क्या है न्यू वर्ल्ड आर्डर जिसके मोदी जी प्रचारक है? What is New World Order (NWO) which now a days Modi ji is advocating a lot?

 




क्या है न्यू वर्ल्ड आर्डर जिसके मोदी जी आजकल बड़े फैन है?

कोरोना महामारी के दौरान एक शब्द बहुत चर्चा में आया है वो है ‘द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ (NWO) या जिसे नई विश्व व्यवस्था कह सकते हैं, वैसे तो इसके लिए कई षड्यंत्र सिद्धांत (Conspiracy Theories) चर्चाओं में हैं।


ये ज़रूरी नहीं कि सभी कांस्पीरेसी थ्योरीज़ झूठ या मनघडंत हों, दुनिया में ऐसी कई कांस्पीरेसी थ्योरीज़ सच भी साबित हुईं हैं जिनपर लोगों को विश्वास नहीं था। 1950 में एक कांस्पीरेसी थ्योरी ये उठी थी कि CIA अपने कुछ ख़ुफ़िया प्रोपगैंडों को पूरा करने और जनता की राय बनाने के लिए जर्नलिस्ट्स को भर्ती कर रही है। और अंत में ये बात Operation Mockingbird में सच साबित हुई।

2011 में अमरीका में इस कांस्पीरेसी थ्योरी पर चर्चा और संशय शुरू हुआ कि सरकार लोगों के फोन को सर्विलेंस कर रही है, और ये बात 2013 में जाकर सच साबित हुई।

2011 में ही वायरस पर बनी फिल्म ‘Contagion’ रिलीज़ हुई ये भी कह सकते हैं कि भविष्य की कांस्पीरेसी थ्योरी ही थी जो कि विश्व में कोरोना महामारी के आगमन के साथ सटीक साबित हुई।

ठीक वैसे ही झोरोना से पहले अक्टूबर 2019 में एक Event 201 हुआ जो कोरोना नाम की महामारी होने की रिहर्सल था जिसके वीडियो यूट्यूब पर आसानी  उपलब्ध है , इस लिंक पर (EVENT 201) कर आप उन वीडियो को देख सकते है 





क्या है न्यू वर्ल्ड ऑर्डर ?

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर मुख्य तौर पर गुप्त रूप से उभरती हुई अधिनायकवादी विश्व सरकार की परिकल्पना है। और इस नई अधिनायकवादी विश्व व्यवस्था की परिकल्पना को साकार करने के लिए दुनिया के प्रमुख ताक़तवर नेता, ख़ुफ़िया संगठन, ताक़तवर समूह/घराने एकजुट हो चुके हैं।

इस नई विश्व व्यवस्था की कांस्पीरेसी थ्योरी के सिद्धांतों में आम बिंदु ये हैं कि एक वैश्विक एजेंडे के साथ दुनिया के प्रमुख ताक़तवर नेता, पूंजीपति वर्ग, ख़ुफ़िया संगठन, ताक़तवर समूह/घराने एकजुट होकर एक गुप्त समूह (Secret Group) का गठबंधन बनाकर एक सत्तावादी विश्व सरकार के माध्यम से दुनिया पर शासन करने की साजिश कर रहा है, जो संप्रभु राष्ट्र-राज्यों की जगह लेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 10 फ़रवरी 2021 को लोकसभा में दिए भाषण में ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ शब्द का प्रयोग किया था, उन्होंने कहा था कि “कोरोना के बाद भी एक नया वर्ल्ड ऑर्डर नजर आ रहा है, ऐसी स्थिति में भारत विश्व से कटकर नहीं रह सकता है, हमें भी मजबूत प्लेयर के रूप में उभरना होगा।’

और लाल किले की प्राचीर से भी दो बार वह 2021 एवं 2023 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस भविष्य की गुलामी के न्यू वर्ल्ड आर्डर की घोषणा कर चुके है।  ठीक इसी प्रकार देश विदेश के कई मंचो से उन्होंने किसी और विषय को भले ही न उठाया हो परन्तु न्यू वर्ल्ड आर्डर प्रति अपना अनावश्यक प्रेम अवश्य दिखाया है.   हालाँकि वह तो नहीं बताते की यह आर्डर का अर्थ क्या है ? कुछ लच्छेदार बातो के द्वारा वह इसका एक narrative सेट करने का असफल प्रयास करते दीखते है जिसमे वह 2 बातो को अवश्य बोलते है पहली की पोस्ट कोरोना या कोरोना के बाद और दूसरा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नया वर्ल्ड आर्डर आया था तो अब फिर आएगा।  

अब वो प्रेस कांफ्रेंस तो नहीं करते तो कोई पूछ भी लेता और इंटरव्यू भी वो अपने द्वारा गोद लिए गए पत्रकारों को ही देते है जो उनसे वही प्रश्न करते है जिसकी उनको पूछने की अनुमति मिली है।  

पूछना यह था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस नए वर्ल्ड आर्डर ने दुनिया का क्या भला किया है?

क्या दुनिया से गरीबी चली गई? नहीं!

 क्या शान्ति की स्थापना हुई? उल्टा बड़े विश्वयुद्ध तो नहीं छोटे युद्ध बहुत अधिक हुए।  

क्या पर्यावरण सुधरा? नहीं!

