गर्भनाल देर से क्यों काटनी चाहिए? Why Umbilical Cord Clamping should be delayed after birth?




गर्भनाल देर से
क्यों
काटनी चाहिए? यह विषय शायद अधिकतर लोगो के लिए नया है परन्तु वास्तव में बहुत प्राचीन और महत्वपूर्ण है यह आपके होने वाले बच्चे पर जीवन पर्यन्त प्रभाव डालता है अतः इसे अवश्य पढ़े और प्रेषित करें। अन्य विषयो की भाँति आधुनिक विज्ञान इस विषय पर आज बात करने लगा है और लोगो को लगता है कि यह इस विकृत विज्ञान की खोज है परन्तु सत्य यह है कि इस विषय का ज्ञान भारत में प्राचीन काल से रहा है और उसका पालन किया जाता रहा है। लेकिन हमारी गुलाम मानसिकता ऐसी है कि जब तक किसी विषय पर विदेशी ठप्पा न लग जाये उसे स्वीकार करने में शर्म लगती है।

क्या है विषय? जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह अपना पोषण और जीवन संचालन की शक्ति गर्भनाल के द्वारा माँ से प्राप्त करता है जिसे अंग्रेजी में अम्बिलिकल कॉर्ड (Umbilical Cord) कहते है। जब बच्चा जन्म लेता है तो वह इसी नाल से अपनी नाभि द्वारा जुड़ा हुआ ही आता है परन्तु जन्म के कुछ मिनट तक भी इस नाल में रक्त प्रवाह जारी रहता है जो कुछ मिनट बाद पूरा बच्चे में चला जाता है और तब इस नाल को काटकर माँ को बच्चे से अलग कर दिया जाता है। अंग्रेजी में इसे cord clamping कहते है। हम आज इसी विषय पर जानकारी हासिल करेंगे। कई प्राकृतिक जीवन जीने की सोच को समर्थन देने वाली माँओं ने अपने बच्चो के जन्म के समय "गर्भनाल देर से काटने" (Delayed Cord Clamping) की योजना बनाई हुई है क्योंकि इसके कई अद्भुत लाभ है। हमारा मानना ही की यह हर बच्चे के जन्म के समय एक आवश्यक नियम होना चाहिए।



दरअसल, 1950 के दशक तक, गर्भनाल को कसने और काटने के लिए लगभग 2 से 10 मिनट तक इंतजार करने का नियम सभी किया करते थे। हालाँकि यह समय हर बच्चे के लिए अलग हो सकता है। लेकिन फिर डॉक्टरों ने जन्म का व्यावसायिक दृष्टि से अधिक से अधिक डिलीवरी करवाने के चक्कर में कुप्रबंधन करना शुरू कर दिया और क्योंकि उनके लिए यह आसान था इसीलिए उन्होंने फैसला किया कि 10 - 15 सेकंड में गर्भनाल काट देना चाहिए और इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं था और न ही कोई तुलनात्मक अध्ययन जिस से यह प्रमाणित हो कि पहले वाला नियम गलत है और इनका सही।

लेकिन गर्भनाल देर से काटने के सचमुच बहुत लाभ हैं। आप किसी पुरानी दाई से पूछेंगे तो वह भी आपको यही बताएगी।



अध्ययनों से पता चला है कि उन शिशुओं में रक्त की मात्रा की कभी कमी नहीं होगी है उन्हें सांस से सम्बंधित विकार नहीं होंगे। जिनकी नाल को तब तक नहीं काटा जाता जब तक कि वह स्पंदन (धड़कना) करना बंद न कर दे और साथ में सफ़ेद और बिलकुल ढीली या शिथिल न पड़ जाये क्योकी यह संकेत है कि गर्भनाल का सारा रक्त बच्चे में चला गया है। इसका मतलब है कि शिशु के रक्त में कभी आयरन की कमी नहीं होगी और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी की सम्भावन नहीं होगी। खैरात में मिलने वाली सरकारी आयरन की हानिकारक गोलियां नहीं लेनी पड़ेगी। बेहतर ज्ञान संबंधी विकास के साथ आयरन का गहरा संबंध है, और अध्ययनों से पता चलता है कि गर्भनाल काटने में देरी के कारण 4 और 12 महीनों के बाद शिशुओं का मस्तिष्क बेहतर विकसित होता है।

समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चो और जन्म लेते ही जीवन के लिए जूझ रहे बच्चो को भी गर्भनाल काटने में विलम्ब करने से लाभ होता है क्योंकि जब तक वह माँ से जुड़े होते है उनकी जीने की सम्भावना बढ़ जाती है। पुरानी दाई आपको बताएगी कि जब कोई बच्चा पैदा होते ही रोता नहीं था तो उसकी नाल को सेंकने से और गर्मी देने से कई बच्चे जीवित हो उठते थे। इसके प्रमाण के लिए Janet Chawla नाम का यूट्यूब चैनल है जिसमे Born at Home नाम की एक पुरानी डॉक्यूमेंट्री देखिए है जिसमे अलग अलग क्षेत्रो की दाइयों के अनुभव को बहुत अच्छे से संजोया गया है। ऐसे बच्चे अपने आप अधिक आसानी से सांस लेना शुरू कर देते हैं, और बाद में संक्रमण और रक्तस्राव का जोखिम भी बहुत कम होता है। उनके जीवित रहने की संभावना भी अधिक होती है।
गर्भनाल जल्दी काटने के कोई लाभ नहीं हैं। ऐसा करने से गर्भनाल से लगभग 80 से 100 ml रक्त होता है जो तुरंत नाल काटने से नीचे गिरकर व्यर्थ हो जाता है। कई मामलो में डॉक्टर जन्म के तुरंत बाद बच्चो में खून की कमी बताकर इतना ही खून चढ़ाने को कहता है जिसकी शायद आवश्यकता नहीं पड़ती यदि गर्भनाल थोड़ी देरी से काटी जाती और सारा रक्त बच्चे में पहुंच जाता। अतः यदि आपके बच्चा होने वाला है तो डॉक्टर को पहले तो निवेदन करें और न माने तो उसको लालच देकर कहे कि गर्भनाल देरी से काटे।


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