आर्गेनिक बच्चे

 


आर्गेनिक बच्चे


यह शीर्षक पढ़कर चेहरे पर हल्की मुस्कान अवश्य आ गई होगी अतः इस मुस्कान को सदैव बनाये रखने के लिए कुछ विचार सांझा कर रहा हूँ।

जहां ट्रेन में अन्य बच्चो को हाथ मे कोल्ड ड्रिंक, चिप्स, कुरकुरे, मोबाइल रूपी हानिकारक पदार्थ देख दुख होता है वही अपने बच्चों को कुछ अच्छा खाता देख राजीव भाई के निमित्त इस विचारधारा में आने का गर्व।

मुझे याद है कि विवाह के पश्चात मेरी पत्नी ने मेरी कुसंगति में ही मोमोज़, पिज़्ज़ा आदि खाना आरम्भ किया था। यदि राजीव भाई नही मिलते तो बच्चो को भी यही खिलाता। स्वयं रोगी होता बच्चे औऱ पत्नी भी रोगी होते। स्वयं की बीमारियों पर ध्यान दूं या परिवार की। बस इसी में जीवन बीत जाता। मैं मानता भी हूँ और जानता भी हूँ कि बच्चे अपने प्रारब्ध के अनुसार गर्भ ढूंढते है और माता पिता का जीवन स्वर्ग या नर्क बना देते है। अब पीछे कुकर्मो को तो हम बदल नही सकते, परंतु आने वाले जन्मो का तो आज से ही सुधारने का प्रयास भोजन पानी और कर्मो को सुधार कर तो कर ही सकता हूँ।

अपने पूर्वजों के दिए इस शरीर का नाश केवल जीभ के स्वाद हेतु कर देना अत्यंत निंदनीय पापकर्म है।
परंतु उस शरीर को आने वाली स्वस्थ पीढ़ी में रूपांतरित कर देना बड़ा ही पुण्यकर्म।
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राजीव भाई के ऋणी
वीरेंद्र की कीबोर्ड रूपी कलम से

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