क्या लोगो का स्वास्थ्य सुधरा?नहीं!

क्या जिस दिशा में विश्व गया जहाँ लोगो के विवेक और बुद्धि में सकारात्मक परिवर्तन आये? नहीं!

क्या परमाणु हथियारों की संख्या कम हुई? नहीं!

क्या लोगो में सुरक्षा की भावना आई? नहीं!


ऐसे कई प्रश्न है कि लोगो की जेब में अधिक पैसा भरकर, चमक दमक बढ़ने के अलावा कुछ बेहतर हुआ? नहीं!

वो पैसा भी विकृति भरे बाजारवाद के माध्यम से उन्ही माफियाओ के पास जा रहा है।  

केवल चमक दमक बढ़ने से समाज बेहतर नहीं बनता उसके लिए उनमे बुद्धि, विवेक, संस्कार होने आवश्यक है 

2014 से 100 लाख करोड़ का अतिरिक्त क़र्ज़ लेकर 55 लाख करोड़ का क़र्ज़ अब 155 लाख करोड़ करके  कौन सा आत्मनिर्भर भारत बना रहे है? जीडीपी के अनुपात में इतना क़र्ज़ उचित नहीं है।  

2018 में क़र्ज़ चुकाने के लिए श्रीलंका ने चीन को अपना एक पोर्ट 99 साल की लीज पर दे दिया।  ठीक वैसे ही  भारत को वर्तमान में तो अपने रूपए का अवमूल्यन और WHO जैसी संस्थाओ के तलवे चाट कर उनकी नीतियों को भारत में लागु करवाकर क़र्ज़ की भरपाई करनी पड़ रही है, भविष्य में इतना क़र्ज़ माफ़ करने के लिए शायद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुलामी स्वीकार करनी पड़े। जिसमे विवेकहीन प्रजा को फ्री wifi, फ्री अनाज, बेरोज़गारी भत्ता, बिना विवाह साथ रहने, बिना विवाह बच्चे करने, जीडीपी बढ़ने को वैश्यावृत्ति को लीगल करने, आदि पशुवृत्ति को पुष्ट करने वाली नीतियों को लागू करने वाला उनके लिए अच्छा लीडर होगा।  

जैसे WTO पर हस्ताक्षर करने वाले तो अपनी आयु पूरी कर स्वर्ग या नर्क जहा भी सिधारे होंगे परन्तु उनके हस्ताक्षर के नुक्सान देश आज तक भुगत रहा है।  ठीक वैसे ही आज जो नए जहाज़, नयी संसद, नए हाईवे ( जो बनते क़र्ज़ से है लेकिन टोल वसूल हमसे करते है लेकिन क़र्ज़ नहीं चुकता), जन सेवको की राजसी जीवन का खर्चा, इनकी पेंशन, इनकी सैलरी सब खर्चे क़र्ज़ से किया जा रहे है उसकी भरपाई कैसे होगी, किसी के पास कोई दृष्टि नहीं।   अपने 5 वर्ष पूरे कर पेंशन बंध जाए बस इतना ही विज़न है।  

    यह बाते इसीलिए महत्वपूर्ण है कि नई वर्ल्ड आर्डर के प्रति अपनी वफादारी ही इनको इस पद तक लायी है और कोई कारण नहीं है क्योंकि इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में दुनिया के प्रमुख ताक़तवर समूह/घराने ये तय करेंगे कि किसी देश में किसकी सरकार होगी, किसी देश की अर्थव्यवस्था का हाल कैसा होगा, राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कौन बनेगा। न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के उलट चलने वाले देशों पर प्रतिबन्ध कैसे और कितने लगाए जाएँ ताकि उनकी नकेल कसी जा सके।

विश्व में बढ़ता भूमंडलीयकरण, निजीकरण, उदारीकरण और FDI आदि भी इसी एजेंडे की देन हैं। आयात निर्यात पर नियंत्रण, प्राकृतिक संसाधनों को ख़त्म करने तथा जैविक और रासायनिक हथियारों का उपयोग, MNC का प्रभुत्व, मौसम व पर्यावरण संबंधी आपदाओं (HAARP, chemtrails) आदि को नियंत्रित करना भी इसी कड़ी का हिस्सा है।

मनचाही /कठपुतली सरकारें (Shadow Governments) :

संशयवादियों का तर्क है कि न्यू वर्ल्ड आर्डर के एजेंडे में अड़ंगा डालने वाले देशों की सरकारों को कैसे भी हटाया जाए, चाहे विरोधी दलों द्वारा, चाहे सैन्य तख्तापलट के द्वारा, चाहे संयुक्त राष्ष्ट्र संघ द्वारा अनुमति या बिना अनुमति के उस देश पर हमला कर मनमर्ज़ी की सरकार बना देने। इराक युद्ध और उसके बाद शुरू हुई अरब क्रांति जिसे जास्मीन क्रांति भी कहा जाता है, इसी न्यू वर्ल्ड आर्डर के एजेंडे का ही हिस्सा था। ट्यूनीशिया से लेकर मिस्र, लीबिया, इराक तक सरकारें उखाड़ फेंकी गईं, और अब सीरिया इससे जूझ रहा है।

