मकान नहीं घर बनाओ
" मकान "
बीते हफ़्ते दो मित्रों ने अपना नया मकान देखने के लिए बुलाया। एक को 11 साल लगे.. मकान बनवाने में दूसरे को 9 साल। इस एक दशक के समय में उन मित्रों ने बस एक ही काम किया ..वह यह कि "मकान बनवाया" ...औऱ उससे पहले 20 साल तक जो काम किया वो यह कि "मकान बनवाने" लायक पैसा जुटाया...
मेरी मकान, इंटीरियर, एलिवेशन, लक धक साजसज्जा जैसी चीज़ों में बिल्कुल भी रूचि नही है ..बल्कि साफ़ कहूं ..तॊ अरुचि ही है वे मित्र उच्चता के घमंड से विकृत हुए एक एक कमरे, गैलरी, गार्डन, आर्किटेक्ट की बारीकियां, उनके निर्माण में लगी सामग्री, ख़र्च हुआ पैसा ..आदि का विवरण दे रहे थे..... इधर मैं भी सौजन्यतावश "हूं , हां " अच्छा ", वाह , ग़ज़ब " जैसी प्रतिक्रियाएं देकर उनके अभिमान को पुष्ट किए दे रहा था !
जबकि हक़ीक़त यह थी कि मैंने शायद ही किसी चीज़ को गौर से देखा हो !! बचपन से ही मुझे मकान,गाड़ी,कपड़े जैसी बातों में न्यूनतम रूचि रही है । उनकी रनिंग कॉमेंट्री रुकने का नाम नहीं ले रही थी - "ये देखिए,वो देखिए, गैरिज ऐसा है,गार्डन की लाइटिंग ऐसी है.... वगैरह वगैरह जबकि मेरी दृष्टि उनके नवीन लक धक मकान से अधिक उनके रूखे और नीरस चेहरे पर थी !
जिस विषय में आपकी रूचि होती है वैसा ही आपका व्यक्तित्व बन जाता है !
वस्तुओं में अधिक रूचि रखने वाला व्यक्ति भी वस्तु की तरह ही हो जाता है पार्थिव,चेतना विहीन,निष्प्राण
ज़्यादातर वे सभी व्यक्ति जिनके "क़ीमती मकान" होते हैं, कौडियों के आदमी होते हैं
उनका पूरा व्यक्तित्व लाभ हानि,गुणा भाग,जोड़ घटाना जैसे गणित के उबाऊ प्रमेय की तरह हो जाता है पीछे उनकी सजी धजी पत्नियाँ भी थीं ... ऐसे बर्तनों की तरह जिन्हें ऊपर से चमका दिया गया हो लेकिन जिनके भीतर फफूंद लगी हो
जो सिर्फ़ एक ही बात से मदमत्त थीं कि "मैं इतने क़ीमती घर की स्वामिनी हूं"
भारतवर्ष में लोगों को एक ही शौक है "अपने सपनों का मकान बनवाना" या फिर बने हुए मकान को रेनोवेट करवाना !! वे पूरी ज़िंदगी इसी में खपाए रहते हैं !
थोड़ा मनोवैज्ञानिक शोध करने पर मैंने पाया कि यह मूलतः उनका शौक़ नहीं है, इसके पीछे गहरे में दिखावे की मनोवृत्ति काम करती हैं ! यह एक ऐसा भाव हैं जो समाज की सामूहिक दिखावा वृति से प्रसारित होता हैं और सभी अहंकारी, प्रतिस्पर्धी रडार इसे कैच करते जाते हैं !! फिर उसी सिग्नल के अनुरूप उनका जीवन परिलक्षित होता है, वह हर वक़्त अपने आस-पास के लोगों से तुलना में व्यस्त रहता है
"तेरे पास ऐसी कार हैं ..तॊ मेरे पास वैसी कार हैं"
तेरे कपड़े इतने महंगे ..तॊ मेरे कपड़े उतने महंगे !
