पूर्वजो का धन्यवाद !
यह चित्र 2012 आगरा रेलवे स्टेशन का है। इस से पहले मैं ऐसे कान साफ करवाना सुरक्षित नही समझता था। परंतु राजीव भाई को सुनकर पहली बार इस प्रकार से कान साफ़ करवाए थे। वो भी केवल 20 रु में
जो आनंद आया मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता
न डिग्री, न appointment, सेवा कभी भी कही भी।
हमारे पूर्वजो के द्वारा इन कान साफ़ करने वाले लोगो की पूरी जमात खड़ी की गयी जिन्हें विशेष प्रक्षिशण दिया गया था कान की सभी परेशानियों के लिए यहाँ तक आपातकालीन स्थिति के लिए भी जिसमे कान में अगर कुछ फंस जाये तो यह आसानी से निकाल देते है
ज्यादा बड़ा रोग हुआ तो आयुर्वेदिक वैध हुआ करते थे। अब यही काम डिग्री के चक्कर में कुछ डॉक्टरों की बपौती बन गया है। जिनके पास कुछ आधुनिक मशीने है जिसका खर्चा यह हमसे लेते है।
कान साफ़ होते देखना कई लोगो को बहुत भाता है इसीलिए यूट्यूब पर करोडो लोग कान को साफ़ होने के वीडियो को देखते है। विदेशो में कोई सोच भी नहीं सकता कि सड़क किनारे बैठकर कान साफ़ हो सकता है। पहले के लोग अपनी पूरी दूकान अपनी बगल में लेकर चलते थे।
वो अलग बात है की आज इसमें कुछ गलत तरीके से धोखा देते है और पैसे कमाते है लेकिन फिर भी हमारे पूर्वजो ने तो यह व्यवस्था हमारे भले के लिए बनायीं थी परन्तु हर काम की तरह इसमें भी गलत लोग घुस गए है उसमे दोष पूर्वजो का नहीं है। ऐसी व्यवस्था देने के लिए उनका धन्यवाद।
लेकिन जिस तरह की व्यवस्था आज बनती जा रही है
उसके बाद पता नहीं हमारी आने वाली पीढ़ी हमें धन्यवाद देगी या कोसेगी।
उसी कृतज्ञता के भाव से श्राद पक्ष में श्रद्धा के साथ उन्हें स्मरण करता हूँ।
यह विलुप्त ब्राशी प्रजाति है जो कान, नाक, आँख, का घर घर जा कर इलाज करते थे कान की फंगस, दाने, फोड़ा फुन्शी, और इनके गुरु ऑपेरशन तक प्राकृतिक औषधि व जड़ी बूटियों से बड़ी कुशलता से करते थे, नाक की नक्शीर, नाक में फसा कफ का इलाज , नौसादर और एक तेल बड़ा प्रसिद्ध है सायनस के लिए "षडबिंदु तैल" जो दुनिया मैं सायनस की अद्भुत और एक मात्र दवा जो जड़ से सायनस का इलाज मात्र 2 दिन में करती है इस जाति की देन है।
अंग्रेजी पैथी केवल ऑपेरशन कर सकती है ठीक नहीं।
ऐसे ही आँखों के लिए काजल, सुरमें, लोशन, बाम, और आँखों मैं डाले जाने वाली विभिन्न जड़ी बूटियों के द्रव्य, जो रतोंधी, सफ़ेद और कला दाग , दोहरा व तिरछा पन, इनके समय मे हमारे देश मैं कोई चश्मा और आँख,कान,गाला,और सिर, का रोग नहीं होता था
-वीरेंद्र
सह-संस्थापक
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