    भारत मोदी के कारण नहीं बल्कि अपने प्राचीन धरोहर, ज्ञान, संस्कार, अध्यात्म, विज्ञानं एवं कई अन्य गुणों के कारण एक ऐसा सशक्त देश है, जिसके सम्मिलित हुए बिना न्यू वर्ल्ड आर्डर की कल्पना इन षडयंत्रकारियो के लिए अधूरी है।  अतः इन्होने भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लाकर ऐसा खेल खेला कि आपको पता भी न चले की आपके हाथ से सरकार चुनने का अधिकार लगभग छीन गया है और लगे हाथ यह अपनी मर्ज़ों की सरकार बैठा भी दे।  अतः आप सरकार  चुनते है इस भ्रम में न ही रहे।  

लगभग सभी लोकतान्त्रिक देशों की सरकारों के चयन और चुनावों में भी इस सीक्रेट सोसाइटी का पर्दे के पीछे से हस्तक्षेप रहता है। तानाशाह भी सीक्रेट सोसाइटी की पसंद के ही टिक पाते हैं।

जनसँख्या नियंत्रण (Population Control) :

    एक न्यू वर्ल्ड ऑर्डर कांस्पीरेसी थ्योरी के सिद्धांत के अनुसार नई विश्व व्यवस्था को मानव आबादी नियंत्रण के माध्यम से भी लागू किया जाएगा ताकि अधिक आसानी से व्यक्तियों के निगरानी और देशों के आंदोलनों को नियंत्रित किया जा सके। संशयवादियों का कहना है कि न्यू वर्ल्ड आर्डर के हिमायती विश्व की जनसँख्या को काफी हद तक कम करना चाहते है परन्तु इसका पक्का प्रमाण मिलने तक हम प्रतीक्षा करेंगे प्रमाण मिलने की।

परन्तु इनके कार्यक्रम जैसे की प्रजनन, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन कार्यक्रमों के माध्यम से मानव समाजों के विकास को रोकने, गे मेरीज, गर्भनिरोधक और गर्भपात को बढ़ावा देने और गैर-जरूरी युद्धों के जरिए नरसंहारों के माध्यम से जानबूझकर दुनिया की आबादी कम करने और साथ ही नई नई तरह की बीमारियां, वायरस, महामारी और बड़ी तादाद में वेक्सिनेशन और जेनेटिक इंजीनियरिंग के ज़रिये खाद्दान्नों में बदलाव कर नई पीढ़ी में प्रजनन क्षमता कमज़ोर करने का गोपनीय षड्यंत्र भी साथ में चल रहा है।

इसका पक्का प्रमाण आपको अमेरिकी सरकार द्वारा  1975 के वर्ष में लिखित एक क्लासिफाइड 123 पेज के दस्तावेज़ NSSM 200 में मिलेगा, जिसे जब 1990 के बाद सार्वजनिक किया गया तो उसमे बहुत चौकाने वाले खतरनाक सच निकले 

जिसमे कितनी बारीकी से गरीब देशो के लोगो पर नियंत्रण किया जायेगा इसका पूरा कच्चा चिट्टा डॉक्यूमेंट में है। यदि यह डॉक्यूमेंट पढ़ने के बाद भी आपके पास संशय बचता है कि यह सब कांस्पीरेसी थ्योरी है तो आप जैसो का गुलाम बन जाना ही उचित है।  

रिपोर्ट में 13 देशों को अमेरिकी सुरक्षा हितों के संबंध में विशेष रूप से समस्याग्रस्त बताया गया है: भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, तुर्की, नाइजीरिया, मिस्र, इथियोपिया, मैक्सिको, कोलंबिया और ब्राजील।

संक्षेप में, NSSM200 चार मुख्य टिप्पणियाँ प्रदान करता है

  • - दुसरे देशो की बढ़ती जनसँख्या उन देशो को भौगोलिक रूप से अधिक शक्तिशाली बनाता है जो की अमेरिका के हितो के लिए खतरा है 
  • - दुसरे देश अविकसित रहेंगे तो अमेरिका के लिए उनके प्राकृतिक संसाधन आसानी से उपलब्ध हो पाएंगे 
  • - अधिक जनसँख्या वृद्धि  दर से युवाओ की संख्या बढ़ेगी जो आगे चलकर स्थापित सरकारों के विरोध में भी जा सकते है 
  • - हमें "तीसरी दुनिया" के नेताओं को आगे रखकर अमेरिका द्वारा बनाए जनसँख्या नियंत्रण कार्यक्रमों का श्रेय उन नेताओ को देना होगा।

Read about on NSSM on Wikipedia

In summary, the NSSM200 provides four main observations:

  • Population growth of foreign nations provides more geopolitical power and possible opposition to US interests
  • The United States relies on countries being underdeveloped in order to easily obtain natural resources
  • High birth rates result with more younger individuals who oppose established governments
  • "Third World" leaders should be in the forefront and obtain the credit for successful programs.