तेरा फार्म हाऊस ऐसा हैं ..तॊ मेरा फार्म हाऊस वैसा हैं
तू सिंगापुर गया ..तॊ मैं स्विट्जरलैंड जाऊंगा
तेरा मकान ऐसा हैं ..तॊ मेरा मकान वैसा हैं !
ऊपर लिखे "तू" "तेरा" उसके रिश्तेदार, पड़ोसी और सर्किल के लोग होते हैंं जिनकी प्रगति और जीवन शैली से प्रतिस्पर्धा में वह पूरा जीवन गुज़ार देता है
वह सुंदर मकान तॊ बना लेता है मगर सुंदर मकान के आस्वाद लायक़ अपनी चेतना नहीं बना पाता !!
वह बाहरी मकान तॊ बना लेता हैं मगर उसकी चेतना का घर खण्डहर ही रहता है
उसकी चेतना के सभी कमरे शरीर,प्राण,मन,भाव,बुद्धी, परम चैतन्य कभी खड़े ही नहीं हो पाते
अगर भोक्ता उपस्थित नहीं हैं तॊ भोग व्यर्थ हैं !
वर्ना तॊ आपके साथ आपका सूटकेस भी विदेश यात्रा कर आता है मगर सूटकेस को कोई रस नहीं हैं क्योंकि वह चेतनाशून्य है..तॊ मेरी तॊ दृष्टि इस बात पर हैं कि चैतन्य की ईमारत कितनी भव्य और विराट हो ! क्योंकि अंततः भोग तॊ चेतना से ही होना है
ज़्यादातर भव्य घरों में अकेलेपन से जूझते बीमार, तनावग्रस्त प्रौढ़ या बूढ़े ही पाए जाते हैं क्योंकि अक्सर ..तॊ सपनों का मकान बनाते बनाते इतनी उम्र हो ही जाती हैं !!
घर कहलाने के लिए घर के 5 लक्षण होने चाहिए:
1) घर आरोग्य की दृष्टि से ठीक हो
2) घर अध्यात्म की दृष्टि से ठीक हो
3) घर आर्थिक रूप से संपन्न बनाए
4) घर सामाजिक दृष्टि से ठीक हो
5) घर प्रकृति से प्रेम सिखाए
1) घर आरोग्य की दृष्टि से ठीक हो
2) घर अध्यात्म की दृष्टि से ठीक हो
3) घर आर्थिक रूप से संपन्न बनाए
4) घर सामाजिक दृष्टि से ठीक हो
5) घर प्रकृति से प्रेम सिखाए
अगर आपकी संगीत में रूचि नहीं हैं तॊ महंगा म्यूज़िक सिस्टम व्यर्थ है
अगर आपको फूलों में रस नहीं हैं तॊ फुलवारी व्यर्थ है
अगर आप रोमांटिक नही हैं तॊ सुंदर शयनकक्ष का क्या मज़ा
अगर आप रोगी हैं तॊ लज़ीज़ पकवान किस काम के
अगर आपके भीतर ही रस नहीं हैं तॊ क्या कीजिएगा इस महंगे दिखावे का
अच्छा मकान अच्छी बात है मगर चेतना की ईमारत भी बनाइए
जीवन बहुत छोटा और अनिश्चित है,इसे महज़ पदार्थो के संग्रहण में ही ना गुज़ार दें !
क्योंकि एक दिन तॊ यह देह भी मिट्टी में मिल जानी है और मकान भी !!
जो अजर अमर हैं उस पर भी दृष्टि रखें ! चेतना का मकान बनाएं !! समय उतना ही है।
अगर आप यहां लगाएंगे तॊ वहां नहीं लगा ाएंगे
महज़ दिखावे के ज़रा से रस के लिए जीवन की पूरी ऊर्जा और समय का निवेश कोई फ़ायदे का सौदा नहीं है
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