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किसका है महत्व, स्वाद या स्वास्थ्य का?

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  किसका है महत्व, स्वाद या स्वास्थ्य का? वैसे इस प्रश्न का उत्तर है कि महत्व तो दोनो का है। जो भोजन केवल स्वाद दे और स्वास्थ्य न दे वह तो हानि करेगा है परंतु जो भोजन केवल स्वास्थ्य दे और स्वाद न दे वह भी कम हानिकारक नही। पहले बाहर जाकर हम घर जैसा खाना ढूंढते थे परंतु अब घर में बाहर जैसा खाना बनाकर खाने लगे है। इन दिनों युवाओं में स्वाद प्रधानता वाला जंक फूड या फास्ट फूड की मांग बढ़ गई है। वे पिज्जा, 'वर्गर, मोमोस और हनी चिली पोटेटो जैसे खाद्य पदार्थ खूब पसंद कर रहे हैं। इनको खाने के बाद पेट खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादा समय तक फास्ट फूड का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। इस कारण धन हानि तो होती ही है, साथ में जन हानि भी सामने आती है।  अक्सर देखने में आता है कि किसी बच्चे या बड़े का जन्म दिवस या कोई खुशी का मौका हो तो बच्चे रेस्त्रां की तरफ भागते हैं। अधिकतर युवाओं ने पेटीज, चिट्ठी चाउमीन और वर्गर जैसे आहार के साथ फेसबुक, व्हॉट्सएप पर स्टेटस लगा रखा है। हमें समझना होगा कि बड़े-बड़े रोगों का जनक फास्ट फूड ही है। चूंकि इस तरह के खाने को एक ही तेल में...

मकान नहीं घर बनाओ

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  " मकान " बीते हफ़्ते दो मित्रों ने अपना नया मकान देखने के लिए बुलाया। एक को 11 साल लगे.. मकान बनवाने में दूसरे को 9 साल। इस एक दशक के समय में उन मित्रों ने बस एक ही काम किया ..वह यह कि "मकान बनवाया" ...औऱ उससे पहले 20 साल तक जो काम किया वो यह कि "मकान बनवाने" लायक पैसा जुटाया... यानि जीवन के बेशक़ीमती 30 साल सिर्फ़ "अपना मकान बनवा लूं'' इस फितूर में निकाल दिए मेरी मकान, इंटीरियर, एलिवेशन, लक धक साजसज्जा जैसी चीज़ों में बिल्कुल भी रूचि नही है ..बल्कि साफ़ कहूं ..तॊ अरुचि ही है वे मित्र उच्चता के घमंड से विकृत हुए एक एक कमरे, गैलरी, गार्डन, आर्किटेक्ट की बारीकियां, उनके निर्माण में लगी सामग्री, ख़र्च हुआ पैसा ..आदि का विवरण दे रहे थे..... इधर मैं भी सौजन्यतावश "हूं , हां " अच्छा ", वाह , ग़ज़ब " जैसी प्रतिक्रियाएं देकर उनके अभिमान को पुष्ट किए दे रहा था ! जबकि हक़ीक़त यह थी कि मैंने शायद ही किसी चीज़ को गौर से देखा हो !! बचपन से ही मुझे मकान,गाड़ी,कपड़े जैसी बातों में न्यूनतम रूचि रही है । उनकी रनिंग कॉमेंट्री रुकने का नाम नहीं...

नई सामाजिक बीमारी, रिसोर्ट मे शादियां !

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 नई सामाजिक बीमारी   रिसोर्ट मे शादियां !  विवाह सफल हो न हो परंतु उसका समारोह सफल होना आवश्यक है हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की! सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है! अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट या Destination weddings के रूप में शादीया होने लगी है क्यों होने लगी है?  क्योंकि फिल्मों में ऐसी शादियां होती है। तो फिल्मी शादीयों की चमक दमक की नकल तो करनी पड़ेगी।  विवाह सफल हो न हो परंतु नकल सफल होनी आवश्यक है शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं! और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार व...

नहीं चाहिए ऐसा समाज जहाँ फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे!