Click to open NSSM 200 documents

यही कारण है कि इस न्यू वर्ल्ड आर्डर की कांस्पीरेसी थ्योरी के चलते आधी दुनिया के लोग कोरोना वेक्सिनेशन को लेकर भी सशंकित हैं, संशयवादियों का अनुमान है कि भविष्य में हवाई, रेल और बस सफर की अनुमति के लिए कोरोना वेक्सिनेशन अनिवार्य किया जा सकता है। यानि यात्रा की अनुमति केवल वेक्सिनेशन कराये लोगों को ही होगी, उनका ये भी अनुमान है कि इस सीक्रेट सोसाइटी से सम्बद्ध लोगों के देशों में प्रवेश के लिए पासपोर्ट पर वेक्सीन लगे होने की मुहर होगी या वेक्सिनेशन का सर्टिफिकेट होगा तभी उन्हें वीज़ा तथा उन देशों में प्रवेश मिल सकेगा।


जन निगरानी और सेंसरशिप (Public Surveillance & Censorship) :

कांस्पीरेसी थ्योरी के अनुसार आमजन की निगरानी (Surveillance) और सेंसरशिप भी न्यू वर्ल्ड आर्डर के एजेंडे में शामिल है, कोरोना महामारी के दौरान कई देशों ने इस तरह के एप बनाये जिससे निगरानी और जानकारियां लीक हुईं। लॉक डाउन, कर्फ्यू, प्रतिबंधों द्वारा जनता की घेराबंदी की गई। इसके साथ ही सामाजिक सुरक्षा नंबर, बार कोडिंग के साथ खुदरा माल की यूनिवर्सल उत्पाद कोड चिह्नों, और हाल ही में कई देशों में कई कंपनियों के कर्मचारियों के शरीर में माइक्रोचिप (RFID) प्रत्यारोपण भी इसी का हिस्सा हैं।

आपके मोबाइल फ़ोन, उसमे चल रहे मैप्स, मोबाइल का फिंगरप्रिंट स्कैनर, मोबाइल में फेस अनलॉक सुविधा, ऑनलाइन हमारे फोटो, अर्टिफिकल इंटेलिजेंस, अलेक्साम, गूगल अस्सिटेंट, फ़ोन में हर एप्प आपकी लोकेशन चालू करवाने की ज़िद पकडे बैठी है , आपकी कारो में जीपीएस, टोल प्लाजा पर भविष्य में जीपीएस आधारित टोल टैक्स, आधार कार्ड, दिल्ली जैसे शहरो में दुनिया के सबसे अधिक cctv कमरे लगे है आदि कई उपाय है जो इसी निगरानी का हिस्सा है।  जिसको वह आपकी सुविधा के लिए प्रयोग होने का मुखौटा पहना कर प्रस्तुत करते है।  राजनेता लोग जब समाज का बौद्धिक स्तर अपने बौद्धिक स्तर से नीचे गिरा देते है तभी वे अधिक समय तक शासन कर पाते है। वही भारत और लगभग पूरी दुनिया के साथ हो रहा है।

कौन हैं इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के मुख्य खिलाड़ी ?

कांस्पीरेसी थ्योरी के अनुसार इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की परिकल्पना को साकार करने वाले मुख्य खिलाड़ी हैं :
1. इल्युमिनाती
2. बिल्डरबर्ग ग्रुप
3. राथ्सचाइल्ड समूह
4. फ्रीमेसन्स
5. रॉकफेलर ग्रुप


जैसे धन कुबेर एकजुट हुए हैं, दुनिया की अधिकांश बड़ी कंपनियों और बैंकों पर इन समूहों और परिवारों का अधिपत्य है। साथ ही बड़ी फार्मा और हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ, ताक़तवर नेता, और मीडिया संस्थानों को नियंत्रित करने वाले कार्पोरेट्स भी शामिल हैं।


इल्युमिनाती (Illuminati):




इल्युमिनाती लैटिन शब्द इलूमिनातुस (प्रबुद्ध) का बहुवचन है, इल्युमिनाती की स्थापना जर्मनी के अपर बावरिया में 1 मई 1776 को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडम वेइशोप द्वारा की गई थी। इसलिए इसे बावेरियन इल्युमिनाती भी कहते हैं। द ऑर्डर ऑफ द इल्युमिनाती समूह एक प्रबुद्धता-युगीन गुप्त समाज था। इस आंदोलन में जर्मन मेसोनिक लॉज से भर्ती किए गए स्वतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद, गणतंत्रवाद और लैंगिक समानता के पैरोकार शामिल थे।

प्रोफेसर एडम वेइशोप को यकीन था कि चर्च और कैथोलिक विचारों के कारण समाज खुलकर नहीं जी पा रहा है, इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने एक ऐसी ख़ुफ़िया सोसाइटी तैयार करने की सोची, जो हर तरह की धार्मिक बंदिशों से मुक्त हो। इसी के साथ इलुमिनाती सीक्रेट एजेंसी की नींव रखी गई।

प्रोफेसर एडम वेइशोप ने इस संगठन का नाम रखा था ‘Order of Illuminati,’ ये एक ख़ुफ़िया संगठन था, जो धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ काम करना चाहता था। वो चर्च और सरकार के गठजोड़ के विरुद्ध भी था। इल्युमिनाती का एजेंडा था सांसरिक मामलों पर खुलकर बहस करना और सर्व सम्मति से बेहतर दुनिया बनाने की कोशिश करना। इल्युमिनाती के सदस्य प्रशासन को ज़रूरत से ज़्यादा अधिकार देने के भी ख़िलाफ़ थे, इस संगठन के लोग कट्टरपंथ से आज़ाद दुनिया की स्थापना करना चाहते थे।

