐ की ध्वनि जुड़ती है तो वह भोजन बनता है। अतः भोजन को भजन की तरह ही करना उचित है।

आश्रमों में और गुरुद्वारों में यदि भोजन प्रसाद पाया हो तो ध्यान देना कि भोजन परोसते समय परोसने वाला रोटी आदि सब बिना आपकी थाली या आपको स्पर्श किये बिना ऊपर से छोड़ कर आपके हाथ में गिरा देते है।  भोजन प्रसाद परोसते समय आपका झूठा हाथ, रोटी और परोसने वाले का हाथ एक साथ संपर्क में नहीं आने चाहिए क्योंकि ऐसा होने से आपका झूठा हाथ का झूठापन उस रोटी के माध्यम से सूक्ष्म रूप से उस परोसने वाले के हाथ को भी झूठा कर देता और वह उस झूठे हाथ के साथ पूरे भोजन को झूठा कर देगा।  यही नियम सब्ज़ी, चावल, दाल आदि के साथ भी पालन होता है।  

मेरी बेटी के गुरुकुल में तो यदि परोसने वाला पात्र यदि परोसते समय किसी की झूठी थाली से छू भी जाए तो उस पात्र में रखा भोजन फेंकना पड़ता है क्योंकि वह झूठा जो गया है. 

विवाह आदि में भी यदि कभी मज़बूरी में खाना पड़ता है और यदि अंग्रेजी पद्धति के अनुसार खड़ा खाना अर्थात अंग्रेजी में बुफे (buffet)  तो मैं सदा सबसे पहले भोजन लेता हूँ क्योंकि कुछ देर बाद वह पूरा भोजन झूठा हो जाता है।  कैसे? प्लेट में खाना ख़त्म होकर दोबारा लेने सब अपने झूठे हाथो से उस परोसने वाली चम्मच को हाथ लगाते है और फिर उसी चम्मच को कोई दूसरा व्यक्ति अपने झूठे हाथो से झूठा करता है और ऐसे वह अनगिनत बार झूठन लग जाती है।  उसपर लोग उस उस परोसने वाली चम्मच को झूठे हाथो से अपनी झूठी थाली में लगाते है तो वह और भी अधिक झुठी हो जाती है।  क्योंकि अब विवाह का आतिथ्य ठेके पर दिया जाने लगा है जिसमे अधिक से अधिक व्यंजन हो इसपर तो ज़ोर है परन्तु झूठन खिलाकर पाप के भागी बन रहे है इसमें कोई ध्यान नहीं देता।  

भारतीय पद्धति में बैठकर भोजन जीमने की परंपरा ऐसे ही नहीं सर्वश्रेष्ठ थी।  

तो जिस देश में इतने सूक्ष्म रूप से भोजन बनाने और करने की पद्धति को परिभाषित किया गया है वहां जीभ अर्थात रसना के स्वाद के लिए किसी का झूठा खाना पड़े इस से बड़ा दुर्भाग्य हो नहीं सकता।  

हर दुकान व प्रतिष्ठान में एक कोने में भगवान का बड़ा या छोटा मंदिर होता है, व्यपारी सवेरे आते ही उसमे धूप दीप लगाता है, गल्ले को हाथ जोड़ता है और फिर सामान के साथ आत्मा बेचने का कारोबार शुरू हो जाता है!!!

भगवान से मांगते वक़्त ये नही सोचते की वो स्वयं दुनिया को क्या दे रहे हैं!!

जागरूक बने!!
और कोई चारा नही है।

Comments

  1. वाह जी वाह अति उत्तम

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  2. Bahut sahi Baat btai bhai apne

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  3. जागरूक hona hi sabke liye acha h.... Bhai

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, लोग सजग रहे

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  5. बहुत ही सुंदर बात कही श्रीमान जी आपने

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  6. पहले वाली कहानी पर यक़ीन नहीं हो रहा, कोई किसी का बचा हुआ झूठा ख़ाना कैसे दे सकता है 🤯

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  7. सही बात कही

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  8. jagrukh karne ke liye dhanybaad bhai ji

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  9. ज्यादातर होटलों और ढाबों का ये ही काला सच है

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  10. Sahi jankari hai Sir

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  11. सही है , मैने भी सुना है कई होटलों में ऐसा होता है।

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  12. Bilkul shi kha apne bhai

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  13. Mai bnaras se hi hu. Sbse phle dudh se paneer bnane ka kam bhi yhi suru hua. Isse phle dudh fadna paap mana jata tha.

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  14. आप ये सब गड़बड़ कैसे भाप जाते हो वीरेंद्र जी हमे तो पता ही नही चलता । बड़ी पैनी निगाह हे आपकी ।

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  15. सत्य कहा आपने वीरेंद्र जी भाईसाहब

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