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       फैक्ट्री में पैदा होंगे बच्चे यह दावा कोई खोखला नही है ऐसा दावा करने वाली दुनिया में बहुत सारी कंपनियां होंगी जो नकली बच्चे पैदा करेंगे और उससे धन कमाएंगी क्योंकि ऐसा काम सेवा के लिए तो नहीं होने वाला। परंतु बड़ी बात यह है कि भारत में गर्भ संस्कार की परंपरा उसका क्या होगा क्योंकि गोद भराई गर्भ संस्कार आदि जो परंपराएं हैं उन परंपराओं को यह पूरी तरह खत्म कर देंगे क्योंकि भारत जैसा देश ऐसी तकनीक का बहुत बड़ा बाजार बनेगा। आईवीएफ की तरह लोगों को अपने गोद में केवल जीवित दिखने वाला बच्चा चाहिए जो की फैक्ट्री में पैदा हुआ हो। मोबाइल फोन के मॉडल की तरह उनमें जेनेटिक बदलाव बालो का रंग, आंखो का रंग, कद आदि चुन सकेंगे सुनने में तो यह अद्भुत लग रहा है लेकिन जेनेटिक बदलाव से खेलने की यह हरकत आने वाली वह भयानक सच्चाई है जिसे सरकारी संरक्षण मिलेगा। समाज में ऐसे बच्चो को पहचानने के लिए नियम बनाने पड़ेंगे जिससे फैक्ट्री और प्राकृतिक रूप से पैदा हुए बच्चो की पहचान हो सके। क्योंकि ऐसे बच्चो का गोत्र आदि तो कुछ निर्धारित होगा नही। जेनेटिक बदलाव के कारण और कृत्रिम गर्भ में पलने के...

भारत में अंग्रेजी राज का संक्षिप्त बही-खाता || THE BALANCE SHEET OF BRITISH RULE IN INDIA

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  THE BALANCE SHEET OF BRITISH RULE IN INDIA Some main items:   1)       Englishmen drain from India and take to England every year 50 crores of rupees ($167 million);   consequently   the Hindus have become so poor that the daily average income per capita is only 5 paisa (2.5 cents)   2)       The land tax is more than 65 percent of the net produce. 3)       The expenditure for 240 million (24 crore population) person on Education:           7¾ crores of rupees ($25,000,000) Sanitation:          2 crore of rupees ($6,000,000) But on army:      29 ½ crore of rupees ($97,000,000)   4)       Under British rule, the famines are ever on the increase, and in the last ten years 20 million (2 crore) men, women and children have died of starv...

सोनपापड़ी के साथ हुआ षड्यंत्र!

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 जिसे हरा न सको उसे यशहीन कर दो,उसका उपहास करो,उसकी छवि मलिन कर दो। बस ऐसा ही कुछ हुआ है इस सुंदर मिठाई के संग में भी। आपने इधर सोनपापड़ी जोक्स और मीम्स भारी संख्या में देखे होंगे। निर्दोष भाव से उ न पर हँस भी दिए होंगे। पर अगली बार उस बाज़ार को समझिए जो मिठाई से लेकर दवाई तक और कपड़ों से लेकर संस्कृति तक में अपने नाखून गड़ाये बैठा है।         एक ऐसी मिठाई जिसे एक स्थानीय कारीगर न्यूनतम संसाधनों में बना बेच लेता हो। जिसमें सिंथेटिक मावे की मिलावट न हो। जो अपनी शानदार पैकेजिंग और लंबी शेल्फ लाइफ के चलते आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर बिना दूषित हुए किसी और को दी जा सके, खोये की मिठाई की तरह सड़कर कूड़ेदान में न जा गिरे। आश्चर्य, बिल्कुल एक सुंदर, भरोसेमंद मनुष्य की तरह जिस सहजता के लिए इसका सम्मान होना चाहिए, इसे हेय किया जा रहा है।        एक काम कीजिये डायबिटिक न हों तो घर में रखे सोनपापड़ी के डिब्बों में से एक को खोलिए। नायाब कारीगरी का नमूना गुदगुदी परतों वाला सोनपापड़ी का एक सुनहरा, सुगंधित टुकड़ा मुँह में रखिये...

जानिये असल में किस धन की है धनतेरस?

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जानिये किस धन की है धनतेरस ? क्यों बिना विवेक कुछ भी ख़रीद लेने का दिन नहीं है धनतेरस! और यह धन से सम्बंधित नहीं है ************************************* स्वदेशी एवं स्वास्थ्य के सन्दर्भ में धनतेरस का महत्व कुंठित एवं विकृत उपभोक्तावाद से प्रेरित बाजारीकरण के कारण धनतेरस को लेकर कुछ भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास एक प्रश्नावली के द्वारा : प्रश्न: धनतेरस में "धन" शब्द का क्या अर्थ है? उत्तर: यह बहुत कम लोग जानते है की वास्तव में धनतेरस में "धन" शब्द स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी से लिया गया है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। प्रश्न: अगर धन नहीं तो फिर धनतेरस का क्या महत्त्व है? उत्तर: देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें। प्रश्न: आज के दिन कुछ नया खरीदने की परंपरा क्यों है? उत्तर: समुद्र मंथन के समय धन्...