कहा जाता है कि मई 1776 में इसके सदस्यों की पहली मीटिंग हुई, जिसमें प्रोफेसर के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी के 5 लोग थे। जल्द ही सदस्य बढ़ते चले गए और साल 1784 में ग्रुप में लगभग 3000 सदस्य हो चुके थे। इल्युमिनाती उन घटनाओं के पीछे की योजनाएं बनाने वाला ख़ुफ़िया संगठन हैं जो नई विश्व व्यवस्था की स्थापना की नींव डालेंगी।

कुछ लोग अभी भी दावा करते हैं कि 18वीं सदी में फ्रांस में हुई क्रांति के पीछे भी इल्युमिनाती संगठन ही था। कई लोग अमरीकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी की हत्या और 2001 में अमरीका में 9/11 को Twin Tower पर हुआ हमला भी इल्युमिनाती का कारनामा मानते हैं।

लेखक जैसे मार्क डाइस, डेविड इके, रयान बर्क, जूरी लीना और मोर्गन ग्रीसर, का कहना है कि बावेरियन इल्युमिनाती संभवतः आज भी तक जीवित है। इन में से कई सिद्धांतकारों का दावा है कि दुनिया की घटनाएं खुद को इल्युमिनाती गुप्त समिति के द्वारा नियंत्रित और धूर्तता से नियंत्रित की जा रही हैं। कांस्पीरेसी थ्योरी सिद्धांतकारों ने दावा किया है कि विंस्टन चर्चिल, बुश परिवार, बराक ओबामा, ज़्बिगनियेफ़ ब्रेजिंस्की सहित कई प्रमुख लोग इल्युमिनाती के सदस्य थे या हैं।

इल्युमिनाती पर वर्तमान में अधिकांशत: यहूदियों का नियंत्रण है और साथ ही इस संगठन में ईसाईयों की भी बड़ी संख्या है। अमरीका विशेष रूप से इल्युमिनाती को आर्थिक मदद करता है इसीलिए इस संगठन पर यहूदियों का आधिपत्य है।

बिल्डरबर्ग ग्रुप (Bilderberg Group):



2013 में लंदन के एक सुविधा-संपन्न ग्रोव होटल में दुनिया भर के करीब सौ धनी एवं प्रभावशाली लोगों की 61वीं गुप्त वार्षिक बैठक हुई, इन प्रभावशाली लोगों के समूह को बिल्डरबर्ग समूह कहा जाता है, जिसका गठन शीतयुद्ध के दौरान यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के बीच आर्थिक एवं सैन्य सहयोग के लिए हुआ था। चूंकि इस समूह की पहली बैठक मई 1954 में हॉलैंड के बिल्डरबर्ग होटल में हुई थी, इसलिए इस समूह का नाम बिल्डरबर्ग समूह रखा गया।

इस बैठक में करीब दो तिहाई लोग यूरोप के एवं एक तिहाई उत्तरी अमेरिका के होते हैं। इसके आमंत्रितों में से एक तिहाई राजनीतिक, जबकि दो तिहाई उद्योग, वित्त, शिक्षा, मीडिया जैसे विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां होती हैं। इन नामों में बिल क्लिंटन, ग्रीनस्पैन, रॉन कैरी, डोनल्ड रम्सफेल्ड, और बराक ओबामा तक शामिल हैं।

‘The True Story of the Bilderberg Group’ नामक बेस्टसेलर पुस्तक के लेखक डेनियल एस्टुलिन का मानना है कि यह बिल्डरबर्ग समूह संप्रभु राष्ट्रों को उखाड़ने की साजिश के साथ पूरी दुनिया को कॉरपोरेट घरानों एवं नाटो के जरिये नियंत्रित करना चाहता है।

राथ्सचाइल्ड समूह ( Rothschild Group) :


1760 के दशक के दौरान मेयर एस्मेल रोथस्चिल्ड (1744-1812) ने अपने मूल शहर फ्रैंकफर्ट में पांच बेटों की सहायता से एक बैंकिंग व्यवसाय की स्थापना की थी, जल्दी ही उनका ये पारिवारिक व्यवसाय कई यूरोपीय देशों में फैल गया। 1815 और 1914 के दौरान राथ्सचाइल्ड ने दुनिया के सबसे बड़े बैंक को नियंत्रित किया।


रॉथब्राइट बैंकिंग साम्राज्य का फ्रांसीसी क्रांति से काफी लाभ हुआ। युद्ध के दौरान, ऑस्ट्रियाई सेना ने राथ्सचाइल्ड को कई वस्तुओं के साथ आपूर्ति करने का अनुबंध किया, जिसमें गेहूं, वर्दी, घोड़े और उपकरण शामिल थे। उन्होंने सैनिकों के लिए मौद्रिक लेनदेन की सुविधा भी प्रदान की। उस समय के आसपास राथ्सचाइल्ड ने अपने पांच बेटों को विभिन्न यूरोपीय देशों के राजधानी शहरों में रहने के लिए भेजा।

उनका लक्ष्य था कि 1800 के दशक में अपने प्रत्येक पुत्र फ्रैंकफर्ट, नेपल्स, विएना, पेरिस और लंदन में एक एक बैंकिंग व्यवसाय स्थापित करे और उन्होंने किया। मेयर राथ्सचाइल्ड के पुत्रों ने एक तरह से पूरे यूरोप में बैंकिंग क्षेत्र पर धाक हासिल कर ली। राथ्सचाइल्ड सीमाओं के पार जाने वाले पहले बैंक बन गए पिछले कई शताब्दियों से युद्ध के संचालन के लिए सरकारों को ऋण देने से बांड जमा करने और विभिन्न उद्योगों में अतिरिक्त धन का संचय करने का पर्याप्त अवसर मिला। उस समय इस परिवार ने उस समय के सबसे शक्तिशाली परिवारों को भी पीछे छोड़ दिया। कांस्पीरेसी थ्योरी सिद्धांतकारों ने राथ्सचाइल्ड समूह और इल्युमिनाती के बीच सम्बन्ध भी उजागर किये हैं।

फ्रीमेसन्स (FREEMASON):



FREEMASONRY संगठन की स्थापना 1717 में इंग्लैंड में हुआ थी। और 1730 को फिलेडेल्फिया (USA) में बेंजामिन फ्रैंकलिन ने FREEMASONRY की स्थापना की थी। इस संगठन के सदस्यों को फ़्रीमेसन्स (FREEMASON) कहा जाता है। FREEMASON के शाब्दिक अर्थ को समझें तो ‘FREE+MASON’ मतलब ‘स्वतंत्र+पत्थरों का काम करने वाला कारीगर।’ फ्रीमेसन्स का जन्म इंग्लैंड माना गया है, जहाँ 15वीं शताब्दी में भवन निर्माण उत्कर्ष पर था और देश की अर्थव्यवस्था में अहम् भूमिका निभा रहा था। उस समय मेसन या Stonemanअलग अलग प्रोजेक्ट पर जा कर कंस्ट्रक्शन का काम करते थे तथा एक परिवार की तरह रहते थे। उसी दौरान Mason Guild का गठन हुआ, जिसमे प्रवेश सिर्फ प्रवीण कारीगरों को दिया जाता था. प्रवेश लेने पर मेसन को गोपनीयता की शपथ लेनी होती थी जिसके बाद उसे पत्थर के बारीक काम के सीक्रेट सिखाये जाते थे। वहीं से इस सीक्रेट ऑर्गनाइज़ेशन के गठन की नींव पड़ी।

इस समय अमेरिका में लगभग 20 लाख और इंग्लैंड में लगभग 5 लाख मेसन हैं, आधुनिक मेसन अत्यंत प्रभावशाली लोग हैं। फ्रीमेसन कोई धर्म नहीं है इसलिए किसी भी प्रजाति यूरोपियन,एशियाई, अफ्रीका मूल का पुरुष जिसकी उम्र 21 वर्ष से ऊपर हो मेसन बनने के योग्य होता है। ये ऐसे लोगों का समूह है जो आत्मसुधार और ज्ञानवर्धन में विश्वास रखते हैं, सरकारों, व्यापारों, कला और मीडिया पर प्रभुत्व बना कर अपने एजेंडों को चलाना और बढ़ाना इनका ध्येय होता है।
मेसन इतने प्रभावशाली हैं कि अमेरिका में एक बड़े वर्ग की मान्यता है कि 1 डॉलर के नोट पर जो अमेरिकन ग्रैंड सील है वो मेसन का logo ही है, यदि ग्रैंड सील पर डेविड स्टार बनाया जाये तो मेसन पिरामिड और M A S O N अक्षर दिखाई देते हैं।

दुनिया के कई प्रभावशाली लोग इस फ्रीमेसन्स सोसाइटी से सम्बंधित थे जिनमें प्रमुख हैं :
लेखक-वॉल्टर स्कॉट,वोल्फगांग गेटे,ऑस्कर वाइल्ड,मार्क ट्वैन, कंपोजर-निकोलो पगानिनी, मोजार्ट, जोसेफ हयडेन, लुडविक वान बेथोवेन, फ्रांज़ लिस्ज़्ट, कवि-रुडयार्ड किपलिंग, रोबर्ट बर्न्स।

राजनीतिज्ञ-रूज़वेल्ट,जॉर्ज वाशिंगटन, विंस्टन चर्चिल. (एक वर्ग का मानना है कि इस समय के राजनीतिज्ञों में जेम्स कैमरून,व्लादिमीर पुतिन और बराक ओबामा का सम्बन्ध भी सोसाइटी से है), व्यापारी-हेनरी फोर्ड, राथ्सचाइल्ड समूह (Rothschild), इसके अतिरिक्त कई सुप्रीम कोर्ट के जज और अमेरिकन कोंग्रेसमैन और सिनेटर्स भी इसी संगठन से सम्बंधित हैं।

राकफेलर समूह (Rockefeller Group):



जाॅन डेविसन राॅकफेेलर का जन्म 8 जुलाई, 1839 को रिचफोर्ड (न्यूयाॅर्क) अमेरिका में हुआ। यह अपने माता पिता की छह संतानों में से दूसरे थे। इनके पिता का नाम विलियम ए. राॅकफेलर था और इनकी माता का नाम एलिजा डेविसन था। सन् 1853 में इनका परिवार न्यूयाॅर्क से ओहियो आ गया था।

1957 में अठारह वर्ष की उम्र पूर्ण कर लेने के बाद क्लीवलैंड (ओहियो) में रहे, जहां पर 1855 में बुककीपर के रूप में कार्य करते रहे थे। 1858 में यह कमीशन कारोबार में आ गए। इनकी फर्म ’क्लार्क एंड राॅकफेलर’ ने 1862 में एक तेल परिष्करण कार्यशाला में विनियोग किया और 1865 में राॅकफेलर ने अपने साझेदार क्लार्क को अपना हिस्सा बेच दिया और 72500 डाॅलर्स का बड़ा विनियोग तेल परिष्करण कार्यशाला में नए सहयोगी एंड्रयू के साथ किया।

द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर (NWO) शब्द की उत्पत्ति :

द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर (NWO) की चर्चा सबसे पहले ब्रिटिश लेखक और भविष्यवादी एच.जी. वेल्स ने अपनी किताब ‘The Open Conspiracy’ और “The New World Order” में 1940 के दशक में ‘एक तकनीकी दुनिया के राज्य की स्थापना और एक नियोजित अर्थव्यवस्था’ के लिए एक पर्याय के रूप में द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर (NWO) शब्द का प्रयोग किया और इसे परिभाषित भी किया।

अमेरिकी टेलीविज़नवादी पैट रॉबर्टसन ने 1991 की अपनी सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक ‘The New World Order’ लिखी और इस कांस्पीरेसी थ्योरी के प्रसारकर्ता बन गए। अपनी उस किताब में वो एक परिदृश्य का वर्णन करते हैं जहां वाल स्ट्रीट, फेडरल रिजर्व सिस्टम, काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस, बिलडरबर्ग ग्रुप और त्रिपक्षीय आयोग पर्दे के पीछे से वैश्विक घटनाओं को नियंत्रित करते हैं, लोगों को लगातार और गुप्त रूप से एक नई विश्व सरकार की दिशा में प्रेरित करते हैं ।



20 वीं शताब्दी के दौरान, वुड्रो विल्सन और विंस्टन चर्चिल जैसे राजनीतिक हस्तियों ने “नई विश्व व्यवस्था” शब्द का उपयोग इतिहास के एक नए दौर को संदर्भित करने के लिए किया था, जिसमें विश्व राजनीतिक विचार और प्रथम विश्व युद्ध के बाद सत्ता के वैश्विक संतुलन में नाटकीय बदलाव की विशेषता थी।
11 सितंबर 1990 को अमेरिकी कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र के दौरान दिए गए ‘टुवर्ड ए न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ के अपने भाषण में, राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश ने सोवियत संघ के राज्यों के साथ शीत युद्ध के बाद के वैश्विक शासन के लिए अपने उद्देश्यों का वर्णन किया था। उन्होंने कहा था कि :

“अब तक हम जिस दुनिया को जानते हैं, वह एक ऐसी दुनिया है जो विभाजित है – कांटेदार तार और कंक्रीट ब्लॉक, संघर्ष और शीत युद्ध की दुनिया। अब हम एक नई दुनिया को देख सकते हैं, एक ऐसी दुनिया जिसमें एक नई विश्व व्यवस्था की बहुत वास्तविक संभावना है, विंस्टन चर्चिल के शब्दों में एक “विश्व व्यवस्था”।

इस न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है, न्यू वर्ल्ड आर्डर की परिकल्पना को साकार करने के लिए 1913 में यूएस फेडरल रिजर्व सिस्टम का गठन किया गया, 1944 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UN), 1945 में विश्व बैंक (World Bank) , 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), 1993 में यूरोपीय संघ (EU) और यूरो मुद्रा, 1998 में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization), और 2002 में अफ्रीकी संघ (African Union) और 2008 में दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र संघ (Union of South American Nations) का गठन भी इसी वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा हैं।

द न्यू वर्ल्ड ऑर्डर (NWO) के साथ ‘अंतर्राष्ट्रीय बैंकरों’ की चर्चा इसलिए होती है कि नई विश्व व्यवस्था के लिए देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कंट्रोल ज़रूरी था। विश्व बैंक (World Bank) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) के साथ साथ उपरोक्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस न्यू वर्ल्ड आर्डर को लागू करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

कह सकते हैं कि विश्व के इन चुनिंदा शक्तिशाली पूंजीपतियों, नेताओं, कॉर्पोरेट्स, धनी घरानों की सीक्रेट सोसाइटी के न्यू वर्ल्ड आर्डर एजेंडे के लिए विश्व बैंक (World Bank), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), संयुक्त राष्ट्र संघ (UN), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूरोपीय संघ (EU), उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) आदि जैसे सभी संगठन शक्तिशाली टूल (औज़ार) की तरह हैं, ये गुप्त समूह जब चाहे इन संगठनों के बल पर किसी भी संप्रभु राष्ट्र की दिशा और दशा मनचाहे रूप से आराम से बदल सकता है।



इस न्यू वर्ल्ड आर्डर एजेंडे की परिकल्पना को साकार करने में सबसे बड़ा और अहम् रोल इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया और संचार तंत्र का भी है, क्योंकि अधिकांश पर न्यू वर्ल्ड आर्डर के हिमायतियों का नियंत्रण है। साथ में इंटरनेट, टीवी और फिल्मों में भी इस सीक्रेट सोसाइटी का पर्दे के पीछे से बराबर का नियंत्रण है। यही कारण है की 2014 में भारत में सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसी मोदी लहर चलाई गई कि पूरा देश उसमे बह गया और देश आज 9 वर्ष बाद क़र्ज़ के पैसे से चमक दमक तो गया परन्तु उस 155 लाख करोड़ के क़र्ज़ को उतारने का कोई रोडमैप नहीं है। क़र्ज़ बढ़ने से जीडीपी कैसे बढ़ जाती है यह आज तक समझ नहीं आया। लेकिन हमें विश्वास है की एकॉनिमकिस के विशेषज्ञ इसको कैसे न कैसे कोई भारी भरकम शब्द ढूंढकर हमारी हलक के नीचे उतार हमें समझा देंगे।

ये सीक्रेट सोसाइटी सुनियोजित तरीके से इन सभी माध्यमों का इस्तेमाल कर न्यू वर्ल्ड आर्डर के एजेंडों को जनता को परोस रही है और पूरा भी कर रही है। इसका बड़ा उदाहरण ये है कि ये ताक़तवर समूह जो चाहता है जनता को वही दिखाया जाता है, इसका बड़ा उदाहरण हमारे ड्राईंग रूम में रखे सेट टॉप बॉक्स हैं, और टीवी पर दिखाए जा रहे न्यूज़ चैनल्स और उनके समाचारों के तौर तरीके और साथ ही धारावाहिकों की बदलती दुनिया हैं।

इसी न्यू वर्ल्ड आर्डर कांस्पीरेसी थ्योरी के चलते कोरोना महामारी की भविष्यवाणी और उसके बाद वेक्सिनेशन प्रोग्राम के चलते बिल गेट्स के खिलाफ भी खुद अमरीका में ही प्रचंड विरोध शुरू हो गया है।

बात करें कांस्पीरेसी थ्योरी (षड्यंत्र सिद्धांत) की तो ये ये मानवीय स्वभाव है कि दुनिया में कहीं भी किसी भी देश में कोई अप्रत्याशित या अस्वाभाविक घटना होती है जिसका प्रभाव या दुष्प्रभाव बड़े स्तर पर किसी देश या जनता पर पड़ता हो तो लोग संदेह करते हैं अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं। ऐसे लोगों को संशयवादी कहा जाता है, और उस अस्वाभाविक या अप्रत्याशित घटना के पीछे के कारणों, आधार और उसके मानव जाति पर या किसी देश पर उसके इम्पैक्ट का अनुमान लगते हैं। उस घटना के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक नफे नुकसान का भी अनुमान लगते हैं।

ऐसा नहीं है कि सभी कांस्पीरेसी थ्योरीज़ झूठ या मनघडंत साबित हुई हों, दुनिया में कई कांस्पीरेसी थ्योरीज़ आगे जाकर सच साबित हुई हैं।

आगे जाकर ये न्यू वर्ल्ड आर्डर कांस्पीरेसी थ्योरी सच साबित होती है या झूठ ये भविष्य के गर्भ में है, मगर संशयवादियों का कहना है कि पिछले साल से बदलते वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए इस थ्योरी के सच होने के लक्षण नज़र आना शुरू हो गए हैं।
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करना क्या है?

अब अंत में आप सोच रहे है कि जानकारी दे दी ठीक है पर अब करना क्या है? यह बताओ
सच कहूँ तो कुछ अधिक नहीं परन्तु इस आने वाली प्रलय में बीज सुरक्षित रखने का प्रयास होना चाहिए बीज अर्थात ज्ञान के बीज। .
बीजेपी हो या कांग्रेस या कोई भी पार्टी भारत और विश्व को जिस दिशा में धकेलने का कार्य हो रहा है वह तो होकर रहेगा और यह वाक्य निराशा से नहीं कहा गया है परन्तु एक हम उसका साथ व्यक्तिगत स्तर पर तो कम से कम न दें यह तो सुनिश्चित कर सकते है। गलत जानकर गलत व्यक्ति का साथ देकर अपने आने वाली पीढ़ियों को गलत दिशा देना भी सही नहीं।

तो इस जानकारी को जल्दबाज़ी में सही मानकर स्वीकार नहीं करना है तो
गलत मानकर अस्वीकार भी नहीं कर देना है। ज्ञान बड़ा हथियार है तो इस लेख से उस हथियार को धार दीजिये और समय और क्षमता आने पर आने पर उसका प्रयोग करने योग्य स्वयं को मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ बनाना है अन्यथा इतनी जानकारी के बाद हम इतने अभिभूत हो जायेंगे कि कंफ्यूज होकर सब पता होते हुए भी कुछ कर नहीं पाएंगे।




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